लेखक-प्रकाशक की अनबन, किताबों में प्रूफ़ की ग़लतियाँ, प्रकाशकों की मनमानी; ये बातें हिंदी साहित्य के लिए नई नहीं हैं। मगर पिछले 10 दिनों में जो घटनाएं सामने आई हैं, उन्हें देख कर हिंदी के हर लेखक-प्रकाशक-पाठक को चिंता करनी चाहिये। शर्मिंदा होना चाहिए।
एक प्रतिष्ठित लेखक हैं विनोद कुमार शुक्ल, उम्र है 85 साल, कई किताबें लिख चुके हैं और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हैं। बेहद मशहूर कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल ने अपने प्रकाशकों राजकमल और वाणी प्रकाशन पर आरोप लगाया है कि उन्हें उनकी किताबों की कम रॉयल्टी दी जा रही है और साथ ही प्रकाशकों ने उनकी किताबों के ई-बुक संस्करण जारी कर दिये हैं मगर इसकी कोई जानकारी उनको नहीं दी गई है।
वाणी के यहाँ से विनोद कुमार शुक्ल की किताबें ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’, ‘कविता की किताब’, ‘अतिरिक्त नहीं’ छपी हैं जबकि राजकमल ने उनकी ‘नौकर की कमीज़’, ‘सबकुछ होना बचा रहेगा’, ‘कभी के बाद अभी’, ‘कविता से लंबी कविता’, ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी’ और ‘बौना पहाड़’ जैसी किताबें छापी हैं।
क्या है पूरा मामला?
यह बात सामने आई 4 मार्च को जब मशहूर लेखक और बॉलीवुड अभिनेता मानव कौल ने इंस्टाग्राम पर लेखक विनोद कुमार शुक्ल के साथ एक तस्वीर पोस्ट की। मानव कौल ने इस तस्वीर के साथ लिखा, “इस देश के सबसे बड़े लेखक। इन्हें इस वक़्त जितना प्यार मिल रहा है लोगों से वो इसके और इससे भी कहीं ज़्यादा के हक़दार हैं।”
मानव ने आगे विनोद कुमार शुक्ल की दुविधा के बारे में लिखा। उन्होंने बताया, “पिछले 1 साल में वाणी प्रकाशन से छपी 3 किताबों का इन्हें 6000 रुपये मात्र मिला है। और राजकमल से पूरे साल का 8000 रुपये मात्र। मतलब देश का सबसे बड़ा लेखक साल के 14000 रुपये मात्र ही कमा रहा है। वाणी को लिखित में दिया है कि न छापे किताब पर इसपर भी कोई कार्यवाही नहीं।”
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मानव कौल फ़िल्मकार अचल मिश्रा और निहाल पराशर के साथ एक डॉक्युमेंटरी शूट करने विनोद कुमार शुक्ल के घर रायपुर गए थे। उनके इस पोस्ट के बाद लेखक और पाठक समाज की प्रतिक्रिया आनी शुरू हुई। जहाँ ज़्यादातर लोगों ने मानव कौल की सराहना की और विनोद कुमार शुक्ल का पक्ष लिया, वहीं साहित्य वर्ग के कुछ बड़े लोग मानव कौल को ‘ट्रोल’ करते नज़र आए। हिन्दी वेबसाइट जानकीपुल के संपादक प्रभात रंजन ने फ़ेसबुक पर पोस्ट किया, “कुल मिलाकर मुझे यह समझ आया कि मानव कौल लेखक भी हैं जिनके लेखन से विनोद जी के लेखन की ख़ुशबू आती है। मैं तो उनको अभिनेता समझता था। अच्छा अभिनेता।”
मानव कौल के पोस्ट के बाद 9 मार्च को निहाल पराशर के फ़ेसबुक अकाउंट से विनोद कुमार शुक्ल का एक वीडियो डाला गया। वीडियो में अपना पूरा जीवन हिन्दी लेखन में लगा देने वाले 85 साल के लेखक ने कहा, “मुझे अब तक मालूम नहीं हुआ था, कि मैं ठगा जा रहा हूँ।” विनोद कुमार शुक्ल ने अपनी किताबों पर बात करते हुए कहा, “मेरी सबसे ज़्यादा किताबें जो लोकप्रिय हैं, वे राजकमल और वाणी से प्रकाशित हुई हैं। ‘नौकर की कमीज़’ और ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के समय तो ई- बुक और किंडल जैसी चीज़ें नहीं थीं, मगर यह दोनों किताबें किंडल पर हैं।”
विनोद कुमार शुक्ल ने राजकमल प्रकाशन पर आरोप लगाते हुए कहा कि प्रकाशक जो रॉयल्टी स्टेटमेंट भेजते हैं, उसमें पिछले कुछ वर्षों से इस किताब का उल्लेख ही नहीं करते हैं। विनोद कुमार शुक्ल फिर कहते हैं, “मैं ऐसी उम्र में पहुँच गया हूँ जहाँ मैं इन चीज़ों पर ध्यान नहीं दे पाता और यह रह जाती हैं, और मैं ठगाता रहता हूँ।”
