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क्रिकेट विश्वकप : भारत-पाकिस्तान : फ़ादर्स डे में ‘मौक़ा’ मत तलाशिए जनाब!

byICF Team
June 14, 2019
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Image courtesy CricTracker.com

"क्रिकेट एक खेल नहीं है, एक धर्म है, एक भावना है" इस कथन को हिंदुस्तान ने इतनी गंभीरता से ले लिया है कि क्रिकेट के नाम पर आज देश में सबकुछ हो रहा है। देश में राष्ट्रवाद का तूफ़ान चल रहा है। और आज देश में राष्ट्रवाद का मतलब सिर्फ़ अपने देश का समर्थन करना नहीं है, बल्कि दूसरे देश को नीचा दिखाना भी इसी में शामिल है और दुर्भाग्यवश दूसरे देश को नीचा दिखाना ज़्यादा दिखाई दे रहा है।

एक समझने वाली बात ये है, कि क्रिकेट एक खेल है और खेल में हार-जीत होती रहती है, लेकिन इसी का दूसरा पहलू ये है कि कोई भी देश अपनी टीम को हारते हुए नहीं देखना चाहता, और वो चाहता ही है कि देश की टीम हर मैच, हर प्रतियोगिता में अव्वल आए, और विरोधी टीमों को हराती रहे। और यहीं से शुरू होता है बाज़ार का खेल, जो हमारी भावनाओं का दोहन और शोषण कर ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा कमा लेना चाहता है।

जब हम भारत जैसे देश की बात करते हैं, जो कि दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है, और जिसका स्वतंत्रता संग्राम बाक़ी देशों के मुक़ाबले ज़्यादा जटिल, ज़्यादा रक्तरंजित और ज़्यादा लंबा रहा है, तो हमें समझ में आता है कि इसी वजह से यहाँ राष्ट्रवाद का मुद्दा इतना उछाला क्यों जाता रहा है। भारत में जब राष्ट्रवाद की होती है तो ख़ुद ब ख़ुद पाकिस्तान की बात होने लगती है। पाकिस्तान, जो भारत के विभाजन के बाद बना था। पाकिस्तान, जिससे 70 सालों के बाद भी भारत के तनाव हल नहीं हो सके हैं और आज भी दोनों देशों में हर समय "जंग" का माहौल क़ायम रहता है। जंग, जो शायद राजनीतिक स्तर पर उतनी तेज़ न भी हो, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर बहुत तेज़ रहती है।

इसी सिलसिले में अगर भारत-पाकिस्तान किसी खेल में एक दूसरे के विरोध में खड़े होते हैं, तो दोनों देशों की जनता उस खेल के मैदान को जंग का मैदान समझने में कोई देरी नहीं करती है।

हालांकि 'देश' और 'टीम' का फ़र्क़ करना इतना मुश्किल नहीं है, लेकिन क्योंकि ये खेल नहीं, एक धर्म है; तो धर्म का तो दोहन किया ही जाना है। यही वजह है कि इसमें बात दो देशों के मुकाबले से आगे जाकर हिन्दू-मुस्लिम तक पहुँच जाती है।

इंग्लैंड में क्रिकेट का विश्व कप चल रहा है, और भारत में क्रिकेट का मतलब है कि देश किसी जंग पर गया हुआ है। इसी में सेना, राजनीति सब शामिल कर ली जाती है। और ऐसे माहौल में जबकि पाकिस्तान इस देश का सबसे बड़ा दुश्मन है, पाकिस्तान से मैच होता है तो देश के नागरिकों को राष्ट्रप्रेम याद आ जाता है, और चूंकि इस राष्ट्रप्रेम में अपने देश से प्रेम कम, दूसरे देश से घृणा ज़्यादा है, तो पाकिस्तान के ख़िलाफ़ बातें करने, उसका मज़ाक़ बनाने का सिलसिला पूरे समय जारी रहता है। और ये मज़ाक़ उतना सहज क़तई नहीं होता जितना लगता है। इस देशप्रेम में गालियाँ, छिछली बातें, भद्दे मज़ाक़ और बला की लैंगिक हिंसा शामिल रहती है। आप किसी भी facebook पेज, किसी भी यूट्यूब चैनल पर जा के देखिये कि इस समय पाकिस्तान को किस-किस तरह की गालियाँ दी जा रही हैं। 

