वरवर राव होना
यह होता ही रहता है इस मुल्क में
क्यों आज हम अपराध बोध से भरे हैं
फ़नकार ज़िबह होते ही रहते हैं
बाज़ जो नहीं आते वह करने से
जो हम कहने से कतराते हैं
रोक पाये हम कभी तानाशाह को
पर आज हद हो गई
सरकार बज़िद है
वरवर राव क़ैद से रिहा होंगे तब
जब दुनिया से कूच कर जाएं
रिहा कर देती तो हम शान्त रहते
चाहे वे कुछ ही दिन जीवित रहते
हम कोविड को गुनहग़ार बतलाते
कोविड को बड़ी उम्र से जोड़ देते
एक बहाना ही तो चाहिए था
कि गुस्सा न फ़नफ़नाए भीतर
कहीं हम सड़क पर न उतर आएं
हम मध्यवर्गीय सभ्य लोग
हम अमरीकन थोड़ा न हैं
हम ठहरे हिन्दुस्तानी, अभी मंदिर
बन रहा है अयोध्या में नया नकोर
अभी वक़्त कहाँ है ग़दर के लिए
ग़दर छोड़ कोविड भी भुलाना है
रोना चाहो तो रो लो आज़ाद हो
कोई नहीं रोकेगा छाती पीट रुदन से
इस रुदन को रुदाली का रोना कहते हैं
यह रोने के लिए रोया जाता है
कीमत वसूल करके रोया जाता है
कमतरी के अहसास से जल कर नहीं।
माहिर हैं हम अफ़सोस जतला कर रोने में
अफ़सोस करने में नहीं वरना…
क्या कुछ न कर गुज़रते हम
हर कवि वरवर राव बन जाता।
पर तब पुरस्कृत कौन होता
पुरुस्कार लौटा यशस्वी कौन बनता
सब देश को गढ़ने में लग जाते तो
हमारी प्रसिद्धि ख्याति कौन गढ़ता
लेखन की दुनिया सूनी हो जाती
लोभ लिप्सा बिना कौन लिखता है
अपराध बोध,असन्तुष्ट मन प्रेरक हैं
रचना के वरना लेखक अन्य नागरिक
जैसा न हो जाए रसहीन क्रान्तिकारी
अजूबा है क्रान्ति और रस का मिलन
जैसे वरवर राव होना ।