इसरायली कंपनी NSO के एक सॉफ्टवेयर पेगासस के ज़रिए पत्रकारों, नेताओं, जजों और उद्योगपतियों के फोन को हैक किया गया और उनकी जासूसी हो रही थी। भारत सरकार ने इस बात से इंकार किया है और दावा किया है के वो विचारों की अभिव्यक्ति के प्रति कटिबद्ध है।
पत्रकार और सांस्कृतिक कार्यकर्ता मुकुल सरल ने पेगासस जासूसी कांड को एक अलग नज़र से देखने-समझने की कोशिश की है। इस हफ़्ते बोल में पेश है उनकी कविता, आओ मेरी जासूसी कर लो।
आओ मेरी जासूसी कर लो
आओ मेरी जासूसी कर लो
दिलो-ज़हन में झांक के देखो
मुश्किल का अंबार लगा है
इसकी आहें, उसकी चीख़ें
जनता का दरबार लगा है
कुछ आंसू हैं, कुछ बातें हैं
कुछ ज़िंदा हैं, कुछ लाशें हैं
जो भी है बस करम तुम्हारा
जो भी है बस भरम तुम्हारा
आओ मेरी जासूसी कर लो
…
क्या पूछो हो? कौन हूं मैं जी?
गौर से देखो, और गौर से
मैं हूं हिन्दुस्तान तुम्हारा
सबसे प्यारा, जग में न्यारा
लेकिन मेरे नाम पे तुमने
कैसा क़त्लेआम मचाया
इसको लूटा, उसको मारा
अपने जन को खूब सताया
मुझको तो हैरत होती है
सामने की चीज़ें न दिखतीं
फिर छुप-छुपके क्या देखो हो
रजधानी के द्वार पे देखो
कबसे अन्नदाता बैठा है
और फैक्ट्री के गेटों पर
मेहनतकश मजबूर खड़े हैं
डिग्री लेकर घूम रहे हैं
लाखो-लाख जवां हमारे
मांग रहे हैं काम का हक़ वो
सुने हैं वादे बहुत तुम्हारे
अगर सही जासूसी करते
तुमको सब मालूम होता
तुमको ये मालूम होता
कितने घर में
दाल नहीं है
भात नहीं है
दवा नहीं
इलाज नहीं है
अगर सही जासूसी करते
सांसों का संकट न होता
गांगा-जमुना के घाटों पर
फिर ऐसा मरघट न होता
अगर सही जासूसी करते
…
अब भी देखो, देख लो आकर
महंगाई की मार ये देखो
न्याय की पुकार ये देखो
पैदल देखो, कार ये देखो
सर पे है उधार ये देखो
देख सको तो ज़रा देख लो
कैसा हाहाकार यहां है
फिर मुझको बतलाओ साहिब
आपकी सरकार कहां है?
फोन-वोन क्या, मेल-वेल क्या
सीधे आकर मुझसे मिल लो
आकर घर में चेक करो खुद
आटा है क्या, चावल है कुछ
आओ मेरी जासूसी कर लो
इससे पहले मैं मर जाऊं
और तुम्हारे काम न आऊं
आओ मेरी जासूसी कर लो
…
आओ मेरी जासूसी कर लो
दिलो-ज़हन में झांक के देखो
मुश्किल का अंबार लगा है
इसकी आहें, उसकी चीख़ें
जनता का दरबार लगा है
आओ मेरी जासूसी कर लो