ये कौन लोग हैं जिन्हें संविधान से डर लगता है, संविधान लिखने वाले डॉ अम्बेडकर से डर लगता है। आख़िरकार सच्चाई से इतना क्यों डरते हैं ये लोग? इनकी नफ़रत इतनी क्यों बढ़ जाती है कि ये संविधान जलाने, इसके मूलभूत सिद्धांतो के खिलाफ़ लोगों को भड़काने, और तो और लोगों को मारने तक से नहीं चूंकते। अगस्त की 9 तारीख़ को देश की राजधानी दिल्ली में संसद से थोड़ी ही दूरी पर बड़ी बेशर्मी से ना ही संविधान जलाया गया, बल्कि असभ्य भाषा में संविधान के मूल रूप को भी गाली दी गई। संविधान और SC/STs के खिलाफ़ इनकी नफ़रत इस प्रकार देखी जा सकती है: 1) संविधान मुर्दाबाद, 2) संविधान जलाओ – देश बचाओ, 3) अम्बेडकर जलाओ – देश बचाओ, 4) आरक्षण मुर्दाबाद, 5) आरक्षण ने क्या किया – देश को बर्बाद किया, 6) SC/ST Act मुर्दाबाद, 7) जिसने SC/ST Act पास किया – मुर्दाबाद, 8) आरक्षण के दलालों को – जूते मारो सालों को, 9) अम्बेडकर मुर्दाबाद, 10) जिसने अधिकार छीना है – वो मुर्दाबाद, 11) मनुवाद जिंदाबाद, 12) मनुस्मृति ज़िन्दाबाद, 13) भारत माता की जय।
(आरक्षण मुर्दाबाद, अम्बेडकर मुर्दाबाद, SC/ST Act मुर्दाबाद के साथ भारत माता की जय के नारे लगते हैं तो ऐसा लगता है जैसे भारत माता भी जातिवादी है!! खैर, ये पूरा देश ही जातिवादी है!!)
यह नारे बेशक सीधा-सीधा दलितों/बहुजनों पर हमला है। दलित/बहुजन को संविधान से मिली बराबरी और आज़ादी पर हमला है। ये हमलावर नहीं चाहते कि देश से भेदभाव और छुआछूत ख़त्म हो। भेदभाव-छुआछूत से होने वाले उनके फ़ायदे ख़त्म हों। लेकिन संविधान को जलाया जाना भारत के किसी एक समुदाय पर हमला नहीं, बल्कि भारत के मूल स्वरुप पर हमला है। संविधान की प्रस्तावना में लिखे मूल्यों पर हमला है। संविधान में अलग-अलग समुदायों के लिए उनके अलग-अलग संरक्षित अधिकारों पर हमला है। भारत के हर एक प्रगतिशील इन्सान पर हमला है। संविधान जलाने वाले लोग नहीं विश्वास रखते कि भारत “सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक गणतंत्र” देश बना रहे। यह लोग नहीं चाहते की देश में न्याय, स्वतंत्रता, समता, बंधुता की भावना बनी रहे, जिसकी नुमाइंदगी दलित/बहुजन और इस देश का प्रगतिशील तबका करता है। इन लोगों को न्याय और धर्मनिरपेक्ष जैसे प्रगतिशील सिद्धांत विदेशी नज़र आते हैं। इन लोगों को शायद इतनी बुनियादी जानकारी तो है कि किसी भी देश का कोई भी प्रगतिशील सिद्धांत या किसी बुद्धिजीवी के विचार पूरी मानव सभ्यता पर लागू होते है, लेकिन फिर भी ये लोग ना जाने इनके कौन से घमंड में रहते हैं कि देश में मनुवाद लाना चाहते हैं जिसकी बुनियाद असमानता और अन्याय पर टिकी है। यह लोग देश को मज़बूत बनाये रखने वाली संस्थाओं को खुली चुनौती दे रहे हैं। यह लोग SC/ST/OBC को हमेशा उनका नौकर, मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक, और महिलाओं को उनकी दासी बनाये रखना चाहते हैं।
