राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के लिए डाटा का संग्रह, जनगणना के घरों की सूची बनाने वाले चरण के साथ ही अप्रैल 2020 में शुरू हो जाएगा। इस बात को लेकर बहुत भ्रम है कि दोनों अभियान एक ही हैं या अलग-अलग हैं। असल में कुछ राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रियों ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) की प्रक्रिया पर यह कहते हुए रोक लगा दी है कि इससे एनआरसी किया जा सकता है, जबकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, उद्धव ठाकरे की तरह कुछ मुख्यमंत्रियों ने बयान दिया है कि ‘एनपीआर सिर्फ़ एक जनगणना’ है।
लेकिन,अप्रैल 2020 से सितंबर 2020 तक दोनों ही अभियानों को एक साथ अंजाम देने को लेकर सरकार के निर्णय से कुछ हद तक भ्रम की स्थिति पैदा होती है। हालांकि अपने मक़सद और मूल में वे एक दूसरे से पूरी तरह अलग हैं- एनपीआर और जनगणना को “समान” या “एक ही तरह” के अभियान रूप में बताए जाने का प्रयास किया जाता रहा है। यह एनपीआर-एनआरआईसी के बारे में बड़े सवालों से बचने के लिए सरकार की कोशिशों का हिस्सा भर है।
जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) आख़िर किस तरह समान हैं?
एनपीआर और जनगणना दोनों में घर-घर जाकर डाटा संग्रह किये जाने की ज़रूरत होती है। जनगणना के लिए इस डाटा संग्रह को घर की सूची बनाए जाने वाला चरण कहा जाता है। इस घर की सूची बनाए जाने वाले चरण के दौरान, सरकार द्वारा नियुक्त एक गिनती करने वाला उस शहर/गांव या क्षेत्र के प्रत्येक घर में जाता है,जो शहर/गांव या क्षेत्र उसे सौंपा जाता है और हर व्यक्ति के बारे में वह जानकारी इकट्ठा करता है। गृह मंत्रालय की सितंबर 2019 की अधिसूचना के अनुसार, जनगणना के लिए नियुक्त ये गिनती करने वाला ही एनपीआर को भी अपडेट करेगा।
हालांकि, घर-घर जाकर डाटा संग्रह की आवश्यकता के अलावा, जनगणना और एनपीआर के बीच शायद ही किसी तरह की कोई समानता हो।
जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) आख़िर किस तरह अलग-अलग हैं ?
इन दोनों के बीच के फ़र्क़ के मुख्य बिंदु हैं- क़ानूनी उत्पत्ति और मक़सद; सूचना और डाटा गोपनीयता; और सज़ा।
क़ानूनी उत्पत्ति और मक़सद
जनसंख्या की गणना भारत सरकार द्वारा हर दस साल में एक बार की जाती है। यह प्रक्रिया पहली बार 1872 में तब शुरू हुई थी, जब भारत औपनिवेशिक शासन के अधीन था। यह जनगणना, जनगणना अधिनियम, 1948 के तहत की जाती है। इस जनगणना के लिए इकट्ठा किये जाने वाले आंकड़ों से देश की जनसंख्या की जनसांख्यिकीय और सामाजिक-आर्थिक तस्वीर सामने आती हैं। जनगणना के आंकड़ों को इकट्ठा करने और उनका विश्लेषण करने का मक़सद इतना ही है कि यह योजना और नीति को मदद पहुँचाता है, और मौजूदा सरकारी नीतियों के प्रभाव का आकलन करने में भी मददगार होता है।
