उत्तर प्रदेश में चल रहे ‘बुलडोज़र राज’ और देश भर में लगातार मुसलमानों के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा के विरोध में नागरिक समाज ने दिल्ली के जंतर मंतर और यूपी भवन पर प्रदर्शन किया। साथ ही नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल के आपत्तिजनक बयानों को लेकर उनकी गिरफ़्तारी की भी मांग की।
सोमवार 13 जून को दिल्ली के नागरिक समाज के लोगों ने जंतर मंतर पर एक सिटीजन मार्च का आवाह्न किया था। यह मार्च प्रयागराज हिंसा के मुख्य आरोपी बताए जा रहे जावेद मुहम्मद और आफ़रीन फ़ातिमा के घर पर बुलडोज़र चलाये जाने के ख़िलाफ़ किया गया था। 12 जून को प्रयागराज में अधिकारियों ने आफ़रीन फ़ातिमा के घर को मलबे का ढेर बना दिया था जिसका व्यापक विरोध हो रहा है।
परंतु पुलिस ने इस मार्च में शामिल होने आए लोगों को जंतर मंतर के बाहर से ही बलपूर्वक और बर्बर तरीके से हिरासत में लिया। यही नहीं पुलिस ने मीडिया कर्मियों को भी जंतर मंतर पर नही जाने दिया। मौके पर मौजूद पुलिस ने कहा इस प्रदर्शन की अनुमति नहीं है। इसी तरह का एक प्रदर्शन उत्तर प्रदेश भवन पर फ़्रेटर्निटी मूवमेंट के आह्वान पर किया गया था। परंतु पुलिस ने वहां भी प्रदर्शन को अनुमति नहीं दी और प्रदर्शनकारियों को वहाँ पहुंचते ही हिरासत में ले लिया।
जंतर मंतर से हिरासत में लिए गए प्रदर्शनकारियों को थोड़ी ही देर में वापस ले आया गया मगर ख़बर लिखे जाने तक उत्तर प्रदेश से गिरफ़्तार हुए फ्रेटर्निटी मूवमेंट के लोगों को रिहा नहीं किया गया था।
इसके बाद प्रदर्शनकारी पुनः जंतर मंतर पर मौजूद पुलिस बैरीकेड के बाहर पहुंचे और प्रदर्शन किया। इस विरोध मार्च के माध्यम से लोगों ने देश में लगातार मुसलमानों पर हो रहे हमले की निंदा की और उसके ख़िलाफ़ दिल्ली के अलग-अलग वर्गों के छात्र, कलाकार, शिक्षक और आम नागरिक जंतर मंतर पर जमा हुए और हिंसा और हेट स्पीच का विरोध करते हुए अमन, मुहब्बत और भाईचारे की आवाज़ बुलंद की।
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि ये बुलडोजर फातिमा के घर पर नहीं बल्कि देश के संविधान पर चला है।
दिल्ली के नागरिक फ़रहान को पुलिस की बर्बरता का सामान करना पड़ा था। पुलिस ने उन्हें लात जूतों से मारते घसीटते हुए हिरासत में ले गई थी। लेकिन उनके हौसले टूटे नहीं और हिरासत से छूटने के बाद दोबारा जंतर मंतर पहुंचे और प्रदर्शन का हिस्सा बने। उन्होंने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, “अगर प्रोफ़ेसर रतन लाल को एक आपत्तिजनक पोस्ट पर गिरफ़्तार कर लिया गया था तो 16 दिन बाद भी नूपुर शर्मा को क्यों नहीं गिरफ़्तार किया गया है। जो नूपुर शर्मा के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे थे उनके घरों को तोड़ा जा रहा है। आफ़रीन ख़ान के पिता के नाम पर नोटिस भेजा गया जबकि उनके नाम पर वह घर है नहीं, उनकी पत्नी के नाम पर है।
ख़ुद पर हुई पुलिस बर्बरता की बात करते हुए फ़रहान ने कहा, “मुझे आज लात घूसों से पीटा गया, क्या मैं इंसान नहीं हूं। हमारी कम्यूनिटी को टारगेट किया जा रहा है। अगर कोई मुजरिम नहीं है और उस पर इस तरह की कार्रवाई की जा रही है तो हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट को भी ख़त्म कर दिया जाए। क्योंकि कोर्ट और संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
आगे का रास्ता एक ही है कि इस ज़ुल्म के ख़िलाफ़ सबको सड़क पर आना होगा। नहीं तो कल दलित सिख सबके घर तोड़े जाएंगे।”
प्रदर्शन में शमिल छात्र नेता प्रशंजित से जब पूछा गया कि आप इस प्रदर्शन में क्यों शामिल हुए? तो उन्होंने कहा, “जब मेरे पड़ोसी का घर तोड़ दिया जाता है वहां मैं चैन से कैसे रह सकता हूँ। यह बुलडोजर राज मानवता के खिलाफ़ है और यही बताने हम यहाँ आये हैं।”
दिल्ली विश्विद्यालय के हिंदु कॉलेज की छात्रा अदिति ने न्यूज़क्लिक से बातचीत करते हुए कहा देश में कभी भी बुलडोज़र से न्याय नही हो सकता है। उन्होंने कहा, “पहले की सरकारें भी जनता विरोधी थीं लेकिन उनमें कुछ शर्म थी लेकिन ये सरकार पूरी बेशर्मी के साथ गरीबों के खिलाफ है और साथ ही खुलेआम धर्म ने आधार पर मुसलमानों के खिलाफ़ हमले कर रही है।
