ट्राइबल राइट्स एक्टिविस्ट स्टेन स्वामी का वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखे जाने के दो दिन बाद 5 जुलाई को निधन हो गया। स्वामी को पिछले साल 8 अक्टूबर को एल्गार परिषद मामले में उनकी कथित संलिप्तता के लिए गिरफ़्तार किया गया था। फादर स्टेन स्वामी की मृत्यु हमारे भारतीय न्यायपालिका के लिए एक काला दिन है क्योंकि वे एक बीमार और वरिष्ठ नागरिक को ज़मानत जैसे बुनियादी अधिकार देने में भी असमर्थ रही।
वह आदिवासियों और उनके अधिकारों के लिए जीते थे, अपने लिए कभी नहीं।
बोल के इस हफ़्ते की पेशकश — कवि, लेखक और स्वतंत्र पत्रकार जसिंता करकेट्टा की कविता “चुप्पी” — उस सामाजिक न्याय और समानता के मूल्यों के लिए संघर्ष जारी रखने का संकल्प है, जिसके लिए स्टेन स्वामी ने अपनी पूरी ज़िन्दगी न्योछावर कर दी।
कहाँ जाएगा एक दिन इतना ग़ुस्सा
जो नहीं दिखता कहीं भी सड़क पर
नहीं कहता कुछ भी, किसी भी विषय पर
एक दिन उनकी इतनी चुप्पी का सन्नाटा ही
लील जाएगा सबकुछ पालक झपकते।।