भारत में सीएए-एनपीआर-एनआरसी के ख़िलाफ़ व्यापक विरोध को देखते हुए अब एक महीने से अधिक का समय होने जा रहा है। लेकिन सरकार इस साल अप्रैल से शुरू होने वाले एनपीआर की प्रक्रिया को लेकर अपनी जगह से टस से मस नहीं हो रही है। एनआरसी को लेकर सरकार ने सिर्फ कुछ “रियायत” देने का काम किया है, और वह रियायत यह है कि एनआरसी की प्रक्रिया उसने अभी तक शुरू नहीं की है। इसको लेकर अभी तक नियम तय नहीं किये गए हैं, तो फिर एनआरसी के ख़िलाफ़ लोग इतना आन्दोलन क्यों कर रहे हैं? क्योंकि यह लोगों को मूर्ख बनाने की कोशिश हो रही है। ऊपर दिये गए ग्राफिक्स में एनपीआर और एनआरसी के बीच की कड़ी को स्पष्ट तौर पर दर्शाया गया है। यह हमें दर्शाता है कि किस प्रकार एनआरसी की प्रक्रिया की शुरुआत एनपीआर से होकर गुजरती है।
हमारे पास एनपीआर, एनआरसी और सीएए को लेकर ढेर सारे महत्वपूर्ण सवाल हैं। आख़िर एनपीआर और एनआरसी कहाँ से पैदा होते हैं?
एनपीआर और एनआरसी के बीच आख़िर रिश्ता क्या है?
और अंत में, जिस प्रकार से 2019 में नागरिकता अधिनियम में संशोधन किया गया, जिसे हम नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के रूप में जानते हैं, वह किस प्रकार से हमारी नागरिकता को प्रभावित करता है?
भारत में नागरिकता का प्रश्न, संविधान और नागरिकता अधिनियम, 1955 के प्रावधानों द्वारा शासित है। 2003 में एनडीए शासनकाल के दौरान नागरिकता अधिनियम में एक संशोधन पेश किया गया था। उस संशोधन ने नागरिकता क़ानूनों में तीन बड़े बदलाव किए।
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जन्म के आधार पर नागरिकता प्राप्त करने के मानदंड को प्रतिबंधित कर दिया गया।
• अवैध घुसपैठिये की श्रेणी को शामिल किया गया।
• केंद्र सरकार के हाथ में यह शक्ति दे दी गई कि वह “अनिवार्य तौर पर” प्रत्येक नागरिक को भारतीय नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर में पंजीकृत कर सकती है।
2003 के संशोधन के बाद, दिसंबर 2003 में नियम जारी किए गए जिसमें राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर बनाने के बाद एनआरआईसी के काम को संकलित करने की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए बनाये गए थे। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर या एनपीआर का उल्लेख पहली बार केवल नियमों में किया गया था। इन नियमों ने एनपीआर और एनआरआईसी के बीच एक स्पष्ट लिंक को भी स्थापित कर दिया था। एनआरसी की शुरुआत नागरिकों के रजिस्टर, जनसँख्या पंजीकरण के साथ शुरू होती है, जिसमें से सभी भारतीयों के लिए एक नागरिकता रजिस्ट्री तैयार की जानी है, नागरिकता पंजीकरण के लिए।
यह जो स्थानीय आबादी के पंजीकरण से स्थानीय नागरिकता में लोगों के पंजीकरण को “स्थानांतरित” करने का सवाल खड़ा हुआ है, वही सबसे प्रमुख मुद्दा है। किसी निवासी के निवास स्थान और जन्म तिथि से संबंधित प्रश्न, स्त्री/पुरुष के माता-पिता से पूछताछ करने का प्रश्न शामिल है। और सवाल इसको लेकर भी हैं कि इस सबका “मूल्यांकन” स्थानीय रजिस्टर के द्वारा होना है, जिसे स्थानीय प्रशासन के निचले स्तर के अधिकारी द्वारा किया जाना है। और यही वह व्यक्ति होगा जो बाद में या तो लोगों को नागरिकों के स्थानीय पंजीकरण में शामिल करेगा, या संदिग्ध सूची में डाल देगा।
एनपीआर देश में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की जनसांख्यिकीय और बायोमेट्रिक जानकारी रखता है। स्थानीय जनसंख्या रजिस्टर, एनपीआर की सबसे छोटी इकाई है, और उनमें से एक है जिससे राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर तैयार करने की प्रक्रिया शुरू होती है। यह नीचे से ऊपर की ओर एकीकृत की जाती है, जैसा कि ग्राफिक में दर्शाया गया है। स्थानीय स्तर के (शहर, मोहल्ला, गाँव) पंजीकरण से उप-ज़िला/तालुका पंजीकरण से ज़िला स्तर के रजिस्टर और फिर अंत में राज्य जनसंख्या रजिस्टर में दर्शाया गया है। सभी राज्यों के जनसंख्या रजिस्टर को मिलाकर फिर राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर तैयार किया जाता है। एनआरआईसी भी एनपीआर रजिस्टर के ही सोपानों को दोहराता है: इसे भी भारतीय नागरिकों के राज्यों के पंजीकरण के आधार पर बाँटा गया है, फिर भारतीय नागरिकों के ज़िला रजिस्टरों, फिर भारतीय नागरिकों के उप-ज़िला/तालुका रजिस्टरों और भारतीय नागरिकों के स्थानीय रजिस्टरों में अंकित किया गया है।