संविधान जलाना कोई साधारण घटना नहीं है, यह देश विरोधी सोच है। लेकिन दलित/बहुजनों के अलावा कोई भी ज़मीन पर या ज़बान से ही इस घटना का विरोध करता नहीं दिख रहा है। ऐसा लगता है सिर्फ़ दलित/बहुजन ही एक संवेदनशील, उर्वरक दिमाग वाला तबका बचा है, जो संविधान की कीमत समझ पा रहा है और उसे बचाने की नैतिक ज़िम्मेदारी भी निभा रहा है। यह समझना कि दलित/बहुजन आरक्षण बचाने के लिए विरोध कर रहे हैं, दलित/बहुजनों के लोकतंत्र और संविधान की समझ को बहुत कम करके आंकना होगा। संविधान की रक्षा कर दलित/बहुजन पूरे भारतीय समाज की रक्षा कर रहा है। दलित/बहुजन ब्राह्मणवाद और मनुवाद को लगातार चुनौती दे रहा है। इसके अनैतिक, असमान और अतार्किक तत्वों को चुनौती दे रहा है। और दूसरी तरफ़ बाकी पढ़े-लिखे तबके को नागरिक होने की ज़िम्मेदारियों का जैसे कोई बोध ही नहीं है। जैसे इन्हें संविधान और मनुस्मृति में कोई अंतर ही ना नज़र आता हो। या वे भी ब्राह्मणवाद से होने वाले फ़ायदे के हिस्सेदार हैं। और इन्हें भी दलितों/बहुजनों/मुसलमानों पर होने अत्त्याचारों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। इन्हें फ़र्क नहीं पड़ता कि इनके साथी नागरिकों को समान अधिकार और न्याय मिल भी रहा है या नहीं। सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनैतिक ताना-बाना कैसा भी रहे, इन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
ये सनातनी/मनुवादी/ब्राह्मणवादी/सामंती वे लोग हैं जो पत्थर की मूर्ति को आला लगाकर देखते हैं कि वो बीमार तो नहीं है , बारिश होने के लिए हवन करते हैं , मेंढक-मेंढकी की शादी करवाते हैं , और मोरनी को मोर के आंसू से गर्भवती कराते हैं । बेशक ही ऐसी सोच रखने पर ये सनातनी लोग संविधान और संविधानवाद को नहीं समझते। ये लोग मानव और प्राकृतिक अधिकारों को भी नहीं समझते। इन्हें नहीं मालूम कि वैज्ञानिक सोच किसे कहते हैं। फिर ये यह भी नहीं समझ पाएंगे कि डॉ अम्बेडकर को लोकतंत्रवादी क्यों कहा जाता है, और आज के समय में डॉ अम्बेडकर की सबसे ज़्यादा अहमियत क्यों है। ये नहीं समझते कि आरक्षण और SC/ST Act किस तरह से देश की तरक्की में सहायक है। इन्हें नहीं मालूम कि इनका ये रवैया देश को तरक्की नहीं दुर्गति की तरफ़ ले जाएगा। कोई भी देश विकसित और आधुनिक तब बनता है जब उस देश के विभिन्न समुदाय देश के कामकाज में भागीदारी करते हैं। और ये सभी समुदाय एक दूसरे को अपना मानते हैं और उनके सुख-दुःख में भाग लेते हैं। लेकिन अगर इस सनातनियों के विचारों को देखा जाए तो यह देश ना तो कभी विकसित हो पाएगा और ना ही कभी आधुनिक। यह सनातनी भीड़ हाथ में तिरंगा लिए और भारत माता की जय चिल्लाते हुए प्रगतिशील लोगों को परेशान कर रही है और देश को सिर्फ़ नुकसान पहुँचा रही है।
