The nation is not a map drawn on a piece of paper
-Translated by Ayesha Kidwai
If one room in your house
is ablaze
Can you
just go sleep in another one?
If in one room of your house,
corpses rot and decay,
Then can you
just pray in another one?
If yes,
Then I have nothing
to say to you.
The nation is not a map
drawn on a piece of paper
so that even if an edge frays
the remaining parts stay intact;
and rivers, mountains, cities, villages
hold fast to their places
unperturbed.
If this is not your belief,
Then I do not want to live
with you.
In this world, there is nothing greater than a man’s life
Not god.
Not knowledge.
Not elections.
Any text written on a piece of paper
can be torn
And buried under
the seven folds of the earth.
A judgment
that stands bolstered by corpses
is blind.
A reign
that flows from the barrel of a gun
is the trade of assassins.
If this is not your belief,
then I no longer
have to bear with you,
even for a minute.
Remember:
The murder of a child
The death of a woman
The gaping wounds on the body
of a man rent by bullets,
are the defeat of not one regime
but the whole nation.
Such blood does not flow
to soak into the earth.
It rises to stain black
the flags that flutter in the sky.
The earth that bears the imprint of army jackboots
on which corpses fall
If that earth does not become fire
and course through your veins,
Then understand
that you have turned into a wasteland.
You have no right to even take a breath here
This world is no longer for the likes of you.
A last word, straight up.
Do not ever forgive
a murderer.
Be he your friend
Or the stakeholder of religion
Or the renowned chowkidar
of your democracy.
[…]
देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता
-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
यदि तुम्हारे घर के
एक कमरे में आग लगी हो
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में सो सकते हो?
यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में
लाशें सड़ रहीं हों
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो?
यदि हाँ
तो मुझे तुम से
कुछ नहीं कहना है।
देश कागज पर बना
नक्शा नहीं होता
कि एक हिस्से के फट जाने पर
बाकी हिस्से उसी तरह साबुत बने रहें
और नदियां, पर्वत, शहर, गांव
वैसे ही अपनी-अपनी जगह दिखें
अनमने रहें।
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे तुम्हारे साथ
नहीं रहना है।
इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ा
कुछ भी नहीं है
न ईश्वर
न ज्ञान
न चुनाव
कागज पर लिखी कोई भी इबारत
फाड़ी जा सकती है
और जमीन की सात परतों के भीतर
गाड़ी जा सकती है।
जो विवेक
खड़ा हो लाशों को टेक
वह अंधा है
जो शासन
चल रहा हो बंदूक की नली से
हत्यारों का धंधा है
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे
अब एक क्षण भी
तुम्हें नहीं सहना है।
याद रखो
एक बच्चे की हत्या
एक औरत की मौत
एक आदमी का
गोलियों से चिथड़ा तन
किसी शासन का ही नहीं
सम्पूर्ण राष्ट्र का है पतन।
ऐसा खून बहकर
धरती में जज्ब नहीं होता
आकाश में फहराते झंडों को
काला करता है।
जिस धरती पर
फौजी बूटों के निशान हों
और उन पर
लाशें गिर रही हों
वह धरती
यदि तुम्हारे खून में
आग बन कर नहीं दौड़ती
तो समझ लो
तुम बंजर हो गये हो-
तुम्हें यहां सांस लेने तक का नहीं है अधिकार
तुम्हारे लिए नहीं रहा अब यह संसार।
आखिरी बात
बिल्कुल साफ
किसी हत्यारे को
कभी माफ मत करो
चाहे हो वह तुम्हारा यार
धर्म का ठेकेदार
चाहे लोकतंत्र का
स्वनामधन्य पहरेदार।