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क्या धर्म के नाम पर किसी की जान लेना जायज़ है?

bySandeep Pandey
October 8, 2019
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क्या धर्म के नाम पर किसी की जान लेना जायज़ है?

सभी धर्मों ने इंसानों को साथ में मिलजुल कर रहने की सीख दी है। हमारे देश में तो खासतौर पर चूंकि यहां कई धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं सर्व धर्म सम्भाव व सर्व धर्म सद्भाव के विचार का लोग अपने व्यवहार में पालन करते हैं। हमें बचपन से ही यही सिखाया गया है कि यदि कोई हमसे अलग विचार मानने वाला भी हो तो हम उसके विचारों का आदर करते हुए साथ में जियें। स्वामी विवेकानंद ने भारतीय की यह पहचान बताई है कि जिसके अंदर वेदांत की गहराई की समझ हो, इस्लाम जैसी बहादुरी हो, ईसाई जैसा सेवा भाव हो व बौद्ध जैसी ह्यदय में करुणा हो। किंतु हमारे देश में जब से हिन्दुत्व का राजनीतिक विचार हावी हुआ है एक हिंसा की नई अप-संस्कृति का जन्म हुआ है। धर्म, जाति अथवा हिन्दुत्व से अलग विचार मानने वालों को निशाना बनाया जा रहा है। ऊना, गुजरात में गौ-हत्या के नाम पर चार दलित युवाओं के साथ मार-पीट, अलवर, राजस्थान में पहलू खान को पीट-पीट कर मार डालना, गौरी लंकेश जैसी बुद्धिजीवी की दिन दहाड़े गोली मार हत्या कर देना, इस किस्म की हिंसा के उदाहरण हैं। गैर हिन्दू धर्मावलम्बियों, खासकर मुसलमानों, को जय श्री राम का नारा न लगााने पर भी उनके साथ मार-पीट की दुर्घटनाएं सुुनने को मिली हैं। अब बहुत सारे हिन्दू मूर्ति-पूजा, कर्म-काण्डों या कुछ ईश्वर को भी नहीं मानते हैं। बौद्ध धर्म में तो ईश्वर का जिक्र ही नहीं हैं। क्या हम किसी से जबरदस्ती कोई चीज मनवा सकते हैं? ईश्वर तो दिल से स्वीकार किया जाता है। यह सोचने वाली बात है किसी से जबरदस्ती जय श्री राम का नारा लगवाने से उसके मन में राम को मानने वालों के बारे में क्या विचार उत्पन्न होगा? महात्मा गांधी व गौतम बुद्ध के देश में जहां से बताया जाता है कि पूरी दुनिया को शांति का संदेश मिलता है, इस तरह की दुर्घटनाएं होना हमारे लिए शर्म की बात है। हद तो तब हो गई जब हाल में मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में 10 व 12 साल के दो दलित बच्चों की खुले में शौच करने की वजह से हत्या कर दी गई। यह हिंसा की अप-संस्कृति हमें कहां ले जा रही है?

महात्मा गांधी ने कहा था कि गाय उनके लिए भी पवित्र है किंतु वे इस बात की कल्पना नहीं कर सकते कि किसी गाय को बचाने के लिए वे किसी इंसान की हत्या कर सकते हैं। बल्कि भारतीय संस्कृति के प्रतीक अहिंसा और सहिष्णुता के मूल्यों को मानने वाला किसी की भी हत्या कैसे कर सकते हंै? यदि कोई गौ हत्या के अपने इरादे को छोड़ने का तैयार नहीं है तो मैं उसे समझा ही सकता हूं क्योंकि किसी का भी विचार बदलने के लिए संवाद ही एकमात्र तरीका है। यदि मैं एक गाय को बचाने के लिए किसी मुसलमान की हत्या करता हूं तो मैं मुसलमान और गाय दोनों का ही दुश्मन बन जाऊंगा। उन्होंने हिन्दुओं को बूढ़ी गायों की ठीक से परवाह न करने के लिए आड़े हाथों भी लिया। हकीकत है कि आवारा घूमती गाएं प्लास्टिक खा-खाकर या गौशालाओं में देख-रेख के अभाव में गाएं दम तोड़ देती हैं। इस तरह से गौ रक्षा समितियां गौ हत्या समितियां बन जाती हैं।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक मदन मोहन मालवीय ने कहा था कि यह देश सिर्फ हिन्दुओं का नहीं है। यह मुस्लिम, ईसाई व पारसियों का भी देश है। यह देश तभी मजबूत व विकसित बन सकता है जब भारत में रहने वाले विभिन्न समुदाय आपसी सौहाद्र्य के साथ रहेंगे। स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में हिन्दू धर्म की विशेषताओं में यह बात गिनाई कि भारत में हमेशा बाहर से आने वाले किसी भी शरणार्थी का, चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाला हो, का स्वागत हुआ है और अन्य धर्मों के साथ एक मिली जुली संस्कृति विकसित हुई है।

