भूख की आवाज़
— अभिषेक अनिक्का
भूख से आवाज़ जो निकलती है
तुमको सुनाई देती क्यों नहीं?
हम घर नहीं जाएंगे
तो यहीं मर जाएंगे
किराया बहुत है
जगह कम
तुम्हारे छोटे से दिल में
घर एक कल्पना है
जहां है तो कुछ भी नहीं
कच्चे अरमानों के सिवा
पर छालों से सजे सपने
सुस्ता लें तो ज़रा
नहीं, हम मील गिनते नहीं
मील का पत्थर बन जाते हैं
जिन्हे पार करती हैं
विकास की गाड़ियां
बिना हमसे नज़रें मिलाए
हम फिर आएंगे
तुम्हारे कारखानों में काम करने
घर बनाने, पकवान सजाने
बोझा उठाने, शादियां कराने
तुम्हारे शहर के अदृश्य हाथ बनके
पर अभी..अभी हम भूखे हैं
शहर की सुनसान गलियों में
घूम रही है हमारी भूख
चिल्लाते हुए
गुहार लगाते हुए
पर भूख से आवाज़ जो निकलती है
तुमको सुनाई देती नहीं
गंदे लोग
— अभिषेक अनिक्का
सच पूछो तो इस देश
में कुछ लोग गंदे होते हैं
जब खड़े होने कहो
तो चल देते हैं
भूख के नाम का अवसाद
अपने कंधे पर उठाए
इनके कपड़ों पर
लगी है गंदगी
शहर के मलबों मकानों की
सड़कों दुकानों की
रंग रोगन सामानों की
अदृश्य अनजानों की
इन्हें होज़ से नहला दो
कैमिकल भी लगवा दो
मीलों दूर चलवा दो
खाली पेट रखवा लो
दण्ड बैठक करवा लो
डंडों से चरवा लो
ये फिर भी रहेंगे गंदे
कीटाणु से लथपथ
पसीने में डूबे
धूल के बने
ना किराया भरते
ना भरते बातों से पेट
इस देश में कुछ लोग
तो बिल्कुल गंदे होते हैं
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पलायन
–उमंग कुमार
नदी में कटान
बाढ़ में उफान
डूब गया धान
भारी है लगान
आए रहे
छोर के गाम
सुना सहर में मिलबे
करेगा काम
ध्याढ़ी-मज़ूरी का
कुछ होगा इन्तेजाम
कोई बोला खोले लो
पान-बीड़ी का दुकान
कोई बोला उहाँ चलो
बन रहा बड़का मकान
माल ढोने-ऊने का काम
सौ रुपया दिन का
दू पैकेट बिस्कुट
और चा सुबो साम
सरदार कहे इहाँ ही
तंबू में रह लो आलिसान
ढूँढना नहीं परेगा
और कोई ठिकान
ईंटा रेता बजरी
जा जा कर मसीन में डाला
चढ़ी के चिरिमिरी सीढ़ी
फिर पहुँचाए ऊपर मसाला
अचानक से हुआ हरबड़ी वाला एलान
महामारी आयी महामारी आयी
बचाओ अपनी अपनी जान
बंद हुआ अब सारा काम
आपस चले जाओ अपने गाम
कैसी आफ़त है आन
चेचक-ऊचक है का
ई महामारी का नाम?
नहीं किसिको भान
बस मूँह ढाँक लो
बुरा बहुत ईका परिनाम
भागो भागो
राम आसरे कहिन
कहियों नैके कौनो काम
और घड़ी घड़ी बढ़त जात
आलू-पियाँज का दाम
नून तेल चाँवल आँटा
बनिया का दुकान में सन्नाटा
अब हर घड़ी इहाँ रहने में घाटा
सूख के हो जायी हम काँटा
का करें कहाँ जाएँ
सुना रहा बंद है
टिरैन और बस
कौनो गारी
आटू टेम्पु
नहीं लेवत
एक्को सवारी
लगता अब गए हम फँस
का करें कीधरे जाएँ कैसे जाएँ
यहीं कहिन रूक जाएँ?
अरे बुर्बक हो का
इहाँ का खाओगे किधर रहोगे
अब मज़ूरी हो गईल खतम
चला पैदल ही निकले
चारा नहीं कोई
और आता नज़र
गाम छोर के आए थे
अब गाम ही डगर
एक दू गो केला ख़रीद लीजिए
और उहाँ से भर लीजिए पानी
निकल चलिए रोट पर
अब आऊर कोई मदद नहीं आनी
बहुते लम्बा है रास्ता
कमर पे कस लीजिए बस्ता
अरे अरे ई का हुआ
गिर पड़े का थक कर
पानी छिड़किए कोई
चल पड़ेंगे थोड़ा थम कर
बेहोस हो गए हैं का
कुछ बोलते काहे नाहीं
उठिए चलिए अभी
सफ़र लम्बा बा बटोही
घर का मकान
सब्जी का बगान
खुसी का खदान
बढ़ियाँ बढ़ियाँ पकवान