इसके विरोध के बावजूद वर्ष 2010 में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर बनाने और इसके रख रखाव का चलन शुरू हुआ। एनपीआर नागरिकता (नागरिक पहचान का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना) नियमावली, 2003 के तहत नागरिकता अधिनियम, 1955 में 2003 संशोधन के बाद ही जारी किया गया है। एनपीआर संकलित करने का एकमात्र मक़सद एनआरआईसी बनाना है। सत्यापन के दौरान एनपीआर के दौरान एकत्र किये गये डाटा का उपयोग नागरिकता का निर्धारण करने के लिए किया जाता है। इस तरह, एनपीआर, एनआरआईसी बनाने की तरफ़ पहला क़दम है।
जनगणना के दौरान हासिल जानकारियां समावेशी योजना और नीतिगत निर्णयों में मददगार हो सकती हैं। एनपीआर-एनआरआईसी अभियान, अपने इरादे में भेदभाव और बाहर का रास्ता दिखाने की कोशिश वाला है।
सूचना और डाटा गोपनीयता
जनगणना की प्रक्रिया में पूछे गये सवालों का मक़सद साक्षरता, रोज़गार, निवास, प्रवास, विवाह, आय आदि पर विवरण हासिल करना है। एनपीआर की जानकारियों में जनसांख्यिकीय के साथ-साथ बायोमेट्रिक विवरण भी शामिल होते हैं। माता-पिता के जन्म का विवरण मांगने वाले एनपीआर 2020 के फ़ॉर्म में जोड़े गये नये प्रश्न विशेष रूप से नागरिकता निर्धारण से सम्बन्धित हैं।
जन्म के विवरण के अलावा, इस नये फ़ॉर्म में आधार कार्ड नंबर, पासपोर्ट, पैन कार्ड नंबर और वोटर-आईडी जैसे विवरण भी मांगे गये हैं। इस विवरण की सहायता से सामूहिक निगरानी के लिए आसानी से उपलब्ध हर व्यक्ति की व्यक्तिगत जानकारी के साथ एक केंद्रीकृत डेटाबेस तैयार किया जायेगा। यह विशेष रूप से चिंताजनक इसलिए है, क्योंकि एकत्र किया गया यह डाटा गंभीर ख़तरे में होगा।
हालांकि जनगणना अधिनियम, जनगणना के दौरान इकट्ठा किये गये इन आंकड़ों को सरकार के लिए गोपनीय और सुरक्षित रखना अनिवार्य बनाता है। (जनगणना अधिनियम के अनुसार, जनगणना के दौरान इकट्ठा किये गये डाटा को यदि कोई सरकारी अधिकारी ग़लत तरीके से एकत्र करता है या सार्वजनिक करता है, तो उन सरकारी अधिकारियों को दंडित किये जाने का प्रावधान है।), जबकि ग़ौरतलब है कि नागरिकता नियमों के तहत एनपीआर डाटा के लिए इस तरह की गोपनीयता की कोई आवश्यकता ही नहीं है।
दंड
यदि कोई व्यक्ति जनगणना डेटा संग्रह के दौरान कुछ जानकारी देने में विफल रहता है तो कोई दंडात्मक व्यवस्था नहीं हैं। हालांकि, एनपीआर में किसी विशेष जानकारी का खुलासा न करने पर दंडात्मक कार्रवाई हो सकती है। घर के मुखिया का कानूनी दायित्व है कि वह प्रत्येक व्यक्ति के बारे में सही जानकारी दे और ऐसा करने में विफल होने पर जुर्माना लगेगा।
मोबाइल एप के माध्यम से डेटा संग्रह
जनगणना और एनपीआर का अपडेशन मोबाइल आधारित एप के माध्यम से किया जाएगा। यह डेटा गोपनीयता की चिंताओं को बढ़ाता है और यह किसी व्यक्ति की सूचित सहमति के बिना डेटा एकत्र करने का जोखिम पैदा करता है। हालांकि, जनगणना के लिए पूछे गए प्रश्न एनपीआर के प्रश्नों से भिन्न हैं और कुछ प्रश्न तो ओवरलैप करते हैं। जनगणना के दौरान व्यक्ति को पता नहीं चल सकता है कि वह किस प्रश्न का उत्तर दे रहा है या यह जानकारी कहां रिकॉर्ड की गई है क्योंकि यह मोबाइल आधारित एप के माध्यम से किया जाएगा। ऐसी जानकारी देने में प्रत्येक व्यक्ति को मूर्ख बनाने के लिए यह एक संगठित योजना की तरह प्रतीत होता है जो नागरिकता निर्धारित करने में मदद कर सकती है