विनोद कुमार शुक्ल ने कहा है कि प्रकाशकों ने मेरी किताबों को बंधक बना लिया है और मैं अपनी किताबों को मुक्त करना चाहता हूँ। प्रकाशकों के बारे में विनोद कुमार शुक्ल कहते हैं, “यह बड़े लोग हैं, मैं इनसे स्वतंत्र होना चाहता हूँ।” उनका पूरा वीडियो यहाँ देखा जा सकता है।
रॉयल्टी की रक़म बेहद कम
न्यूज़क्लिक ने विनोद कुमार शुक्ल के बेटे शाश्वत गोपाल से फ़ोन पर बात की। उन्होंने बताया, “मानव कौल से बातचीत में बात निकली कि पिताजी को कितनी रॉयल्टी मिलती है। हमने उनको बताया कि वाणी प्रकाशन से पिछले साल जो रॉयल्टी आई है वो क़रीब 6000 रुपये है, और राजकमल से 14000 रुपये मिले हैं।”
शाश्वत बताते हैं कि पिछले 25 सालों में वाणी प्रकाशन से 3 किताबों की औसतन रॉयल्टी सालाना 5,500 रुपये आई है। राजकमल प्रकाशन से विनोद कुमार शुक्ल को सालाना क़रीब 15,000 रुपये मिले हैं। शाश्वत ने बताया कि यह सुन कर मानव कौल को विश्वास ही नहीं हुआ। उन्होंने कहा, “युवा लेखकों को 2-3 लाख रुपये मिल जाते हैं, मगर पिताजी की किताबों की रॉयल्टी इतनी कम कैसे है। वाणी ने स्टेटमेंट भेज कर बताया है कि 1996 से अब तक 1,35,000 रुपये क़रीब मिले हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “हमने वाणी को 2016 से कई पत्र लिखे थे कि आप ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ किताब का अगला संस्करण न छापें, और यदि आप छापते भी हैं तो हमसे पूछ कर छापें।”
वाणी प्रकाशन को पत्रों का जवाब देने में 4 साल से ज़्यादा समय लग गया। और जो जवाब आया, शाश्वत ने बताया कि आम सा जवाब था।
शाश्वत ने कहा, “हमें किंडल की जानकारी नहीं है। मानव जी जब आए थे तब उन्होंने दिखाया कि यह किताबें किंडल पर हैं। मगर वाणी ने हमें कभी सूचना नहीं दी, न ही रॉयल्टी स्टेटमेंट में इसका कोई ज़िक्र है।”
रॉयल्टी तक सीमित नहीं बात, प्रूफ़रीडिंग का भी है मामला
शाश्वत ने बताया कि उन्होंने वाणी प्रकाशन को पत्र लिख कर कहा था कि किताब ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ किताब में प्रूफ़ की बहुत ग़लतियाँ है। उन्होंने कहा, “हमने कहा था कि इसमें प्रूफ़ की ग़लतियाँ हैं इसलिए आप इसके अन्य संस्करण न छापें।”
बात किताबों की प्रूफ़रीडिंग की आई है तो एक बात बतानी ज़रूरी है। यह पहली बार नहीं है जब वाणी प्रकाशन की किताबों पर प्रूफ़ में ग़लतियों के इल्ज़ाम लगे हैं। इससे पहले वाणी से छपी मंटो सीरीज़ की कुल 26 किताबें, इस्मत चुग़ताई की किताबें, जौन एलिया की शायरी की किताब जो कुमार विश्वास के संपादन में छपी थी, उन किताबों में भी प्रूफ़ की बेहिसाब ग़लतियाँ हैं, जिनके बारे में समय-समय पर पाठकों ने वाणी को कहा है मगर उसमें अभी तक कोई सुधार नहीं हुआ है।
एक पाठक के तौर पर मैंने ख़ुद 2018 में वाणी प्रकाशन को मंटो और जौन एलिया की किताबों में ग़लतियों के बारे में बताया था। जिसके बाद चेयरमैन व प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्वरी ने मुझे मंटो सीरीज़ की किताबों को प्रूफ़रीड करने का काम करने को कहा था। मैंने एक दिन उनके दफ़्तर में बैठ कर ‘रोज़ एक कहानी’ किताब की प्रूफ़रीडिंग की थी, जिसमें बहुत ग़लतियाँ थीं, मगर अगले दिन मुझे यह कह कर मना कर दिया गया कि प्रकाशन को कोई उर्दू जानने वाला शख़्स चाहिए। वाणी का कहना था कि वो आगामी बुकफ़ेयर में इन किताबों की ग़लतियाँ ठीक कर के लॉन्च करेंगे। बुकफ़ेयर में नई किताबें आई थीं, मगर सिर्फ़ कवर बदले थे, अंदर की ग़लतियों में सुधार नहीं हुआ था। ऐसी ही ग़लतियाँ किताब “मैं जो हूँ जौन एलिया हूँ” में भी हैं। जबकि इन सभी किताबों के कई संस्करण छप चुके हैं।
प्रकाशकों का क्या कहना है?