इसी क़तार में एक नया क़दम उठाया है स्टार नेटवर्क ने।

स्टार नेटवर्क के पास भारत के मैच प्रसारण करने का कांट्रैक्ट है। और विश्व कप के दौरान पिछले दो विश्वकप में स्टार नेटवर्क ने एड बनाने के नाम पर विभिन्न तरीक़े की हरकतें की हैं। 2011 विश्वकप के दौरान आया "मौक़ा-मौक़ा" एड इसी का एक उदाहरण है। बता दें कि विश्वकप के किसी भी मैच में आज तक पाकिस्तान भारत को हरा नहीं पाया है। और इस बात को भारत की जनता ने हमेशा से पाकिस्तान के खात्मे में अहम क़दम के रूप में देखा है।

इसी 9 जून को जब भारत-ऑस्ट्रेलिया से मैच खेल रहा था, उसी दौरान स्टार नेटवर्क ने एक और एड बनाया, जो भारत-पाकिस्तान के मैच के प्रचार के रूप में था। इस एड में वो भद्दी बातें जो व्हाट्सएप ग्रुप और facebook पेजों पर होती हैं, उन बातों को एक हरी झंडी दिखाई गई है। एड कुछ इस तरह से है:
एक शख़्स जिसने पाकिस्तान क्रिकेट टीम की जर्सी पहनी है, उसके पास बांग्लादेश टीम की जर्सी पहने एक दूसरे शख़्स आता है और कहता है, "भाईजान, मौक़ा-मौक़ा सातवीं बार, ऑल द बेस्ट!" 
सातवीं बार का आशय ये है, कि 16 जून को होने वाला मैच भारत-पाकिस्तान का विश्वकप में सातवाँ मैच होगा। 
इसके जवाब में पाकिस्तान टीम की जर्सी पहना शख़्स कहता है, "कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, ऐसा मेरे अब्बू कहा करते थे।" 
ये कहने के बाद कैमरा घूमता है और सामने बैठा एक शख़्स जिसने भारतीय टीम की जर्सी पहनी है, वो कहता है, "चुप पगले! मैंने ऐसा कब कहा?" 
इस पर पाकिस्तान की जर्सी पहने शख़्स कहता है, "आपने नहीं, वो मेरे अब्बू…" 
और पीछे से वॉइस ओवर आता है जो कहता है, "इस फ़ादर्स डे, किसकी होगी जीत?" 
और फिर स्क्रीन पर भारत-पाकिस्तान के मैच की जानकारी दी जाती है, और एक हिस्से में लिखा जाता है: "हैप्पी फ़ादर्स डे!" 

इस एड का आशय समझने में किसी को कोई मुश्किल नहीं आएगी कि एकदम सीधे तौर पर भारत को पाकिस्तान का 'बाप' बताया जा रहा है। ‘बाप’ कहने में दिक़्क़त क्या है इस पर आगे बात करेंगे, पहले ये समझना ज़रूरी है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि वर्ल्डकप के दौरान ऐसी छिछली बातें की गई हों। भारत-पाकिस्तान की राजनीति का इतिहास ऐसा ही रहा है कि किसी भी क्रिकेट मैच के दौरान खेल में राजनीति घुसा दी जाती है; ये भी एक सच है कि राजनीति ख़ुद खेल बन कर रह गई है।

“मैं तेरा बाप हूँ!”

सदियों से हम एक पुरुष प्रधान समाज में रह रहे हैं। एक ऐसा समाज जहाँ पुरुष सर्वोपरि है, और उसमें भी बाप या पिता सर्वोपरि है। इसलिए हमारे समाज को पितृसत्तात्मक समाज कहा जाता है।

पिता को सर्वोपरि मानने का मामला शुरू हुआ है उस संस्थान से जिसे परिवार कहा जाता है। पिता यानी वो आदमी जो घर की देखभाल करता है, पैसा कमाता है, अपनी पत्नी का ख़याल रखता है, अपने बच्चों को स्कूल भेजता है; और इसीलिए बाप या पिता एक ऐसी ताक़त बन गया है, जो एक परिवार को, एक समाज को स्थिर रखने का काम करता है।

अब बाप बनना भी एक प्रक्रिया है। कोई बाप तब बनता है जब एक औरत और एक आदमी के बीच सेक्स होता है, और उससे बच्चा पैदा होता है। अब चूंकि हम ऐसे समाज में जी रहे हैं, तो उस बच्चे के बाप को ही सर्वोपरि मान लेना इस समाज का नियम है। स्कूलों में, घरों में, फ़िल्मों में, गानों में समय-समय पर किसी को नीचा दिखाने के लिए एक आदमी ख़ुद को किसी का ‘बाप’ कहते हुए देखा जा सकता है। लेकिन इसे भी समझने की ज़रूरत है; जब कोई किसी को अपना बाप कहता है, तो दरअसल वो बड़े ही सरल लहजे में सामने वाले इंसान की माँ को गाली दे रहा होता है। माँ को दी जाने वाली गालियाँ आम हैं, लेकिन जब लोग गाली नहीं देते तो कह देते हैं कि “मैं तेरा बाप हूँ!”

