• About Us
  • Contact Us
  • Copyright, Terms and Conditions
  • Events
  • Grievance Redressal Mechanism
  • Home
  • Login
Indian Cultural Forum
The Guftugu Collection
  • Features
    • Bol
    • Books
    • Free Verse
    • Ground Reality
    • Hum Sab Sahmat
    • Roundup
    • Sangama
    • Speaking Up
    • Waqt ki awaz
    • Women Speak
  • Conversations
  • Comment
  • Campaign
  • Videos
  • Resources
  • Contact Us
    • Grievance Redressal Mechanism
  • About Us
No Result
View All Result
  • Features
    • Bol
    • Books
    • Free Verse
    • Ground Reality
    • Hum Sab Sahmat
    • Roundup
    • Sangama
    • Speaking Up
    • Waqt ki awaz
    • Women Speak
  • Conversations
  • Comment
  • Campaign
  • Videos
  • Resources
  • Contact Us
    • Grievance Redressal Mechanism
  • About Us
No Result
View All Result
Indian Cultural Forum
No Result
View All Result
in Comment

COVID-19 से लड़ने के लिए कितना तैयार है भारत?

byMK Bhadrakumar
March 17, 2020
Share on FacebookShare on Twitter
कोरोना वायरस महामारी भारत में अपने उठान पर नज़र आ रही है।

भारतीय समय के अनुसार आज शाम 5 बजे सार्क देशों के नेतृत्व के मध्य होने जा रही टेलीकांफ्रेंस क्षेत्रीय सहयोग के लिहाज़ से एक दुर्लभतम घटना मानी जा सकती है।

क़रीब 6 सालों के अन्तराल के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर से सार्क के ज़रिये भारत के पड़ोसियों के साथ उलझे तारों को दुरुस्त करने में जुट गए हैं। इसी प्रकार से मई 2014 में उन्होंने तब सबको आश्चर्य में डाल दिया था जब उन्होंने दक्षिणी एशियाई मुल्कों के नेताओं को अपने प्रधानमंत्रित्व पदभार ग्रहण समारोह में मुख्य अतिथियों के रूप में आमंत्रित किया था।

इससे एक आशा और उम्मीद की किरण फूटी थी कि मोदी शायद वह शख़्स हैं जो भारत के पड़ोसी देशों के बीच उलझे तारों को एक बार फिर से सुलझाने में अपनी मुख्य भूमिका निभाने जा रहे हैं। शायद इसके पीछे के कारणों में मोदी की ओर से इस उद्यम को दिए गए आकर्षक शीर्षक ‘पड़ोसी सबसे पहले’ वाले नारे की रही हो।

लेकिन जल्द ही ‘पड़ोसी सबसे पहले’ का यह प्रयोग बुरी तरह से फ्लॉप साबित हुआ। जो थोड़ी बहुत आशाएं थीं भी वे तब धराशायी हो गईं जब दिल्ली ने बेहद बचकाने आधार पर पाकिस्तान से जारी वार्ता को ही बीच में तोड़ डाला, जिसके चलते अंततः क्षेत्रीय सहयोग का सारा माहौल ही नष्ट हो चला।

इसके तत्काल बाद ही दिल्ली ने ख़ुद को एंग्लो-अमेरिकन प्रोजेक्ट में शामिल कर श्रीलंका में राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे की चुनी हुई सरकार को पलटने में खपा डाला। इसके बाद नेपाल के ऊपर ‘हिन्दू संविधान’ लागू कराने वाला विनाशकारी प्रयोग देखा, जिसे ज़बरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा। नतीजे में आगबबूला दिल्ली ने चारों तरफ़ ज़मीन से घिरे इस बेहद ग़रीब देश पर क्रूर प्रतिबंधों को थोपने का काम किया।

हद तो तब हो गई जब मोदी ने पाकिस्तान में होने जा रहे सार्क सम्मेलन में शामिल होने से इनकार कर दिया। और इस प्रकार 15 से 19 नवम्बर 2016 को होने वाले इस आयोजन को कमतर करने और इस क्षेत्रीय निकाय की अस्मिता पर ही एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लगाने का काम किया।

यह सच है कि अपने पड़ोस में मालदीव के रूप में भारत को दूसरे शासन परिवर्तन परियोजना को पिछले साल सफलता प्राप्त हुई। लेकिन उसके बाद से लगे दो बड़े धक्कों ने सबसे पहले पड़ोस की इस पॉलिसी के मुक्त पतन की राह में इसे मात्र एक विराम चिन्ह के रूप में ही देखा जा सकता है।

नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और बांग्लादेश से पलायन कर भारत में आये लोगों को ‘दीमक’ बताकर जड़ से समाप्त करने की धमकियों ने ढाका के साथ के सम्बन्धों की पारदर्शिता और आपसी विश्वास को हिलाकर रख डाला है। इन घटनाओं ने हाल के दिनों में इनके बीच के उच्च-स्तरीय संपर्कों को पूरी तरह नष्ट करने का काम किया है। वहीं दूसरी तरफ अफ़ग़ानिस्तान में भारत अपने ‘महान खेल’ को पूरी तरह से खो चुका है, और जारी अफगान शांति प्रक्रिया में पूरी तरह से हाशिये पर खड़ा है।

संक्षेप में कहें तो आज की टेलीकांफ्रेंस क्षेत्रीय राजनीति में एक मोड़ वाले बिंदु पर होने जा रही है। पहली नजर में ऐसा जाहिर होता है कि पीएम द्वारा ‘SAARC’ जैसे विस्फोटक शब्द के अपने ट्वीट में सन्दर्भ का अर्थ है कि दिल्ली शायद क्षेत्रीय राजनीति में इस क्षेत्रीय निकाय की प्रासंगिकता और इसके महत्व के बारे में पुनर्विचार कर रही है। यदि ऐसा है तो COVID-19 के इस दौर में यह एक शानदार पहल मानी जा सकती है।

भारत इस मामले में काफ़ी हद तक खुशकिस्मत रहा है कि यह अपने ऐसे पड़ोसियों से घिरा हुआ है जो हर बार इसके धमकी और विस्तारवादी सोच को माफ़ कर देने के लिए तैयार रहे हैं। वास्तव में देखें तो मोदी की इस पहल का सभी सार्क देशों की ओर से उत्साहजनक उत्तर मिला है। विशेष तौर पर पाकिस्तान की ओर से, जिसने एक दिन के भीतर ही इस पर जवाब देने का निश्चय किया और दिल्ली के इस निमंत्रण को स्वीकार किया है।

इसके पीछे पाकिस्तान की मंशा क्या हो सकती है? सोचने वाली बात ये है कि क्या यह बुरा वक़्त नहीं है इमरान खान के लिए मोदी के साथ सांठ-गाँठ करते दिखने का? क्योंकि इसे पाकिस्तान में कश्मीर और भारत में हिन्दू कट्टरपंथियों के ‘फ़ासीवादी अधिनायकवादी’ उभार के पाकिस्तानी अभियान को ही पटरी से उतारने के रूप में देखा जा सकता है?

यक़ीनी तौर पर इस्लामबाद ने इसके फफ़ायदे और नुकसान को सोचकर ही यह कदम उठाया होगा।

जिन्होंने भी ये फैसला लिया है उनकी नजरों से मोदी की ओर से यह प्रस्ताव और 6 महीने से अधिक समय से बंदी बनाए गए जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्लाह की अचानक से रिहाई की खबर छुपी नहीं रही होगी। जम्मू कश्मीर के हालात के लिए और भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों के लिहाज से ये दूरगामी कदम काफ़ी असरकारक होने जा रहे हैं। (अपनी ओर से इस्लामाबाद ने अब्दुल्ला की नज़रबंदी से रिहाई पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।)

पाकिस्तान ने भारत के साथ सम्बन्धों को बनाए रखने में रूचि बनाए रखी है। लेकिन साथ ही साथ विश्वास का संकट इतना ज्यादा है कि इस्लामाबाद ने इमरान खान के विशेष सहायक को मोदी के साथ वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के दौरान वार्ताकार के रूप में पेश कर अपनी और से सावधानीपूर्वक खेलने को तरजीह दी है। इसका अर्थ है कि पाकिस्तान अभी खुलकर खेलने से पहले परीक्षण कर रहा है।

आशा की जानी चाहिए कि मोदी के इस ‘वार्ता के बिन्दुओं’ वाली वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों में सुधार के लिहाज से एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक आयोजन साबित हो।

जहाँ तक COVID-19 का सम्बन्ध है, भारत के लिए इस वायरस के खिलाफ वैश्विक मुहिम चलाने वाले अग्रणी राष्ट्र की भूमिका की अपनी गंभीर सीमाएं जग-जाहिर हैं। भारतीय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली दशकों से मरणासन्न स्थिति में पड़ी है। भारत अपनी जीडीपी का 1.5% से भी कम खर्च स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करता है जो कि दुनिया में सबसे कम है। इस सम्बन्ध में हाल ही में एक टिप्पणी कुछ इस प्रकार से शुरू होती है:

