• About Us
  • Contact Us
  • Copyright, Terms and Conditions
  • Events
  • Grievance Redressal Mechanism
  • Home
  • Login
Indian Cultural Forum
The Guftugu Collection
  • Features
    • Bol
    • Books
    • Free Verse
    • Ground Reality
    • Hum Sab Sahmat
    • Roundup
    • Sangama
    • Speaking Up
    • Waqt ki awaz
    • Women Speak
  • Conversations
  • Comment
  • Campaign
  • Videos
  • Resources
  • Contact Us
    • Grievance Redressal Mechanism
  • About Us
No Result
View All Result
  • Features
    • Bol
    • Books
    • Free Verse
    • Ground Reality
    • Hum Sab Sahmat
    • Roundup
    • Sangama
    • Speaking Up
    • Waqt ki awaz
    • Women Speak
  • Conversations
  • Comment
  • Campaign
  • Videos
  • Resources
  • Contact Us
    • Grievance Redressal Mechanism
  • About Us
No Result
View All Result
Indian Cultural Forum
No Result
View All Result
in Features, Speaking Up

भय व प्रलोभन की राजनीति

bySandeep PandeyandBobby Ramakant
May 3, 2021
Share on FacebookShare on Twitter

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डिया, जो भारत की दो में से एक कोविड के टीके बनाने वाली कम्पनी है, के मालिक अडार पूनावाला ने एक ट्वीट कर कहा है कि राज्य सरकारों को टीके बेचने की दर रु. 400 प्रति टीके से घटा कर रु. 300 कर वे सरकार के हजारों करोड़ रुपए बचा रहे हैं और अनगिनत लोगों की जानें। सीरम इंस्टीट्यूट को ऑक्सफोर्ड-एसट्राजेनेका द्वारा शोध कर यह टीका बनाने के लिए दिया गया था। ऑक्सफोर्ड-एसट्राजेनेका ने कह दिया था कि वह इस जीवनरक्षक टीके पर कोई मुनाफा नहीं कमाएंगे क्योंकि इस शोध में 97 प्रतिशत पैसा जनता का लगाथा। अडार पूनावाला पहले इसे रु. 1000 प्रति टीका बेचना चाहते थे। सरकार ने रु. 250 की ऊपरी सीमा तय की तो सीरम इसे रु. 210 प्रति टीका बेचने को तैयार हुआ। बाद में इसका दाम घटा कर रु. 150 कर दिया। अडार पूनावाला ने माना है कि इस दर पर भी वे मुनाफे में हैं। फिर उन्होंने घोषणा कर दी कि 1 मई 2021 से, जब यह टीका 18 से 44 वर्ष आयु वालों को भी लगने लगेगा, वह केन्द्र सरकार को तो उसी दर पर देंगेलेकिन राज्य सरकारों को रु. 400 पर व निजी अस्पतालों को रु. 600 में। निर्यात की दरें अलग होंगी लेकिन मुख्य बात यह है कि पूरी दुनिया में यह टीका भारत में ही सबसे महंगा होगा। काफी हंगामा होने के बाद अब उन्होंने राज्य सरकारों के लिए दर घटाई है।

भारत बायोटेक दूसरी कम्पनी है जो भारत में ही भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान द्वारा शोध पर आधारितटीके का निर्माण कर रही है और पहले उसे रु. 295 में केन्द्र सरकार को बेच रही थी। फिर उसने दाम घटा कर रु. 150 प्रति टीका किया। अब 1 मई से उसने घोषणा की है कि वह राज्य सरकारों को रु. 600 प्रति टीका और निजी अस्पतालों को रु. 1200 में बेचेगी। हो-हल्ला होने पर उसने राज्य सरकारों के लिए दर रु. 400 की है।

अडार पूनावाला के अपने कथन से स्पष्ट है टीके को बढ़ी दर पर बेच कर वे जनता के धन का अपव्यय कर रहे हैं और कई लोगों को जीवन से वंचित कर रहे हैं जो बढ़ी दरों पर टीका नहीं खरीद पाएंगे। क्या इस संकट के समय पर भी उन्हें मुनाफाखोरी वाला रवैया अपनाना चाहिए?

आश्चर्य की बात लगती है कि जिसे न्यायालय ने राष्ट्रीय आपातकाल का समय बताया है उसमें निजी कम्पनियां अपने टीकों की मनमानी दरें तयकर रही हैं। आखिर नरेन्द्र मोदी सरकार ने उनको यह छूट क्यों दी है?