न्यूज़क्लिक ने राजकमल प्रकाशन के सत्यानंद निरुपम को 9 मार्च को इस मसले पर टिप्पणी जानने के लिए फ़ोन किया। उन्होंने कहा कि वे जल्द ही प्रेस रिलीज़ जारी कर रहे हैं। राजकमल प्रकाशन ने प्रेस रिलीज़ जारी की मगर उसमें कम रॉयल्टी के बारे में कोई बयान नहीं दिया गया। प्रेस रिलीज़ में कहा गया, “‘नौकर की कमीज’ का पेपरबैक संस्करण राजकमल से छपा है। पिछले 10 वर्षों में इसके कुल पाँच संस्करण प्रकाशित हैं। हर संस्करण 1100 (ग्यारह सौ) प्रतियों का रहा है। जिसका ब्योरा नियमित रूप से रॉयल्टी स्टेटमेंट में जाता रहा है। इसका ई-बुक भी राजकमल ने किंडल पर जारी किया हुआ है, जिसकी रॉयल्टी विनोद जी को जाती रही है। विनोद जी हमारे लेखक परिवार के बुजुर्ग और प्रतिष्ठित सदस्य हैं। उनकी इच्छा का सम्मान हमारे लिए हमेशा सर्वोपरि है। वे जो चाहते हैं, हम वही करेंगे। हमारी तरफ से वे बंधन और परेशानी जैसी स्थिति एकाएक क्यों महसूस करने लगे, यह जानने के लिए हम उनसे मिलकर बात करेंगे। आगे वे जैसा कहेंगे, वही होगा।”
वाणी प्रकाशन के चेयरमैन व प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्वरी ने 9 मार्च को न्यूज़क्लिक से बात करते हुए इस बात से साफ़ इनकार कर दिया कि विनोद कुमार शुक्ल की कोई किताब किंडल पर भी है। उन्होंने कहा, “कोई खोजे और हमको भी दिखाये कि कहाँ है किताब। हमने गूगल से भी पूछा था कि कहाँ है किताब तो वह भी खोज रहे हैं। एक किताब ‘अतिरिक्त नहीं’ किंडल पर है, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ किताब तो किंडल पर नहीं है मेरे ख़याल से।”
प्रूफ़ की ग़लतियों के सवाल पर अरुण माहेश्वरी ने यही कहा कि हमने सुना है कि ग़लतियाँ हैं, हम एक साथ सब बातें करेंगे।
इसके बाद वाणी प्रकाशन ने 10 मार्च को प्रेस विज्ञप्ति जारी की। प्रूफ़रीडिंग में ग़लतियों के इल्ज़ाम पर वाणी के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी ने कहा, “वर्ष 2013 में मैंने एक पत्र में शुक्ल जी से कहा था कि ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के पृष्ठ संख्या 119 पर नीचे से ऊपर की ओर चौथी पंक्ति में ‘विभागाध्यक्ष’ के स्थान पर ‘प्राचार्य’ होना चाहिए- ऐसा एक पाठक ने सुझाव दिया है। इस क्रम में वर्ष 2016 में शुक्ल जी ने अपने पत्र में कहा कि ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के प्रूफ में कुछ और गलतियाँ भी हैं, वे उन्हें ठीक कराना चाहेंगे। उन्होंने इस पत्र में यह भी कहा कि अगला संस्करण उनकी जानकारी के बिना न छापें।
3 फ़रवरी 2017 को मैंने उन्हें पत्र में लिखा था कि वे संशोधन यथाशीघ्र भेजें ताकि पुस्तक कभी आउट ऑफ स्टॉक न हो। उनसे कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ। पुस्तक को दोबारा प्रूफरीड कर पाठकों के लिए नया संस्करण प्रकाशित किया गया। नये संस्करण का ब्यौरा उन्हें रॉयल्टी स्टेटमेंट में दिया गया है।”