“भारत की बहुसंख्य जनता के बीच में गरीबी, झुग्गी बस्तियों के जंगल, और सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे की बदतर हालत या उसकी गैर मौजूदगी सर्वविदित है। कुलमिलाकर कोरोनावायरस के तेजी से प्रसार और लाखों-लाख लोगों के जीवन को खतरे में डालने वाली मानवीय त्रासदी को निर्मित करने के लिए भारत अपने आदर्श रूप में उपस्थित है। लेकिन इसके बावजूद नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी की सरकार राज्य के संसाधनों को इस वायरस के विस्तार से रोकने के लिए उठाये जा सकने वाले क़दमों को अपनाने से इन्कार कर रही है। यह उम्मीद करना कि धनाढ्य लोगों से और उनके निजी अस्पतालों से संसाधनों को ये हस्तांतरित करेंगे, की बात सोचना भी खामखयाली होगी।“

इस तरह की कटु आलोचना को गलत भी नहीं ठहराया जा सकता। इसलिये यह न पूछिए कि ऐसा क्या है जो COVID-19 से लड़ने के नाम पर भारत अपने दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के लिए कर सकता है। पूछा यह जाना चाहिए कि भारत खुद अपने देशवासियों के लिए क्या कर सकता है।

क्या वीडियो कांफ्रेंस एक बार फिर से मोदी सरकार की खुद बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने की कवायद ही साबित होने जा रही है? इसको लेकर कुछ संदेह बने हुए हैं। सत्ताधारी अभिजात्य वर्ग के पास राष्ट्रीय नैरेटिव को कुछ समय के लिए दफनाने के लिए रणनीतिक योजना के तहत कुछ अलौकिक प्रतिभा रही है, जैसे कि विषयांतरणकरण और मन बहलाव के लिए चक्करदार भ्रमण के हथकण्डे।

क्या यह माना जाना चाहिए कि COVID-19 को लेकर जो राजनयिक पहल ली गई है ये राज्य की खस्ताहाल अर्थव्यस्था, सीएए और एनआरसी विरोधी उग्र आंदलनों से ध्यान भटकाने के लिए ली गई एक चाल है? इसके साथ ही क्या यह हाल के दिनों में दिल्ली में हुए भयावह सांप्रदायिक दंगों से भटकाने की कोशिश है जिसके बारे में देश के भीतर और दुनिया में आमतौर पर यह माना जा रहा है कि यह मुसलमानों के खिलाफ एक सुविचारित नरसंहार था?

मुख्य सवाल ये है कि COVID-19 के ख़िलाफ़ वैश्विक मंच पर भारत की अग्रणी भूमिका की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में तो तभी बन जाती है जब हमें ‘वास्तविक’ भारत में कोरोनावायरस के फैलाव की वास्तविक मात्रा में पुख्ता जानकरी का कोई डेटाबेस ही नहीं उपलब्ध होता।

130 करोड़ की जनसंख्या वाले हमारे देश में इस बीमारी की जाँच ही अभी तक सिर्फ 6,700 लोगों की हो पाई है। लेकिन इसके बावजूद हम दावा कर रहे हैं कि हम ‘दुनिया के समक्ष उदाहरण पेश करेंगे।’

सौजन्य न्यूज़क्लिक.
यह लेख पहली बार इंडियन पंचलाइन में अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था।

Related Posts

Jiban Narah’s Poetry, A True Voice of Assam
Comment

Jiban Narah’s Poetry, A True Voice of Assam

byA J Thomas
“The missing person” slips into his own words.
Comment

“The missing person” slips into his own words.

byDurga Prasad Panda
For Saleem Peeradina
Comment

For Saleem Peeradina

bySamreen Sajeda

About Us
© 2023 Indian Cultural Forum | Copyright, Terms & Conditions | Creative Commons LicenseThis work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License
No Result
View All Result
  • Features
  • Bol
  • Books
  • Free Verse
  • Ground Reality
  • Hum Sab Sahmat
  • Roundup
  • Sangama
  • Speaking Up
  • Waqt ki awaz
  • Women Speak
  • Conversations
  • Comment
  • Campaign
  • The Guftugu Collection
  • Videos
  • Resources
  • About Us
  • Contact Us
  • Grievance Redressal Mechanism

© 2023 Indian Cultural Forum | Creative Commons LicenseThis work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Create New Account!

Fill the forms bellow to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In