नागरिकता के पंजीकरण की इस सारी प्रक्रिया का मूल आधार यह है कि भारत में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपनी नागरिकता साबित करनी ही होगी। राज्य/सरकार की इस संबंध में कोई ज़िम्मेदारी नहीं है, बल्कि इसे साबित करने की पूरी ज़िम्मेदारी उन 135 करोड़ लोगों पर है जो भारत में रह रहे हैं, कि वे भारत के नागरिक हैं या नहीं हैं। और यदि वे इसे साबित नहीं कर पाते हैं तो उन्हें यह साबित करना हगा कि वे अवैध घुसपैठिये नहीं हैं।
एनपीआर संकलन की प्रक्रिया
एनपीआर को संकलित करने की प्रक्रिया, स्थानीय जनसंख्या रजिस्टर (एलपीआर) तैयार करने के साथ शुरू होती है। एलपीआर तैयार करने के पहले चरण की प्रक्रिया में में डेटा संग्रह का काम है। नियमों के हिसाब से जनसँख्या रजिस्टर तैयार करने के लिए स्थानीय क्षेत्र में (शहर, मोहल्ले, गांव आदि) रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के बारे में जानकारी एकत्र किया जाना सूचीबद्ध है। इस मकसद के लिए केंद्र सरकार घर-घर जाकर गणना के काम को करा सकती है। और इस तरह इस प्रक्रिया की शुरुआत एक सरकारी व्यक्ति द्वारा घर-घर जाकर सूचना एकत्र करने के साथ शुरू होती है।
अंतिम बार एनपीआर का काम 2010 में किया गया था। एनपीआर फॉर्म में जो प्रश्न पूछे गए थे उनमें नाम, जन्म तिथि और जन्म स्थान, राष्ट्रीयता, स्थायी पता जैसे विवरण शामिल थे। सितंबर 2019 में सरकार ने एक अधिसूचना जारी करते हुए कहा कि जनगणना के घर-घर सूचीबद्धता के चरण के साथ एनपीआर को अपडेट करने का काम अप्रैल 2020 से शुरू किया जाएगा। इस एनपीआर 2020 फॉर्म में कुछ नए प्रश्नों को शामिल किया गया है। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न हैं: माता-पिता के जन्म की तिथि और स्थान का विवरण, आधार कार्ड नंबर, पैन कार्ड नंबर, वोटर आईडी और पासपोर्ट और मोबाइल नंबर जैसे दस्तावेज़ों का विवरण। आधार अपने आप में किसी निवासी के बायोमेट्रिक का सत्यापन प्रदान करता है।
जनसंख्या रजिस्टर तैयार करने का मकसद है, हर व्यक्ति की नागरिकता का पता लगाना। और इसका प्रमाण है एनपीआर फॉर्म में जोड़े गए नए प्रश्न। माता-पिता के जन्म का विवरण मांगना सीधे-सीधे भारत में नागरिकता के निर्धारण से जुड़ा हुआ है। और जो आँकड़े गणना करने वाले आधिकारी द्वारा जुटाए जायेंगे, उनकी तुलना करने के बाद स्थानीय जनसंख्या रजिस्टर को तैयार किया जाएगा।
एनपीआर और एनआरआईसी के बीच संबंध
एक बार जब स्थानीय जनसंख्या रजिस्टर के संकलन का काम पूरा हो जाएगा तो भारतीय नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरआईसी) को तैयार करने की प्रक्रिया शुरू होती है। एनपीआर और एनआरआईसी का आपसी संबंध स्थानीय स्तर पर है, न कि राष्ट्रीय स्तर पर। सत्यापन की प्रक्रिया ही इन दोनों को आपस में जोड़ती है। नियमों में कहा गया है कि नागरिकों के स्थानीय रजिस्टर में दर्ज होने से पहले स्थानीय जनसंख्या रजिस्टर के आँकड़ों को “सत्यापित और उसकी जांच” किया जाएगा, जो कि एनआरआईसी की सबसे छोटी इकाई हुई।
कोई भी व्यक्ति जो इस सत्यापन की प्रक्रिया को पूरा करता उसे भारतीय नागरिकों के स्थानीय रजिस्टर (एलआरआईसी) में जोड़ दिया जाएगा। और जो व्यक्ति इस प्रक्रिया के दौरान विफल पाया जाता है उसे “संदिग्ध” के रूप में चिन्हित कर लिया जाएगा। जिस किसी पर संदिग्ध व्यक्ति होने का ठप्पा लग जाता है, उसे अपनी नागरिकता को साबित करने के लिए विदेशी ट्रिब्यूनल और उच्चतर न्यायपालिका की एक और प्रक्रिया से गुजरना होगा।
अब इस सत्यापन की प्रक्रिया में क्या-क्या चीजें शामिल होने जा रही हैं? वे क्या मानदंड होंगे जिनमें कुछ लोगों को “संदिग्ध नागरिक” के रूप में बाहर किया जायेगा? एनपीआर और एनआरआईसी की प्रक्रिया को लेकर जो नियम बनाए गए हैं, वे इन सत्यापन के मानदंडों के बारे में कुछ नहीं कहते। और इस ख़ामोशी के साथ-साथ “घुसपैठियों” के ख़िलाफ़ जोर-शोर के साथ चलाए जा रहे प्रचार अभियान के साथ ही 2019 में अवैध घुसपैठियों की परिभाषा को बदल देने सीधा रिश्ता सिर्फ पड़ोसी देशों के मुसलमानों से जुड़ा है। और इससे यह सवाल खड़े होते हैं कि क्या इस समूची प्रक्रिया का मकसद भारतीय लोगों के एक खास वर्ग को नागरिकता के अधिकारों से वंचित करने के लिए तैयार किया गया है?