पोलियो और स्मॉल पॉक्स रोगों का दुनिया से उन्मूलन कैसे हो पाता यदि सरकारों ने टीके निःशुल्क हर गरीब-अमीर देश की जनता तक न पहुंचाए होते? जन स्वास्थ्य की आपातकाल स्थिति में सरकार को महामारी पर नियंत्रण स्थापित करना है तो उसका दायित्व है कि कम्पनियों की मुनाफाखोर प्रवृत्ति पर रोक लगाए और वे न मानें तो उनका राष्ट्रीयकरण कर ले। तब माना जाएगा कि नरेन्द्र मोदी मजबूत प्रधान मंत्री हैं और राष्ट्रवादी नेता हैं।

चूंकि भारत बायोटेक जिस टीके को बना रही है, उसका जरूरी शोध कार्य एक सरकारी संस्थान में हुआ है, संभवतः इसीलिए इसका बौद्धिकसंपत्ति का अधिकार सरकार के पास है। शायद इसीलिए सरकार ने एक और कम्पनी हैफकीन को इसी टीके को बनाने की मंजूरी दी है। यदि सरकार के पास इस टीके का बौद्धिक संपत्ति अधिकार है तो महामारी की वैश्विक आपदा को देखते हुए, प्रधानमंत्री के पास सुनहरा अवसर है भारत की दशकों पुरानी वैश्विक फार्मेसी की छवि को नया आयाम दें – वह इस टीके को बनाने का अधिकार भारत और दुनिया के अन्य सभी देशोंकी कम्पनियों को दे सकते हैं जिससे भारतीय पहल पर अधिक से अधिक जीवन रक्षा हो सके। क्या नरेन्द्र मोदी के पास इतना बड़ा दिल है?

किसान आंदोलन से स्पष्ट हो गया है कि किसानों के नाम पर बनाए गए तीन विवादास्पद कानून असल में पूजीपतियों के हित में हैं और इसीलिए हमारे प्रधान मंत्री उनको वापस नहीं ले रहे जबकि किसानों को दिल्ली सीमा पर बैठे अब पांच महीने हो गए हैं और कोरोना काल में भी वह वापस जाने को तैयार नहीं हैं। नरेन्द्र मोदी सरकार ने पूंजीपतियों द्वारा राजनीतिक दलों को चंदा देने की व्यवस्था में कुछ आपत्तिजनक परिवर्तन कर दिएहैं। अब कोई भी निजी कम्पनी चुनावी बांड के माध्यम से कितना भी चंदा किसी दल को दे सकती है और देने वाले की पहचान को गोपनीय रखनेके लिए सूचना के अधिकार अधिनियम में बैंक यह जानकारी सार्वजनिक नहीं कर सकते। राजनीति दलों को रुपए 20,000 से ज्यादा के किसी भी चंदे देने वाले की पैन कार्ड संख्या सहित पूरी जानकारी चुनाव आयोग को देनी होती है किंतु यदि चंदा चुनावी बांड के माध्यम से दिया जा रहा है तो यह अनिवार्य नहीं है। पहले कोई कम्पनी अपने पिछले तीन वर्ष के औसत मुनाफा का 7.5 प्रतिशत तक ही राजनीतिक दलों को चंदा देसकती थी, किंतु अब यह सीमा हटा ली गई है। भारतीय जनता पार्टी को उसके द्वारा बनाई गई ऐसी अनैतिक व अपारदर्शी व्यवस्था के माध्यम से किसानों को आशंका है कि अडाणी व अंबानी ने बेहिसाब चंदा दिया है जिसकी वजह से नरेन्द्र मोदी के हाथ बंधे दिखाई पड़ रहे हैं।

ऐसा प्रतीत हो रहा है कि ठीक यही कहानी अब अडार पूनावाला व भारत बायोटेक के साथ दोहराई जा रही है। सीरम इंस्टीट्यूट व भारत बायोटेक को मनमाना मुनाफा कमाने की छूट देने के पीछे कहीं न कहीं भारतीय जनता पार्टी को परोक्ष-प्रत्यक्ष लाभ तो मिलेगा ही। हमारे प्रधान मंत्री पहले कह चुके हैं कि वे गुजराती हैं व व्यापार खूब समझते हैं। ऐसा लगता है यही नरेन्द्र मोदी का व्यापारिक खेल है जो अब अपने नग्न रूप में सामने आरहा है। नरेन्द्र मोदी ने इसे कोई छुपाने की कोशिश भी नहीं की है। वे खुले आम अडाणी के हवाई जहाज से चलते हैं और अम्बानी के विज्ञापन मेंआते हैं। सीरम इंस्टीट्यूट व भारत बायोटेक को उन्होंने सरकार की ओर से रु. 4,500 करोड़ का अनुदान भी दिया है।

दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री हैं जिन्होंने सरकार की ज्यादा बदनामी होते देख ऐलान कर दिया कि यदि अस्पताल जान बूझ कर ऑक्सीजन की कमी होने की सूचना बाहर लगाएंगे तो उनके खिलाफ कार्यवाही होगी। इसका परिणाम यह होगा कि अब वास्तविक कमी होने पर भी कोई अस्पताल भय के कारण बाहर सूचना नहीं लगा सकता और मरीजों को भ्रम में रखने के लिए मजबूर होगा। योगी आदित्यनाथ ने एक और ऐलान किया है कि अस्पताल के बाहर ऑक्सीजन का मास्क लगे हुए मरीज पाए जाएंगे तो जिलाधिेकारी एवं मुख्य चिकित्सा अधिकारी उत्तरदायी होंगे। यानी जब अस्पतालों में जगह नहीं होगी तो ऑक्सीजन की कमी की वजह से संकट की परिस्थिति में मास्क लगाए जो मरीज अस्पतालों के बाहर मिलेगा अब पुलिस उसे जबरन हटाएगी। विदेश मंत्री जयशंकर ने दूतावासों से कहा है कि भारत की जो नकारात्मक खबरें बाहर जा रही हैं उसका जवाब दें। काश वे यह कहते कि दूतावास भारत के लिए और मदद जुटाएं। भारतीय जनता पार्टी इस विषम दौर में भीअपनी छवि की ही ज्यादा चिंता कर रही है। अखबारों को डरा-धमका अपने अनुकूल खबरें छपवा रही है। उदाहरण के लिए एक खबर का शीर्षक है हरेक 100 संक्रमित में पंजाब-बंगाल में दो मौतें हो रही हैं और उत्तर प्रदेश में एक। भाजपा लाशों पर राजनीति कर अपने को अभी भी विपक्षीदलों से बेहतर दिखाने की कोशिश कर रही है। क्या ऐसी सोच से कभी कोविड की प्रभावशाली रोकथाम की जा सकती है? हर जीवन अनमोल हैतो फिर हर 100 संक्रमितों पर मृत्यु की संख्या क्यों देखी जाए? कुल मृत्यु का आंकड़ा देखें तो पता चलेगा कि महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्णाटक और तमिलनाडू के बाद सबसे अधिक कोविड मृत्यु उत्तर प्रदेश में हो रही हैं। माॉडल कोविड रोकथाम का प्रचार करने वाली उत्तर प्रदेश सरकार यह भी देखे कि महाराष्ट्र, केरल व कर्णाटक के बाद सबसे अधिक कोविड प्रभावित उत्तर प्रदेश में हैं। यदि संक्रमण पर नियंत्रण सफल रहता, स्वास्थ्यव्यवस्था सशक्त की गई होती, स्वास्थ्य निवेश को दस गुणा बढ़ाया गया होता, स्वास्क्य कर्मियों की संख्या में बढ़ोतरी की गई होती और उन्हेंसभी श्रम अधिकार सुलभ होते, पोषण और भोजन सुरक्षा हर इंसान को उपलब्ध होती तो कोविड महामारी की चुनौती इस कदर विकराल रूप नले पाती। अन्य महामारियां जैसे कि शराब व तम्बाकू जनित रोग जिनमें हृदय रोग, पक्षघात, कैंसर, मधुमेह, क्षय रोग, आदि प्रमुख हैं, भी असामयिक मृत्यु का कारण न बनते। पर उत्तर प्रदेश सरकार ने तो पिछले वर्ष तालाबंदी में कुछ हफ्ते बाद ही शराब व तम्बाकू विक्रय को छूट देदी जबकि शराब व तम्बाकू जनित रोगों से कोविड होने पर गम्भीर परिणाम, मृत्यु तक, होने का खतरा बढ़ जाता है।

अब समय आ गया है पूछने का कि कितनी मौतों के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री और देश के प्रधान मंत्री अपने को उत्तरदायी मानेंगे?

Related Posts

“ढाई आखर प्रेम”: एक अनोखी पदयात्रा
Speaking Up

“ढाई आखर प्रेम”: एक अनोखी पदयात्रा

byNewsclick Report
Experience as a Muslim Student in a Different era
Speaking Up

Experience as a Muslim Student in a Different era

byS M A Kazmi
What’s Forced Dalit IITian To End His Life?
Speaking Up

What’s Forced Dalit IITian To End His Life?

byNikita Jain

About Us
© 2023 Indian Cultural Forum | Copyright, Terms & Conditions | Creative Commons LicenseThis work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License
No Result
View All Result
  • Features
  • Bol
  • Books
  • Free Verse
  • Ground Reality
  • Hum Sab Sahmat
  • Roundup
  • Sangama
  • Speaking Up
  • Waqt ki awaz
  • Women Speak
  • Conversations
  • Comment
  • Campaign
  • The Guftugu Collection
  • Videos
  • Resources
  • About Us
  • Contact Us
  • Grievance Redressal Mechanism

© 2023 Indian Cultural Forum | Creative Commons LicenseThis work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Create New Account!

Fill the forms bellow to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In