लोकसभा चुनाव में अब छह महीने से भी कम का समय बचा है और ऐसे में पार्टियों ने अपनी संभावनाओं पर काम करना शुरू कर दिया है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की बात करें तो यहां 2014 के पिछले लोकसभा चुनाव में मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी रही आम आदमी पार्टी (आप) कांग्रेस के साथ लोकसभा सीटों पर गठबंधन करने पर बातचीत कर रही है ताकि दिल्ली की सातों सीटों पर काबिज भाजपा को शिकस्त दी जा सके।
विश्वस्त सूत्रों की मानें तो दोनों पार्टियों कांग्रेस और आप के शीर्ष नेतृत्व का मानना है कि बिना साझेदारी के भाजपा को शिकस्त देना आसान नहीं है। अपनी इस बात के पक्ष में इन पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व के रणनीतिकार आंकड़ों का सहारा ले रहे हैं और उसके मुताबिक 2013 में आम आदमी पार्टी के जन्म लेने के बाद कांग्रेस की वोट शेयरिंग में जबरदस्त गिरावट आई है जबकि भाजपा की वोट शेयरिंग में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। यानी माना जा रहा है कि आप के आने से कांग्रेस का ही वोट बैंक खिसक कर उसके पास गया है और ऐसे में दोनों अगर साझेदारी से चुनाव लड़ते हैं तो परिणाम सकारात्मक हो सकता है।
वहीं आंकड़ों के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को जहां 46.40 फीसदी वोट मिले थे जबकि मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी रही आप को 32.90 फीसदी और कांग्रेस को 15.10 फीसदी वोट मिले थे। ऐसे में कांग्रेस और आप मिलकर चुनाव लड़ें तो भाजपा को कड़ी टक्कर दी जा सकती है। बता दें कि इससे पहले हुए दो लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के ही प्रत्याशी अधिकांश सीटों पर जीते थे, (2004 के चुनाव में कांग्रेस ने सात लोस सीटों में से छह पर जबकि 2009 के चुनाव में सातों सीटों पर जीत दर्ज की थी) और तब वोट प्रतिशत का अंतर भाजपा व कांग्रेस का चार-पांच फीसदी से कम ही रहता था।
लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो कांग्रेस के वोट फीसदी में जबरदस्त गिरावट देखने को मिली। उस चुनाव में आप को जहां 54.3 फीसदी वोट पड़े थे वहीं कांग्रेस दस फीसदी का भी आंकड़ा पार नहीं कर पाई थी। उसे केवल 9.7 फीसदी वोट पड़े थे जबकि भाजपा को 32.3 फीसदी वोट मिले थे। इस चुनाव में 70 विधानसभा सीटों में से 67 पर कब्जा जमा कर आप ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी जबकि भाजपा को केवल तीन सीटों पर संतोष करना पड़ा। कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली जबकि 2013 के विधानसभा चुनाव में उसे आठ सीटें मिली थी। 2013 के विधान सभा चुनाव में भाजपा को 28 सीटें मिली थी जबकि 32 सीटें लाकर आप सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। 2013 और 2015 के चुनाव का तुलनात्मक अध्ययन किया गया तो पता चला कि कांग्रेस के वोट प्रतिशत में 14.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई जबकि आम आदमी पार्टी के वोट बैंक में 24.8 फीसदी का जबरदस्त उछाल दर्ज किया गया। 67 सीटें लाकर ऐतिहासिक जीत की प्रमुख वजह यह उछाल रहा था लेकिन समय के साथ इसके वोट बैंक में भी गिरावट होनी शुरू हो गई और इसकी पुष्टि दिल्ली नगर निगम चुनाव परिणाम से हो गई। नगर निगम चुनाव में भाजपा तीनों नगर निगम में कब्जा जमाने में सफल रही वहीं कांग्रेस भी विधानसभा चुनाव परिणाम को दरकिनार करते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रही।
माना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी का वोट बैंक अपने पुराने घर कांग्रेस की तरफ खिसकना शुरू हो गया है। हालांकि आप दूसरे नम्बर की पार्टी निगम चुनाव में रही। इन आंकड़ों को देखकर ही दोनों पार्टियों कांग्रेस व आप का शीर्ष नेतृत्व सीट शेयरिंग को लेकर गंभीरता दिखा रही है।
बहरहाल, आप पहले कहते आई है कि कांग्रेस को वोट देना बीजेपी को वोट देने जैसा है। घोर विरोधी आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस के बीच राजधानी की 7 लोकसभा सीटों पर संभावित चुनावी गठबंधन को लेकर बातचीत चलने की खबरें हैं। हालांकि, इसको लेकर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है। यह अटकलें तब से लगाई जा रही हैं जब आप ने विपक्षी पार्टियों की बैठक में पिछले सप्ताह हिस्सा लिया था, जिसमें कांग्रेस भी मौजूद थी। सूत्रों ने बताया कि आप की तरफ से बातचीत पार्टी के एक वरिष्ठ नेता और इसकी संसदीय मामलों की समिति के सदस्य कर रहे हैं। हालांकि कांग्रेस के स्थानीय नेता इसका विरोध विरोध भी कर रहे हैं। इसकी वजह यह बतायी जा रहा है कि दोनों के बीच गठबंधन का पेंच सीटों के बंटवारे लेकर फंसा हुआ है। आप कांग्रेस को सात में से दो से ज्यादा सीट नहीं देना चाह रही है। जबकि छह पर आप पहले से ही अपने प्रभारी नियुक्त कर चुकी है।
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)