Delhi Young Artists’ Forum (DYAF) का गठन खानपुर, वज़ीरपुर, कुसुमपुर पहाड़ी और रोहिणी के युवक युवतियों के साथ मिल कर 2007 में किया गया. बस्ती समुदाय के युवक-युवतियों को अपने जीवन के सवाल और उलझनों को सांस्कृतिक माध्यमों के जरिया अभिव्यक्ति करने का माका देना इस फोरम का प्रमुख उद्देश्य है. जहां एक तरफ दिल्ली के अन्दर अच्छे अच्छे स्कूल हैं जिन में पढ़ाई, खेलकूद एंव सांस्कृतिक कार्यक्रमों व मनोरंजन से लेकर ऐतिहासिक धरोहरों के भ्रमण आदि कराये जाते हैं, जिनसे उनका ज्ञान बढ़ता है एवं दिलचस्पी भी बनी रहती है। वहीं दूसरी ओर शहर के गरीब युवा जो झुग्गी बस्तियों, पुनर्वास कालोनियों एवं कच्ची कालोनियों में रहते हैं, न तो उनकी स्कूली शिक्षा उतनी अच्छी होती है और न खेलकूद, सांस्कृति व ऐतिहासिक चीजों को देखने समझने का मौका मिलता है। कारनवश एक समय के बाद युवाओं में पढ़ने की दिलचस्पी समाप्त हो जाती है साथ ही साथ अच्छे स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे बच्चियों को बेहतर स्थिती में देख कर निराशा भी होने लगती है जो धीरे धीरे अलग रास्ते पर ले जाती है। युवाओं में कला, संस्कृति, खेलकूद, शिक्षा, ऐतिहासिक धरोहरों का भ्रमण एंव इस तरह के अन्य माध्यमों का इस्तामाल कर युवाओं को एकजुट कर उनकी कला के द्वारा उनके मुददों को समाज के सामने एंव खासतौर पर युवाओं के सामने लाने के लिए दिल्ली यंग आर्टिस्ट्स फोरम का गठन किया गया था और वह सिलसिला लगातार जारी है।
अनलॉक प्रक्रिया के दौरान बस्ती समुदाय में पछले 6 महीनों में स्वास्थ्य, शिक्षा एवं अन्य ज़रूरी मुद्दों पर, महामारी के दौरान जोखिम उठाते हुए DYAF से जुड़ कर युवतियों ने सराहनीय पहल की है.
जुलाई में दिल्ली की अलग-अलग बस्तियों में युवाओं ने लॉकडाउन के असर को दर्शाते हुए एक हफ्ते में लगभग 60 पेंटिंग बनाई जिसमें मां के रोज़गार का बंद होना और मां का तेल की फैक्ट्री से वापस आने का चित्रण है। मोबाइल पर पढ़ाई कितनी मुश्किल है, मजदूर किस प्रकार स्पेशलट्रेन में चढ़ कर अपने गांव जा रहे हैं एवं ज़मीन और रोटी के बीच कोरोना आ गया है जैसे ख्याल को पेंटिंग द्वारा रखा गया।
बंद स्कूल के कारण क्लास की पढ़ाई ज़ूम पर चलने से एक हाथ में मोबाइल और दूसरे हाथ में किताब लेकर पढ़ाई करना मुमकिन नहीं, इससमस्या को देखते हुए गत्ते का मोबाइल स्टैंड नेट से देख कर बनाना सीखा गया एवं युवा-युवतियों को सिखाया एवं वितरण भी किया गया।
अगस्त में जब बच्चे घरों में बंद और परेशान थे, स्वतंत्रता दिवस को अवसर बनाते हुए छोटे बच्चों में झंडा पेंटिंग का कार्यक्रम रखा गया एवं उनतक स्टेशनरी पहुंचाई गई, यह सिलसिला 4 दिनों तक चला, इस कार्यक्रम में भलस्वा एवं बवाना के लगभग 600 छोटे बच्चे शामिल हुए।
महामारी के दौरान सुरक्षा का ध्यान रखते हुए युवतियों ने सामाजिक दूरी का ध्यान रखते हुए भलस्वा में ध्वजारोहण का कार्यक्रम किया, जिसमेंभीड़ को इकठ्ठा नहीं होने देते हुए कार्यक्रम की शुरुआत हुई एवं अंत तक ऐसी ही स्थिति बनी रही।