“वक़्त के साथ बढ़ती जाएगी मरणोपरांत हमारे कवि की जरूरत”
मंगलेश डबराल की इन पंक्तियों में मानो उनके न होने के मायने का ही बयान है. मंगलेश के लेखन और काव्य में जहां एक ओर एक संवेदनशीलता, कोमलता थी, वहीँ आततायी ताकतों और सत्ता का तीव्र विरोध भी. वामपंथी विचारधारा से परिचित होने के बाद उससे कभी विचलित नहीं हुए. संघर्ष के हर मंच पर उपस्थित रहे और राजनैतिक सामाजिक जटिलताओं के बारे में अनवरत लिखते रहे.
ऐसे ही कवि की आज के अँधेरे दौर में सख़्त ज़रुरत हैं. मंगलेश डबराल की याद में, बोल के इस अंक प्रस्तुत है उनकी नज़्म “कुछ देर के लिए”, गौहर रज़ा की आवाज़ में. इस नज़्म में मंगलेश के काव्यत्व का समूचा मर्म है.