यह देश को फासीवाद के रास्ते पर ले जा रहे हैं। कानून और कोर्ट को पर रखके बुलडोज़र से न्याय कर रहे हैं जो लोकतंत्र के खिलाफ है और यहां लोकतंत्र को बचाने आए हैं लेकिन पुलिस अब हमें प्रदर्शन भी नहीं करने दे रही है।”
दिल्ली आइसा के अध्यक्ष अभिज्ञान ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, “आप देखिये कि जगह-जगह बीजेपी बुलडोज़र न्याय के नाम पर तोड़फोड़ कर के नज़ीर बनाने का काम कर रही है। ऐसा इसलिये किया जा रहा है ताकि देश के हिन्दू में नफ़रत बढ़ती रहे। जंतर मंतर जो एक बुनियादी जगह थी विरोध करने की, उससे भी भारतीय जनता पार्टी पैरानॉयड हो गई है। क्योंकि उसे पता है कि छात्रों में, जनता में चेतना बढ़ रही है। मगर हम अपनी लड़ाई सड़कों पर जारी रखेंगे।
जेएनयू के छात्र नेता और एसएफ़आई जेएनयू के अध्यक्ष हरेंद्र ने कहा, “ये सरकार बुलडोजर से कानून और संविधान को कुचल रही है। लेकिन हम सड़क पर उतरकर संविधान और कानून बचाने आए हैं। हमारी मांग है कि देश में बुलडोज़र राज ख़त्म हो और देश में जहर घोलने वाली नूपुर शर्मा को गिरफ्तार किया जाए।”
सनद रहे बीते शुक्रवार, 10 जून को निलंबित बीजेपी सदस्य नूपुर शर्मा और निष्कासित सदस्य नवीन कुमार जिंदल द्वारा पैगंबर मुहम्मद पर विवादित टिप्पणी के विरोध में देश भर में प्रदर्शन हुए। कुछ जगहों पर प्रदर्शन हिंसक हो गए, और आगज़नी गोलीबारी जैसी घटनाएँ भी हुईं। पुलिस ने प्रयागराज में इस मामले में अब तक क़रीब 70 नामज़द और 5000 अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कर ली है और कुल 91 लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है। इनमें से 10 लोग ऐसे हैं जिन्हें मुख्य आरोपी बताया जा रहा है। यह 10 लोग एआईएमआईएम, पीएफ़आई, आइसा, सीपीआई-एम, सपा से जुड़े हुए हैं। और यह सभी लोग एंटी सीएए प्रदर्शनों के वक़्त भी सक्रिय थे और आंदोलन का हिस्सा रहे थे। पुलिस का दावा है कि इनमें से एक जावेद महम्मद को गिरफ़्तार कर लिया गया है और बाकियों की तलाश की जा रही है। जावेद मुहम्मद शहर के सामाजिक कार्यकर्ता हैं और एंटी सीएए प्रदर्शनों के वक़्त भी सक्रिय थे।
इस बीच रविवार को प्रशासन ने उनके शहर में स्थित माकन को बुलडोज़र से तबाह कर दिया और इसी तरह कई अन्य जगहों पर योगी आदित्यनाथं की सरकार ने बुलडोजर चलाए और इसे एक तरह से इंसाफ की तरह पेश किया। हालाँकि लोगों ने आरोप लगाया है कि जैसा कि पिछले कुछ सालो में ट्रेंड बन गया है, कोई भी घटना होती है तो उत्तर प्रदेश का प्रशासन तुरंत आरोपी के घर को अवैध घोषित कर बैक डेट में नोटिस इश्यू कर उन्हें तत्काल तोड़ने पहुँच जाता है और गलती से अगर आरोपी मुलसमान हो तो इस प्रक्रिया में और भी तेज़ी आ जाती है। जोकि पूरी तरह से प्राकृतिक न्याय ख़िलाफ़ है।
जावेद के करेली स्थित मकान के ध्वस्तीकरण के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है।
याचिका में बताया गया है कि उक्त मकान को परवीन फातिमा की शादी से पूर्व उनके माता पिता ने उन्हें उपहार में दिया था। चूंकि जावेद का उस मकान और जमीन पर कोई स्वामित्व नहीं है, इसलिए उस मकान का ध्वस्तीकरण कानून के मूल सिद्धांत के खिलाफ है।
वहीं आफ़रीन फ़ातिम ने बीती रात अलजज़ीरा से से बात करते हुए सवाल उठाया कि जब उनका घर अवैध था तो सरकार उनसे 20 साल से टैक्स क्यों ले रही है। उन्होंने बताया, “मेरी माँ और बहन को 30 घंटे से ज़्यादा समय तक ग़ैरक़ानूनी रूप से बंदी बना कर रखा गया और बताया नहीं गया कि वह कहाँ हैं। मेरे पिता को भी ग़ैरक़ानूनी रूप से जेल में रखा गया है।”
हमने इस पूरे मामले पर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अजय कुमार से बात करने का प्रयास किया और जानना चाहा कि हर घटना के बाद पुलिसया कार्रवाई का एक ही पैर्टन क्यों दिख रहा है। इसके लिए हमने उन्हें फोन लगाया तो उनके पीआरओ से बात हुई और उन्होंने कहा साहब अभी समीक्षा बैठक में है। हमने फिर दो घंटे बाद कॉल किया लेकिन बात नहीं हो सकी। पीआरओ ने आश्वस्त किया था की जैसे एसएसएसपी अजय कुमार फ्री होंगे वो हमारी बात करा देंगे। जैसे ही उनकी तरफ से रिप्लाई आएगा हम ख़बर अपडेट कर देंगे।