बोल के दलित प्रतिरोध कविताओं के इस अंक में प्रस्तुत है, जयंत परमार की रचना “मनु”. जयंत उर्दू भाषा में दुर्लभ दलित काव्य के प्रतिनिधि हैं. एक गरीब दलित परिवार में जन्मे जयंत ने कला को अपनी रोज़ी-रोटी और अपने प्रतिरोध का हथियार बना लिया. जिन तंग परिस्थितियों में कला का उभरना मुश्किल समझा जाता है, उन्हीं परिस्थितियों को अपनी संरचनाओं की प्रेरणा बनाते हुए, जयंत बेइन्साफ़ी और तिरस्कार के खिलाफ जीवंत चित्र और नज़्में बनाते चले गए. 2008 में जयंत को साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
उनकी “मनु”, आक्रोश और आत्मविश्वास से सराबोर, अपनी आवाज़ उठाते कई दलित संघर्षों के लिए प्रेरणा स्रोत है.
अब मैंने चील की मानिंद उड़ना सीख लिया है
शेर की मानिंद जस्त लगाना सीख लिया है
लफ़्ज़ों को हथियार बनाना सीख लिया है