वाणी ने इस प्रेस विज्ञप्ति में किताबों की रॉयल्टी परसेंट का भी ज़िक्र किया है।
विनोद कुमार शुक्ल के माध्यम से हिन्दी साहित्य के लेखन-प्रकाशन से जुड़े अहम संकट सामने आए हैं। ‘हिन्दी लेखक’ की एक तस्वीर हमारे ज़ेहन में बनी हुई है जो मनमोहक क़तई नहीं है बल्कि दयनीय है। जब विनोद कुमार शुक्ल यह कह रहे हैं कि मेरे प्रकाशकों ने मुझे ठग लिया, तो हमें एक हिन्दी पाठक होने के तौर पर चिंतित होना चाहिए।
न्यूज़क्लिक ने इस मसले पर हिन्द युग्म प्रकाशन के संपादक शैलेश भारतवासी से बात की। हिन्द युग्म प्रकाशन ‘नई वाली हिन्दी’ के तहत कई नए लेखकों की किताबें प्रकाशित करता रहा है। यहीं से मानव कौल की भी कई किताबें प्रकाशित हुई हैं। इस मसले पर शैलेश ने कहा, “हम यह भी मान सकते हैं कि जो रॉयल्टी विनोद जी को दी गई वो ठीक हो, लेकिन जिस तरह से प्रकाशकों ने उनके पत्रों का जवाब नहीं दिया, उनके मना करने के बाद भी किताब छाप रहे हैं, यह उदासीनता नहीं होनी चाहिए। आम तौर पर कम लेखकों को कम प्रकाशकों पर भरोसा होता है मगर प्रकाशकों की तरफ़ से यह कोशिश होनी चाहिए कि इस तरह की स्थिति न आए।”
प्रूफ़ की ग़लतियों पर बात करते हुए एक प्रकाशक के तौर पर शैलेश ने कहा, “हम उनकी पॉलिसी पर नहीं बात कर सकते हैं, लेकिन हमारी अपनी कोशिश यह होती है कि अगर किसी किताब में ग़लती रह गई हो तो हम हर नए एडिशन में वह ग़लतियाँ ठीक करते हैं।” शैलेश ने यह माना कि जब तक कोई मशीन न बन जाए किताब में ग़लतियाँ रहेंगी, मगर ग़लतियों को कम किया जा सकता है, अगर प्रकाशकों ने ऐसा नहीं किया तो यह एक प्रकार की उदासीनता है।
निहाल पराशर ने विनोद कुमार शुक्ल का वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा था कि उन्होंने कई साहित्यकारों से बात की जिनका कहना है कि यह हिन्दी साहित्य के लिए एक तरह से #metoo मोमेंट है। इस पर शैलेश ने कहा, “इससे एक तरह का शायद फ़ायदा होगा। मान लीजिये जो स्थापित प्रकाशन हैं उनके यहाँ एक तरह से रेड अलर्ट आएगा और वह इसे और पारदर्शी बनाने की कोशिश करेंगे, मेरे ख़याल से इसका लाभ मिलेगा सब लोगों को।”
विनोद कुमार शुक्ल के बेटे शाश्वत ने बताया कि अभी विनोद कुमार शुक्ल लगातार लिख रहे हैं। आने वाले दिनों में उनकी 2-3 किताबें आने वाली हैं। उन्होंने कहा, “यह सब हमारे लिए धक्के की तरह है। विश्वास बहुत बड़ी चीज़ होती है, जब विश्वास टूटता है तो अंधेरा सा हो जाता है। मैंने दादा (पिताजी) से इस पर बात नहीं की, क्योंकि कहीं न कहीं अंदर से उनका मन ठीक नहीं है, उनको महसूस हो रहा है कि मैं ठगा सा गया हूँ।”
शाश्वत ने बताया कि विनोद कुमार शुक्ल की यही इच्छा है कि वह दोनों प्रकाशनों से अपनी किताबें वापस लेना चाहते हैं और चाहते हैं कि इनका प्रकाशन अब न हो।