भारत के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि म्यांमार से शरणार्थी के रूप में आना चाह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को नहीं आने दिया गया और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के नाम पर ऐसे लोगों को चिन्हित किया जा रहा है जिनके पास भारत की नागरिकता का कोई सबूत नहीं है और उन्हें घुसपैठिया बताया जा रहा है। इससे भी बुरी बात यह है कि हम एक धर्म-निर्पेक्ष देश होते हुए भी एक नागरिकता संशोधन बिल के नाम पर इस बात पर विचार कर रहे हैं कि 2014 तक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंग्लादेश से आए सभी गैर मुस्लिमों को नागरिकता दे दें और मुसलमानों को छोड़ दें। धर्म के नाम पर भेदभाव हमारे संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। क्या कोई व्यक्ति किसी खास धर्म से जुड़े होने के कारण अच्छा हो जाता है और किसी दूसरे धर्म से जुड़े होने के कारण बुरा? हकीकत तो यह है कि धर्म, जाति या मानव विभाजन की किसी भी श्रेणी का मनुष्य के चरित्र से कोई लेना देना नहीं है, वह तो उसकी परवरिश पर निर्भर करता है। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि लाखों भारतीय विदेशों में आजीविका कमाने जाते हैं जिनमें से कई अवैध तरीकों से भी चले जाते हैं। हमारे देश में जो रोजी रोटी कमाने के उद्देश्य से या शरणार्थी बन कर आया है उसके प्रति हमारी सहानुभूति होनी चाहिए। हमारी सहिष्णुता वाली संस्कृति ने तो हमें यही सिखाया है।

यह अजीब बात है कि जब देश के जाने-माने 49 संस्कृतिकर्मी, साहित्यकार, बुद्धिजीवी व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रधान मंत्री को एक पत्र लिख मुसलमानों, ईसाइयों व दलितों के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा, जय श्री राम का युद्ध-उद्घोष के रूप में दुरुपयोग, हिन्दुत्व के विचार के आलोचकों को शहरी-नक्सली बता कर उनके ख़िलाफ़ देश-द्रोह का मुकदमा दर्ज करने के मामलों में चिंता व्यक्त की तो इन लोगों के ख़िलाफ़ भी एक न्यायालय के आदेश से देश-द्रोह का मुकदमा दर्ज हो गया। यानी असहिष्णुता इस कदर बढ़ गई है कि हिन्दुत्ववादी सरकार के समर्थक उसकी आलोचना तक सुनने को तैयार नहीं हैं। ज़ाहिर है कि हिन्दुत्ववादी राजनीति भारतीय संस्कृति के मूल्यों व देश की साम्प्रदायिक सद्भावना की संस्कृति के ख़िलाफ़ है। यह हमारे देश में द्वेष, वैमनस्य व हिंसा को बढ़ावा दे रही है। यह समाज व मानवता विरोधी है।


 

संदीप पांडे एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो साल में एक बार IIM अहमदाबाद में वैकल्पिक पाठ्यक्रम "Transformational Social Movements" पढ़ाते हैं।
Disclaimer: The views expressed in this article are the writer's own, and do not necessarily represent the views of the Indian Writers' Forum.

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