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यूपी: क्या वाकई धर्मांतरण कानून के दुरुपयोग का कोई खतरा नहीं है!

bySonia Yadav
January 11, 2021
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धर्मांतरण
Image Courtesy Newsclick

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार एक ओर इलाहाबाद हाईकोर्ट में नए धर्मांतरण कानून के बचाव में हलफनामा दाखिल कर यह समझाने की कोशिश कर रही है कि यह कानून एक खास वजह से लाया गया है और इसके दुरुपयोग का कोई खतरा नहीं है। तो वहीं दूसरी ओर उसी हाईकोर्ट में धर्मांतरण के ही एक आरोप में केस दर्ज होने के महीने भर बाद अब सरकार यह कह रही है कि आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत ही नहीं मिले हैं। यानी मामला आनन-फानन में केवल शक के आधार पर दर्ज कर लिया गया, गिरफ्तारी हुई और अब जांच में जबरन धर्म परिवर्तन के आरोप बेबुनियाद निकले।

क्या है पूरा मामला?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के धर्मांतरण विरोधी कानून लागू होने के एक दिन बाद 29 नवंबर 2020 को मुजफ्फरनगर के मंसूरपुर पुलिस थाने में पेशे से मज़दूर नदीम (28) और उनके भाई सलमान (29) के खिलाफ अवैध रूप से धर्म परिवर्तन कराने का मामला दर्ज कराया गया था।

उत्तराखंड के एक फर्म में मजदूरों के ठेकदार के तौर पर काम करने वाले शिकायतकर्ता अक्षय कुमार ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। अक्षय के मुताबिक नदीम का उसके घर आना जाना था और इसी दौरान उसने अक्षय की पत्नी को फंसा लिया।

अक्षय का आरोप था कि नदीम उसकी पत्नी का धर्म परिवर्तन करवाकर उससे शादी करना चाहता था। इस काम में उसकी मदद सलमान कर रहा था। अक्षय ने यह भी कहा कि जब उसने इसका विरोध किया तो दोनों ने उसे धमकाया।

सरकार ने कोर्ट में क्या कहा?

यूपी सरकार की तरफ से संयुक्त निदेशक (अभियोजन) अवधेश पांडे ने बीती सात जनवरी को हाईकोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि जांचकर्ता अधिकारी को धर्मांतरण विरोधी कानून के प्रावधानों से संबंधित किसी अपराध में आरोपियों के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है।

यही नहीं, एफिडेविट में इस पूरे मामले पर ही सवाल खड़े किए गए। कहा गया कि जांच से पता चला कि नदीम का महिला के साथ कोई अनैतिक संबंध था ही नहीं। यह बात जांच के दौरान महिला ने बयान में भी कही। हालांकि नदीम ने अक्षय को धमकाया जरूर था। इस मामले में उपयुक्त धाराओं के अनुसार आरोपी पर कार्रवाई होगी।

शक में दर्ज कराया गया पूरा मामला

इस मामले में चार्जशीट 31 दिसंबर को फाइल की गई थी। नदीम ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए आरोप लगाया कि महिला के पति ने उस पर बेवजह शक करते हुए बेबुनियाद आरोप मढ़ दिए थे।

उनके वकील सैयद फरमान नकवी ने कहा कि सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि सलमान को क्लीनचिट दी गई, नदीम के खिलाफ धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत कोई सबूत नहीं मिले।

मंसूरपुर पुलिस थाने के एसएचओ कुशाल पाल सिंह ने कहा कि महिला ने अपने बयान में उन पर किसी भी तरह के धर्मांतरण के प्रयास के आरोपों से इनकार किया। उन्होंने पुलिस को बताया कि उनके पति को शक था कि उनका नदीम के साथ संबंध है। हालांकि, धमकी दिए जाने के सबूत मिले हैं।

नदीम के खिलाफ आईपीसी की धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से जान-बूझकर अपमान करना) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज किया गया।

बता दें कि इससे पहले, यह मामला जब कोर्ट के सामने आया था, तो नदीम के खिलाफ आपराधिक केस चलाने पर रोक लगा दी गई थी। कोर्ट ने 18 दिसंबर की सुनवाई में टिप्पणी की थी कि आरोपी और महिला दोनों ही बालिग हैं और ये उनकी निजता का मौलिक अधिकार है। ऐसा कोई भी सबूत सामने नहीं आया है, जिससे साबित हो कि धर्म बदलवाने के लिए दबाव डाला जा रहा है। पहली नजर में तो सभी आरोप बस शंका लग रहे हैं।

कई मामले संदेह के घेरे में हैं!

गौरतलब है कि राज्य में 28 नवंबर को धर्मांतरण विरोधी कानून के लागू होने के बाद से अब तक 16 मामले दर्ज किए जा चुके हैं। इनमें से अधिकतर मुक़दमों में मुस्लिम युवक को गिरफ़्तार किया गया है। कई मामले संदेह के घेरे में हैं तो वहीं कुछ में पुलिस पर दोहरा रवैया अपनाने जैसे आरोप भी लग रहे हैं।

हैरानी की बात ये है कि अधिकतर मामलों में महिला ने ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन का कोई आरोप नहीं लगाया है। जिसके चलते बार-बार इस कानून के दुरुपयोग की बातें सामने आ रही है। धड़ाधड़ एफ़आईआर, गिरफ्तारियां और इस संबंध में पुलिस की अतिसक्रियता पर एक के बाद एक कई सवाल उठ रहे हैं।

बिजनौर में अपनी दोस्त के साथ जा रहे मुस्लिम लड़के को ‘लव जिहाद’ के आरोप में जेल भेजा गया। पुलिस के मुताबिक दलित नाबालिग लड़की के पिता के कहने पर एफ़आईआर दर्ज की गई है, जबकि पिता ने खुद इस बात से इनकार किया।

मुरादाबाद का मामला तो कई दिनों सुर्खियों में रहा था। इसमें पुलिस पर आरोप लगा कि उन्होंने बजरंग दल के प्रभाव में एक निर्दोष दम्पति का उत्पीड़न किया, और बाद में इसी उत्पीड़न की वजह से महिला को अपना गर्भस्थ बच्चा गंवाना पड़ा। ऐसे में इस कानून के कारण महिला शोषण और मुस्लिम युवकों के उत्पीड़न की बात भी सामने आई।

कानून के पीछे सरकार की असली मंशा पर उठ चुके हैं सवाल

महिलावादी संगठन, नागरिक समाज के लोग और कुछ जानकर पहले ही इस पूरे अध्यादेश को लाने के पीछे सरकार की असली मंशा पर सवाल उठा चुके हैं। इसके अलावा पूर्व अधिकारियों द्वारा लिखा गया पत्र भी निश्चित ही सरकार के लिए चिंता की बात होना चाहिए।

आपको मालूम है कि इस संबंध में हाल ही में सौ से अधिक पूर्व नौकरशाहों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक चिट्ठी लिखी थी। इस चिट्ठी में उन्होंने सीएम योगी से ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध क़ानून, 2020‘ को वापस लेने और इसके तहत नामज़द लोगों को उचित मुआवज़ा देने की मांग की थी।

इन पूर्व अधिकारियों ने अपने ख़ुले ख़त में लिखा था कि इस क़ानून ने उत्तर प्रदेश को नफ़रत, विभाजन और कट्टरता की राजनीति का केंद्र बना दिया है। इस कानून की वजह से यूपी की गंगा-जमुनी तहजीब को चोट पहुंची है और समाज में सांप्रदायिकता का जहर फैला है।

First published in Newsclick on January 9, 2020.

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