हिंदी के महत्वपूर्ण लेखक और चित्रकार हरिपाल त्यागी हमारे बीच नहीं रहे। 1 मई, 2019 की शाम साढ़े पांच बजे उनका निधन हो गया। आज दिल्ली के निगमबोध घाट पर उन्हें अंतिम विदा दी गई। वे 85 साल के थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बिजनौर ज़िले के महुआ गांव में 20 अप्रैल 1934 को हुआ था। उनके निधन पर तमाम लेखकों, चित्रकारों व अन्य प्रबुद्धजनों ने शोक प्रकट किया है।
जनवादी लेखक संघ (जलेस) ने उनके निधन पर जारी अपने शोक संदेश में कहा- 85 वर्ष की अवस्था में प्रसिद्ध चित्रकार और लेखक हरिपाल त्यागी का निधन शोक-संतप्त कर देने वाली सूचना है। बाज़ार के दबावों से दूर लगातार अपने कलाकर्म में जुटे रहनेवाले त्यागी जी को हिन्दी के साहित्यिक समाज और भारतीय चित्रकला की दुनिया में प्रभूत प्रतिष्ठा मिली। उनका बनाया हुआ मुक्तिबोध का पोर्ट्रेट तो हिन्दी पाठकों की स्मृति में चिरस्थायी है ही, उनकी असंख्य चित्र-कृतियाँ हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में शाया होकर अपनी विशिष्ट शैली के कारण अलग से पहचानी जाती रही हैं। वे लेखन में भी निरंतर सक्रिय रहे और साहित्य तथा चित्रकला के बीच एक सेतु बने रहे। ‘महापुरुष’ और ‘आदमी से आदमी तक’ उनके व्यंग्य-संग्रह हैं। ‘अधूरी इबारत’ शीर्षक से उन्होंने आत्मकथा लिखी। इसके अलावा ‘सुबह का गायक’, ‘चमकीला मोती’, ‘अमरफल’, ‘ननकू का पाजामा’ आदि कृतियाँ बाल-साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान हैं। अपने प्रतिबद्ध कलाकर्म और सजग-विचारपूर्ण लेखन के लिए वे हमेशा याद किये जायेंगे। जनवादी लेखक संघ उनकी स्मृति को नमन करते हुए श्रद्धा-सुमन अर्पित करता है।
जन संस्कृति मंच (जसम) की ओर से जारी शोक संदेश में कहा गया कि हरिपाल त्यागी जी के निधन से साहित्य और कला जगत को गंभीर क्षति हुई है। वे जाने-माने चित्रकार भी थे। वे नए तैल-चित्रों की श्रृंखला पर काम कर रहे थे। उन्होंने हिंदी की विभिन्न विधाओं में लेखन किया। उनकी आत्मकथा ‘अधूरी इबारत’ है। उन्होंने बाल साहित्य भी खूब लिखा है। उन्हें उत्तर प्रदेश साहित्य परिषद द्वारा 2007 में कला भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था।
अपने साहित्यक मित्रों के साथ हरिपाल त्यागी। फेसबुक पेज से साभार।
जसम की दिल्ली ईकाई के अध्यक्ष और प्रसिद्ध चित्रकार अशोक भौमिक हरिपाल त्यागी के निधन पर समकालीन जनमत में अपने एक संस्मरणात्मक आलेख में लिखते हैं :-
हरिपाल त्यागी नहीं रहे। 20 अप्रैल 1935 में जन्में हरिपाल त्यागी कई दिनों से अस्वस्थ थे। हरिपाल त्यागी का जाना हिंदी समाज के लिए एक बहुत बड़ी घटना है, क्योंकि वे साहित्य और चित्रकला के बीच केवल एक जीवंत कड़ी मात्र ही नहीं थे बल्कि उन्होंने अपनी शर्त पर चित्र बनाये और अपनी ही शर्त पर लिखा भी। उनके चित्रकार दोस्तों की संख्या उतनी नहीं है जितने उनके साहित्यकार दोस्तों की है!
