विचारधारा
देसी या विदेशी नहीं होती
आधुनिकता देसी या विदेशी नहीं होती
विकास देसी या विदेशी नहीं होता
न्याय-समानता की परिभाषाएं विदेशी नहीं होती
हवाई जहाज विदेश में ईजात हुआ बोलकर
हम उसमें उड़ना नहीं छोड़ते
बुद्ध का धम्म और दर्शनशास्त्र
देश-विदेश में कहा-सुना-अपनाया जाती है
अम्बेडकर के लोकतान्त्रिक मूल्य
देश-विदेश में कहे-सुने-अपनाए जाते हैं
गाँधी को भी तुम विदेश में फैलने से नहीं रोकते
कार्ल मार्क्स का धर्म को अफ़ीम कहना
और वर्ग संघर्ष की बातें
देश-विदेश में कही-सुनी-अपनाई जाती है
मानव सभ्यता में हुए बेहतरी
धीरे-धीरे सभी लोगों के पास पहुंचती भी है
और लोग उन्हें अपनाते भी हैं
लेकिन
जो लोग
मेरा-मेरा-मेरा
देसी-देसी-देसी
विदेशी-विदेशी-विदेशी
स्वदेशी- स्वदेशी- स्वदेशी
करते रहते हैं
वे लोग बहुत सारी समस्याओं की जड़ हैं
वे लोग यथास्थितिवाद की जड़ हैं
और अगर रही भारत देश की बात
तो
मुसलमान, ‘बाबर की संतान’ सही
यहाँ के तो तुम भी नहीं थे कभी हिन्दुओं
और अब
रहा तो ये देश यहाँ के मूलनवासियों का भी नहीं
देश
किसी एक जाति विशेष
या समुदाय के लोगों का नहीं होता
राजनितिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक तौर पर
देश सभी का होता है
और सभी की बराबर की हिस्सेदारी भी होती है
उसे बनानें में
तो, क्यों-कितने षडयंत्र रचोगे
कितनी और हत्याएँ
कितने और दंगे कराओगे
कितनी ऐतिहासिक इमारत
कितने मस्जिद-बौद्ध विहार-चर्च-गुरूद्वारे गिराओगे
इसे हिन्दू राष्ट्र सिद्ध करने में
एक भी किलकारी मारने को जगह ना बचेगी
जो, यूँ ही गिराते जाओगे मस्ज़िद और मक़बरे
और अगर दूसरी तरफ से भी लगा दी जाये आग
चारो धामो में
मरघट बन जायेंगे लखनऊ और बनारस
कहीं कोई क़व्वाली-भजन ना होगा
6 दिसम्बर जैसी तारीखें
या ऐसी ही कुछ और तारीखें
इतिहास में जानी जाएँगी
तुम्हारे कु-कृत्यों के लिए ही
और तारीखें भी रुक-रुक कर
चीखती हुई
किताबों को चीरती हुई आयेंगी
और बोलेंगी
कि, बदल दो मेरा इतिहास
नहीं तुम्हारी पीढ़ी बोलेगी कि
बहुत सुनहरा काम किया था हमारे पूर्वजों ने
और ये तो तुम कोशिश ही छोड़ दो, कि
6 दिसम्बर को बाबरी मस्जिद तुड़वा कर, या
ऐसी कुछ और ओछी हरकत करा कर
तुम मिटा या छुपा पाओगे
अम्बेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस को
या, किसी भी तरह
सिद्ध कर पाओगे
अम्बेडकर को हिन्दुओं का पेरोपकार
अम्बेडकर बोलते थे,
“मैं संतुष्ट होऊंगा, अगर
मैं अहसास करा पाया हिन्दुओं को, कि
वो भारत के बीमार लोग हैं, और उनकी बीमारी
दूसरे भारतीयों के स्वास्थ्य और ख़ुशी पर भी
खतरा बन रही है”, तो
कम से कम
वैचारिक तौर पर
अम्बेडकर का इस्तेमाल करना छोड़ दो हिन्दुओं
एक न्यायसंगत समाज
सिर्फ
अम्बेडकर के नाम पर राजनीती करने से, या
उनके नाम और फोटो को
अपने-अपने पोस्टर्स पर उतारने से
नहीं बनेगा
उसके लिए अम्बेडकर के विचारों को
वास्तविकता में लाना होगा
और काश एक दिन
कुछ चमचे दलित भी समझे, कि
उन्हें बेवकूफ बनाने के लिए
सिर्फ उनके वोट के लिए ही
लेती रही ये मनुवादी सरकारें
अम्बेडकर का नाम
और, आख़िरकार
तुम बेशक अपनें फिलहाल के राजनितिक लाभ
उठाने के लिए कुछ भी, कैसे भी
दलित और मुसलमानों के हाथो करवा दो
इन्हें आपस में लड़वा दो
और मजबूत करो अपना
मनुवाद, हिंदूवाद, ब्राह्मणवाद और वोट-बैंक
लेकिन
तुम्हारे हिन्दू-राष्ट्र का ‘ड्रीम प्रोजेक्ट’
शायद ही पूरा होगा
और वो तुम्हारी खुद की बौखलाहट बताती है
धर्म जरूरी है
लेकिन धर्म को ही सर्वे-सर्वा बताना
और सिर्फ धर्म की ही राजनीती करना
मानवता के लिए घोर अपराध होगा
देखना
कहीं धर्म की राजनीती ही
तुम्हारें धर्म को खत्म ना कर दे
ये देश सभी का है सनातनियों
और यहाँ के जानवर गाय और सुअर भी सभी के हैं।