72 वर्षीय मंगलेश डबराल ने पांच कविता संग्रहों में फैले अपने लेखन में समकालीन हिंदी कविता में एक ऐसा नया स्वर जोड़ा था, जो अपने कलेवर में जितना शांत, धीमा तथा चकित करने या चौंकाने के कौतुकों से दूर था, उतना ही अपने मूल्यों तथा प्रतिबद्धताओं में दृढ़ था। हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता में भी उन्होंने ऐसे ही अपनी महत्वपूर्ण जगह बनायी थी।
मंगलेश, सांप्रदायिक-तानाशाही के वर्तमान निजाम के सांस्कृतिक प्रतिरोध की अगली कतारों में थे। देश में बढ़ती शासन-पोषित असहिष्णुता के खिलाफ पुरस्कार वापसी के जरिए आवाज उठाने में भी वह शामिल थे और इस सिलसिले में 2015 में उन्होंने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाया था। सहमत को शुरू से ही उनका सहयोग हासिल रहा था और वह अक्सर सहमत के आयोजनों में शरीक होते थे।
सहमत अपने सांस्कृतिक हस्तक्षेप के इस महत्वपूर्ण सहयोगी के बिछुड़ने पर हार्दिक दुःख प्रकट करता है और उनके परिवारीजनों के साथ गहरी संवेदना व्यक्त करता है।