एक ऐसा चित्रकार जिसने अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा दिल्ली में बिताया हो जिसने नियमित चित्र बनाये हों, वह कैसे कला कारोबारियों की नज़र से छूट गया, जिसने प्रदर्शनियाँ तो कीं पर उनके चित्र, कभी भी कला मंडी को समर्पित नहीं रहे और इसीलिए वे बाज़ारू चित्रकारों की सोहबत से दूर रहे।
वास्तव में हरिपाल त्यागी अपनी पूरी जिंदगी अपने सरोकारों के प्रति समर्पित रहे। हिंदी का शायद ही कोई ऐसा साहित्यकार हो जो हरिपाल जी के नाम से परिचित न हो। उनके नाम से मेरा परिचय अस्सी के दशक में आजमगढ़ में रहते समय कवि श्रीराम वर्मा के माध्यम से हुआ था। बाद में इलाहाबाद के सभी उनकी चर्चा करते थे। हमारे लिए भाऊ समर्थ और हरिपाल त्यागी, अथाह समुद्र में तैरने की कोशिशों में लगे हम युवा चित्रकारों के लिए दो प्रकाश स्तम्भों जैसे थे। उनके बनाये हुए मुक्तिबोध के पोर्ट्रेट ने उन्हें मेरी नज़र में दूसरे समकालीन चित्रकारों से अलग कर दिया था।
हरिपाल त्यागी द्वारा बनाया गया कवि मुक्तिबोध का पोर्ट्रेट
2002 में दिल्ली आने के बाद हरिपाल त्यागी जी से मेरी मुलाकात होती रहती थी। ललित कला अकादेमी में आयोजित उनकी एकल प्रदर्शनी में प्रदर्शित चित्रों की श्रृंखला मुझे आज भी याद है। प्रदर्शनी का उद्घाटन कमलिनी (दत्त) जी ने किया था, दिल्ली आने के बाद कुबेर भाई से वह मेरी पहली मुलाकात थी।
कुबेर भाई, हरिपाल जी के चित्रों से बहुत प्रभावित थे, उन्होंने ललित कला समकालीन पत्रिका में हरिपाल जी की कला पर एक लेख भी लिखा था। कुबेर भाई के चित्रों में हरिपाल जी से उनकी नजदीकी का असर दिखता था। कुबेर भाई के चित्रों की प्रदर्शनी (मरणोपरान्त) , हमने आईफैक्स कला दीर्घा में आयोजित की थी।
उद्घाटन के बाद एक दोपहर को हॉल में मेरे साथ केवल हरिपाल त्यागी जी थे, दीवारों पर कुबेर भाई के चित्र खामोश हमें सुन रहे थे। उस दिन हरिपाल जी ने सविस्तार कुबेर भाई के चित्रों पर बात की थी। हरिपाल त्यागी जी चूँकि स्वयं एक साहित्यकार थे और साहित्यकारों के बीच ही जीना उन्होंने पसंद किया था इसलिए उनके चित्रों में कहानियाँ नहीं हैं।
हरिपाल जी ने कुबेर भाई के चित्रों के बारे में बात करते हुए एक बात कही थी जिसका आशय था कि चित्र अपने प्रकृति में अमूर्त ही होते हैं , छायाचित्र या फोटोग्राफ भी मूर्त नहीं होते, शब्दों से की गयी व्याख्यायें उन्हें मूर्त बनाने की बस कोशिश करती रहतीं हैं।
‘संस्मरणों’ पर भारतीय ज्ञान पीठ ने एक नायाब कार्यक्रम का आयोजन किया था। हरिपाल त्यागी जी को सुनना मुझे सदा अच्छा लगता रहा है पर उस शाम उनके संस्मरणों के शानदार जुलूस में उनकी जीवन संघर्ष की तमाम कहानियों साथ चल रहीं थीं। अस्सी साल पूरे होने पर हमने उनका जन्म दिन मनाया था। गाँधी शांति प्रतिष्ठान का सभागार में उपस्थित सभी दोस्तों ने उनके शतायु होने का कामना की थी, किसी को क्या पता था कि जिस दिन पूरे विश्व में पहली मई को ‘मज़दूर दिवस’ मनाया जा रहा है, कलम और कूँची का एक श्रमिक हमारे बीच से उठ कर चला जायेगा।
हम सब जिन्होंने हरिपाल त्यागी को देखा था उन्हें नहीं भूलेंगे, और वे रचनाकार जो आज बड़े हो रहे हैं, उनके लिए हरिपाल जी एक प्रकाश स्तम्भ बन कर राह दिखाते रहेंगे। और इसलिए सौ साल ही नहीं, बल्कि कई सौ सालों तक चित्रकार-साहित्यकार हरिपाल त्यागी इस दुनिया में उनके चित्रों के दर्शकों और उनकी रचनाओं के पाठकों के बीच जिन्दा रहेंगे।
अलविदा कामरेड हरिपाल त्यागी !