इस एड की बात करें तो भारत को पाकिस्तान का ‘बाप’ कहना बेहद भद्दी हरकत है। ये उस सोच को दर्शाता है जिसके तहत हमेशा से ये माना गया है कि अगर कोई बाप है, तभी वो सीनियर हो सकता है।

भारत पाकिस्तान की बात करें तो ये पहली बार नहीं है जब भारत की जनता ने भारत को पाकिस्तान का ‘बाप’ कहा है। आप ग़दर फ़िल्म याद कीजिये जिसमें एक सीन में भी यही कहा गया है। दोनों देशों में कोई भी तनाव हो, सोशल मीडिया, मेनस्ट्रीम मीडिया, गली-मोहल्ले हर जगह ये बात कही जाती है कि भारत पाकिस्तान का बाप है, और साथ ही पाकिस्तान को तमाम तरह की गालियाँ दी जाती हैं। स्टार नेटवर्क के इस एड ने उन घटिया बातों, आज तक फेसबुक, व्हाट्सएप पर नज़र आती थीं, उनको ये एड ला कर एकदम आम बना दिया है। और अब टीवी, रेडियो, सोशल नेटवर्क, हर जगह ख़ुद को किसी का बाप कहते हुए, महिलाओं को गालियाँ दी जा रही हैं। एक आदमी को दूसरे आदमी का बाप कहने में वो हिंसक सोच छुपी है, जो महिलाओं को बस एक बिस्तर का खिलौना समझती है।

कहने वाले कह सकते हैं कि भारत के विभाजन के फलस्वरूप ही पाकिस्तान बना इसलिए इन अर्थों में भारत को पाकिस्तान का बाप कहने में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन इस ‘भोले’ तर्क में ही भद्दी शरारत छुपी है। इन अर्थों में भारत को कभी भी पाकिस्तान का बाप नहीं कहा गया, बल्कि बड़े भाई का दर्ज़ा ज़रूर दिया गया। अब भाई को कब बाप बना दिया गया पता ही नहीं चला!

क्रिकेट: एक पुरुषवादी खेल

क्रिकेट का खेल आज महिलाएँ भी खेलती हैं, लेकिन हर क्रिकेट बोर्ड ने हमेशा से सिर्फ़ मर्दों को तवज्जो दी है। और इस खेल को भी देखा जाए तो यह एक पुरुषवादी खेल बन कर रह गया है। इस तरह के एड बना कर अपने देशप्रेम के नाम पर दूसरे देश को गालियाँ देना एक भद्दा, छिछला क़दम है। ये हमेशा देखा गया है कि क्रिकेट खेलते वक़्त भी फ़ील्ड पर कई खिलाड़ी गाली देते रहते हैं, और वो सारी गालियाँ ज़ाहिर तौर पर महिलाओं के ख़िलाफ़ होती हैं।

इस पूरे मामले का एक पहलू ये भी है कि लोगों को राष्ट्रवाद के नाम पर कुछ भी सौंपा जा सकता है। राष्ट्रवाद की भावना इतना ज़ोर मारती है कि हम खेल के समय ये भूल जाते हैं कि ये सिर्फ़ एक खेल है, कोई जंग नहीं। हर बार भारत-पाकिस्तान के मैच के वक़्त जो घटिया बातें होती हैं, उन बातों को स्टार ने बा-क़ायदा एक मंच दे दिया है और महिलाओं को गाली देना, पुरुषवादी सोच को आगे बढ़ाना एकदम सरल बना दिया गया है।

अब होगा ये कि 16 जून को होने वाले मैच के दौरान कमेंट्री करते हुए हिंदी के लोग भारत को पाकिस्तान का बाप कहेंगे, और भद्दे तरह के मज़ाक़ उड़ाते हुए दिखेंगे। हालांकि ये हमेशा से हो रहा है, और 2015 वर्ल्डकप के दौरान तो सहवाग ने ट्वीट करते हुए पाकिस्तान को बेटा और बांग्लादेश को पोता कह दिया था।

लेकिन ऐसा कहते हैं हमें सतर्क रहना चाहिए क्योंकि ये खेल है और खेल में कभी भी परिणाम बदल जाता है, क्रिकेट वैसे भी अनिश्चितताओं का खेल कहा जाता है, इसलिए कुछ भी कहने से पहले हमें सोचना और जानना चाहिए कि हमारी बात का क्या मतलब है, ताकि हमें बाद में हम शर्मिंदा न होना पड़े।


 

सौजन्यन्यूज़क्लिक।

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