जहां एक ओर किसान आंदोलन वाजिब हक़ों को फिर से हासिल करने, मुनाफाखोरों और बड़े कॉर्पोरेट्स को रोकने के लिए जोर पकड़ रहा है, वहीँ दूसरी ओर मोदी सरकार और सोशल मीडिया पर भाजपा के प्रचारक किसानों के संघर्ष की भर्त्सना करने में पुरजोर ताकत लगा रहे हैं. किसान आंदोलन बिना विचलित हुए, देश के छात्रों, मज़दूरों, और लेखकों व कला-कर्मियों से सहयोग और प्रोत्साहन के साथ आगे बढ़ा जा रहे है. इसी एकजुटता को दर्शाती हुई दो कविताएं प्रस्तुत हैं, जिन्हें लिखा है जामिया की प्राध्यापिका हेमलता महिश्वर ने, और वैज्ञानिक और कवि गौहर रज़ा ने.
किसान
– गौहर रज़ा
तुम किसानों को सड़कों पे ले आए हो
अब ये सैलाब हैं
और सैलाब तिनकों से रुकते नहीं
ये जो सड़कों पे हैं
ख़ुदकशी का चलन छोड़ कर आए हैं
बेड़ियां पाओं की तोड़ कर आए हैं
सोंधी ख़ुशबू की सब ने क़सम खाई है
और खेतों से वादा किया है के अब
जीत होगी तभी लौट कर आएंगे
अब जो आ ही गए हैं तो यह भी सुनो
झूठे वादों से ये टलने वाले नहीं
तुम से पहले भी जाबिर कई आए थे
तुम से पहले भी शातिर कई आए थे
तुम से पहले भी ताजिर कई आए थे
तुम से पहले भी रहज़न कई आए थे
जिन की कोशिश रही
सारे खेतों का कुंदन, बिना दाम के
अपने आकाओं के नाम गिरवी रखें
उन की क़िस्मत में भी हार ही हार थी
और तुम्हारा मुक़द्दर भी बस हार है
तुम जो गद्दी पे बैठे, ख़ुदा बन गए
तुम ने सोचा के तुम आज भगवान हो
तुम को किस ने दिया था ये हक़,
ख़ून से सब की क़िस्मत लिखो, और लिखते रहो
गर ज़मीं पर ख़ुदा है, कहीं भी कोई
तो वो दहक़ान है,
है वही देवता, वो ही भगवान है
और वही देवता,
अपने खेतों के मंदिर की दहलीज़ को छोड़ कर
आज सड़कों पे है
सर-ब-कफ़, अपने हाथों में परचम लिए
सारी तहज़ीब-ए-इंसान का वारिस है जो
आज सड़कों पे है
हाकिमों जान लो। तानाशाहों सुनो
अपनी क़िस्मत लिखेगा वो सड़कों पे अब
काले क़ानून का जो कफ़न लाए हो
धज्जियाँ उस की बिखरी हैं चारों तरफ़
इन्हीं टुकड़ों को रंग कर धनक रंग में
आने वाले ज़माने का इतिहास भी
शाहराहों पे ही अब लिखा जाएगा।
तुम किसानों को सड़कों पे ले आए हो
अब ये सैलाब हैं
और सैलाब तिनकों से रुकते नहीं
किसान!
– हेमलता महिश्वर
किसान !
तुम किसान जैसे क्यों दिखाई नहीं देते?
तुम्हें भी तो चिह्ना जाता है वेशभूषा से
गोदान का होरी याद नहीं?
सारी उम्र हाड़ गलाने के बाद
ढाई पैसा ही रहा मरने के बाद
तुम ट्रेक्टर से चलते हो
तुम गर्म कपड़े तक पहने हो
तुम्हारी आवाज़ लरजने के बदले
गरजती क्यों है?
ऐसा तो खालिस्तानी करते हैं
तुम किसान नहीं
तुम्हारी आवाज़ संसद तक न पहुँचे
इसलिए सरकार ने सड़कों में
खोद दिए हैं बड़े-बड़े गड्ढे
पर हवा में तैरती आवाज़ें
पूरे विश्व तक पहुँच गईं
और विश्व की आवाज़
तुममें शामिल हो गई
याद है ना
दंगों के दौरान सरकारी संपत्ति को जो नुक़सान हुआ था
उसका हर्ज़ाना कुछ ख़ास वेशभूषावालों पर लगाया गया था
अब सरकार यह हर्ज़ाना किससे वसूल करेगी
सरकार किसे दंडित करेगी जबकि
तुमने सरकारी भोजन करने से भी इंकार कर दिया
तुम ऐसे तनकर कैसे खड़े हो गए?
किसान!
तुम राय बहादुर के सामने
गिड़गिड़ाते हुए ही किसान लगते हो
सरकार तुम्हें इससे ऊपर देखने की आकांक्षी नहीं
प्रधानमंत्री ने कहा है
तुम भ्रम के शिकार हो
और मंत्री कह रहे हैं
यह पाकिस्तान चीन की साज़िश है
सरकार
किसान विरोधी बिल पारित करते हुए
आपसे तो क्या
विपक्ष की राय भी नहीं लेती
और इसे षडयंत्र करार देती है
तुमने बिंदुवार क़ानूनी भाषा अख़्तियार कर ली है
लोकतंत्र तुममें पनप रहा है
तुम आजीविका की समानता की मॉंग कर रहे हो
तुमने होरी की परम्परा तोड़ दी है
किसान!
सरकार तुम्हें अपनी करनी समझाना चाहती है
और तुम हो कि अपने तर्क लिए बैठे हो
तुम सहायक बनो ना
राय बहादुर सजी हुईं डलियॉं
अंग्रेज़ बहादुर तक पहुँचाना चाहता है
तुम्हारा पसीना पूँजीपतियों के लिए चुचवाना चाहता है
और तुम हो कि रोड़ा बने हुए हो
किसान!
एमएसपी का मतलब
मिनिमम और मैक्सिमम दोनों ही हो सकता है
मैक्सिमम तो ससीम है
और मिनिमम असीम
यह तुमने जान लिया ना
तुम मॉंग रहे हो स्वामीनाथन आयोग की अनुशंसा
तुमने जुमलेबाज़ी को तोड़ने का दुस्साहस किया
किसान
तुम सचमुच धरती पुत्र हो
मनुष्यता का हल कांधों पर लिए
लोकतंत्र की फसल बो रहे हो