आज के समय में इंसानी जीवन से जुड़ी किसी भी चीज़ को अराजनैतिक या गैर-राजनीतिक मानना सबसे बड़ी गलती होगी। हमारा हर कदम राजनीतिक होता है या राजनीति ही हमारा हर कदम निर्धारित करती है। दलितों/मुसलमानों/दलित ईसाईयों पर अत्याचार और किन्हीं दो समुदायों के बीच दंगे ऐसे ही नहीं होते। उनके पीछे राजनीतिक पार्टियों के स्वार्थ छिपे रहते हैं। वर्तमान सरकार से दलितों को या तो झूठे वादे मिले हैं या उन पर चौतरफ़ा हमले/अत्याचार बढ़े हैं। ये अत्याचार सरकारों की शय के बिना होना नामुमकिन है। जबकि अगर कोई दलित/मुस्लिम उनके अधिकारों को लेकर सवाल ही कर दे तो उन्हें नक्सली/देशद्रोही घोषित कर दिया जाता है। इसी प्रकार दिल्ली के संसद मार्ग पर संविधान जलाना, संविधान मुर्दाबाद के नारे बिना मनुवादी ताकतों की मदद के नहीं लग सकते। संविधान जलाना भी देशद्रोह है। जो लोग संविधान में ही विश्वास नहीं रखते, सोचिये वे पूरे देश और समाज के लिए कितने खतरनाक हो सकते हैं। क्यों नहीं इन पर रासुका भी लगनी चाहिए? जब तक ऐसे लोगों पर देशद्रोह के मुक़दमे नहीं लगेंगे, इन्हें संविधान की कीमत समझ नहीं आएगी। दूसरी तरफ़ अगर दलित खुद के ऊपर अत्याचार को रोके, जैसा सहारनपुर में चंद्रशेखर रावण कर रहा था, तो उन्हें देश की सुरक्षा पर खतरा बोल कर जेल में बंद कर दिया जाता है। देश की सुरक्षा को आख़िरकार किस से खतरा है, जो संविधान ही बदलना चाहते है वो या वो जो न्याय के लिए हमेशा संविधान का रास्ता अपनाते हैं?
वर्तमान केंद्रीय सरकार एक तरफ़ अम्बेडकर भवन बनवा रही है, तो दूसरी तरफ़ शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में SC/ST/OBC पद लगातार कम कर रही है। हर जगह निजीकरण हो रहा है। और दूसरे हाथ पर ‘रिज़र्वेशन इन प्रमोशन’ की बात करी जा रही है। यह सब दलितों का वोट लेने की राजनीति के अलावा कुछ भी नहीं है। सनातनियों की इस भीड़ में दलित/बहुजनों को अपने अधिकारों की हर पल रक्षा करनी होगी। उन्हें समय-समय पर देश भर में ऊना (गुजरात, मरे जानवरों को सरकारी दफ्तरों में फेंकना) जैसे आन्दोलन करने होंगे और 2 अप्रैल 2018 जैसे विरोध प्रदर्शन (SC/ST Act में तुरंत गिरफ़्तारी रोकने पर) करने होंगे। दलित/बहुजनों को हर समय जताना ज़रुरी है कि वे उर्वरक दिमाग और जिंदा शरीर हैं जिन्हें कोलू में बंधी गाय की तरह कैसे भी, किधर भी हांका नहीं जा सकता। नहीं तो ये सनातनी लोग धीरे-धीरे दलित/बहुजनों के अधिकार ही नहीं छीनेंगे, बल्कि एक दिन पूरा संविधान ही बदल देंगे, और संविधान जलाना इसका एक संकेत भर है। अतः दलित/बहुजनों की आज सबसे बड़ी ज़रुरत मनुवादी राजनैतिक पार्टियों से अलग होने और खुद के लिए नए राजनैतिक विकल्प खोजने की है।