Where the mind is without fear and the head is held high;
Where knowledge is free;
Where the world has not been broken up into fragments by narrow domestic walls;
Where words come out from the depth of truth;
Where tireless striving stretches its arms towards perfection;
Where the clear stream of reason has not lost its way into the dreary desert sand of dead habit;
Where the mind is led forward by thee into ever-widening thought and action—
Into that heaven of freedom, my Father, let my country awake.
চিত্ত যেথা ভয়শূন্য, উচ্চ যেথা শির,
জ্ঞান যেথা মুক্ত, যেথা গৃহের প্রাচীর
আপন প্রাঙ্গণতলে দিবসশর্বরী
বসুধারে রাখে নাই খণ্ড ক্ষুদ্র করি,
যেথা বাক্য হৃদয়ের উৎসমুখ হতে
উচ্ছ্বসিয়া উঠে, যেথা নির্বারিত স্রোতে
দেশে দেশে দিশে দিশে কর্মধারা ধায়
অজস্র সহস্রবিধ চরিতার্থতায়,
যেথা তুচ্ছ আচারের মরুবালুরাশি
বিচারের স্রোতঃপথ ফেলে নাই গ্রাসি,
পৌরুষেরে করে নি শতধা, নিত্য যেথা
তুমি সর্ব কর্ম চিন্তা আনন্দের নেতা,
নিজ হস্তে নির্দয় আঘাত করি, পিতঃ;
ভারতেরে সেই স্বর্গে করো জাগরিত৷
जहां मन है निर्भय और मस्तक हे ऊंचा
जहां ज्ञान है मुक्त
जहां पृथ्वी विभाजित नहीं हुई है छोटे छोटे खंडों में
संकीर्ण स्वदेशी मानसिकता के दीवारों में
जहाँ शब्द सब निकलते हैं सत्य की गभीरता से
जहाँ अविश्रांत प्रयास उसका हाथ बढ़ा रहा है परिपूर्णता के ओर
जहां स्पष्ट न्याय का झरना खोया नहीं है अपना रास्ता
निर्जन मरुभूमि के मृत्यु जैसा नकारात्मक रेत के अभ्यास में
जहाँ मनको नेतृत्व दे रहे हो तुम
ले जा रहे हो निरंतर विस्तारित विचार और गति के मार्ग को
ले जा रहे हो वही स्वतन्त्रता की स्वर्ग को , हे मेरे पिता , मेरे देश को जागृत होने दो
-रतिकान्त सिंह द्वारा अनुवादित
जिथं मन नेहेमी निर्भय असतं आणि मान अभिमानानं ताठ उभी असते,
जिथं ज्ञान सगळ्या बंधनांच्या पलीकडे असतं , मुक्त असतं,
जिथं घरांच्या छोट्या छोट्या संकुचित भिंती विश्वाला तुकड्या तुकड्यात विभागत नाहीत,
जिथं सत्याच्या पायावर शब्दांची शिखरं बांधली जातात,
जिथं दिशा दिशातून अविरत प्रयत्नांचे हजारो स्त्रोत न थकता परमोत्तम आदर्शाकडे वाहतात,
जिथं शुद्ध, सर्जनशील विचारांचं झरा अंध परंपरांच्या शुष्क वाळवंटात सुकून जात नाही, हरवून जात नाही,
जिथं तू नेता आहेस, तू मनाला विचारांच्या आणि कर्माच्या नित्य विस्तारत जाणा-या
क्षितिजांची ओळख करुन देतोस,
हे पितृदेवा ! त्या सदामुक्त स्वर्गात माझ्या देशाला जागृत होऊ दे!
-राजेश्वरी पांढरीपांडे द्वारा अनुवादित
جہاں ذہن مغلوب ہیبت نہ ہو
جہاں سر اٹھانے پہ تہمت نہ ہو
سبھی چشمہ_علم سے پی سکیں
جہاں علم پابند_دولت نہ ہو
فصیلوں نے بانٹی نہ ہو یہ زمیں
کھلے حق کی ٹہنی پہ لفظ_حسیں
ہو کاوش کی بانہوں میں حسن_کمال
بھٹک کر نہ ہو عقل صحرا نشیں
جہاں رہبر_ذہن تو ہی رہے
بڑھے حد_فکر و عمل پھر بڑھے
اسی خلد کی صبح میں اے خدا !
مرا ملک جاگے، مری شب ڈھلے
-اجمل صدیقی کا ترجمہ