"एक ऐसा नाटक जो महिला आंदोलन का हिस्सा है, जो महिलाओं के अधिकारों की बात करता है, उस नाटक के ज़िक्र से भी किसी को दिक़्क़त क्यों हो रही है?"
– मलयश्री हाश्मी
यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) के लर्निंग आउटकम-बेस्ड करिकुलम फ्रेमवर्क प्रोग्राम के तहत दिल्ली विश्वविद्यालय ने स्नातक के विभिन्न कोर्स के सिलेबस को बदलने का निर्णय लिया है। ये प्रक्रिया जनवरी में शुरू हुई थी और अभी तक कई बदलाव किए जा चुके हैं। बदलाव करने का ये सिलसिला जल्दी थमता हुआ नहीं दिख रहा है।
21 जून को दक्षिणपंथी गुट के कुछ अध्यापकों द्वारा सिलेबस को ले कर आपत्ति जताई गई, जिसके बाद एग्ज़ीक्यूटिव काउंसिल ने अंग्रेज़ी, इतिहास, राजनीति शास्त्र और समाजशास्त्र के सिलेबस वापस डिपार्टमेंट में भेज दिये। उसके बाद विभागों से UGCRC के नियमों के तहत सिलेबस में बदलाव करने को कहा गया। अकेडमिक काउंसिल की स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य और अंग्रेज़ी के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर सैकत घोष ने कहा, “हालांकि UGCRC के नियमों को और नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट द्वारा उठाए गए सारे आपत्ति के विषयों को मानते हुए बदलाव कर लिए गए थे, लेकिन UGCRC ने एक बार फिर अंग्रेज़ी विभाग को बदलावों की एक लंबी लिस्ट भेज दी है।"
इंडियन एक्स्प्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़, UGCRC ने अंग्रेज़ी विभाग से कहा है कि मीना कंदासामी को प्रेमचंद और अमितव घोष को आर के नारायण से बदल दिया जाए। इसके साथ ही ये कहा गया है कि सिलेबस से इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) और जन नाट्य मंच से संबन्धित कोई भी लेख हटा दिया जाए।
UGCRC ने कहा है कि अंग्रेज़ी के “इंडियन राइटिंग्स इन इंग्लिश ” पेपर में कंदासामी के काव्य संग्रह "टच” को प्रेमचंद की कहानी "श्राउड” से बदल दिया जाए; और अमितव घोष के "द शैडो लाइन्स” को आर के नारायण के "स्वामी एंड फ्रेंड्स” से बदल दिया जाए। 'स्टडीज इन मॉडर्न इंडियन परफॉरमेंस ट्रडिशन्स" पेपर में UGCRC ने कहा है कि जन नाट्य मंच (जनम) के नाटक "औरत", बादल सरकार के नाटक "प्रोसेशन”, और इप्टा के इतिहास से जुड़े दो निबंधों सहित, सभी लेख हटा दिये जाएँ।
अंग्रेज़ी विभाग ने इनमें से किसी भी बदलाव को स्वीकार करने से इंकार कर दिया है। इंडियन कल्चरल फ़ोरम उनके इस फ़ैसले का समर्थन करता है और इस बात का भी समर्थन करता है कि विद्यार्थियों को, और हर नागरिक को ऐसी चीज़ों को पढ़ना जारी रखना चाहिए।
हमने इस सिलसिले में मलयश्री हाश्मी से बात करी तो उन्होंने कहा, "1978 में बना 'औरत' हमारे(जन नाट्य मंच के) शुरुआती नाटकों में से है। और ये नाटक दरअसल हिंदुस्तान में महिलाओं के संघर्षों और आंदोलनों, जो कि उस वक़्त बहुत मुखर तौर पर सामने आ रहे थे, उनसे निकल कर आया था। और ये आंदोलन और संघर्ष आज भी जारी हैं। कई लोगों ने इस नाटक का ज़िक्र अलग-अलग जगहों पर किया है, और मैंने ख़ुद इस नाटक को सैकड़ों बार खेला है, और ये मेरे लिए इज़्ज़त की बात है, कि मैं ऐसे नाटक का हिस्सा रही हूँ। मेरी समझ में ये नहीं आता है, कि एक ऐसा नाटक जो महिला आंदोलन का हिस्सा है, जो महिलाओं के अधिकारों की बात करता है, उस नाटक के ज़िक्र से भी किसी को दिक़्क़त क्यों हो रही है? वो भी ऐसे दौर में जब हम महिलाओं के सशक्तिकरण की बात कर रहे हैं, उनकी कामयाबी का जश्न मना रहे हैं। ये बात मेरी समझ से एकदम बाहर है। 'औरत' समाज में औरतों की अहमियत और उनके किरदार की बात करता है। आज जब हम देश भर में बच्चियों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, मुझे समझ नहीं आता कि इस नाटक में ऐसा क्या है जिससे किसी को दिक़्क़त हो सकती है।"
निम्नलिखित जन नाट्य मंच के नाटक "औरत" का एक अंश है।
अभिनेत्री : में एक मां
एक बहन,
एक बेटी
एक अच्छी पत्नी
एक औरत हूं
अभिनेता-1 : एक औरत जो न जाने कबसे
नंगे पांव रेगिस्तानों की धधकती बालू में
भागती रही हे
अभिनेत्री : मैं सुदूर उत्तर के गावों से आई हूं
अभिनेता-2 : एक औरत जो न जाने कबसे
धान के खेतों और चाय के बाग़ानों में
अपनी ताक़त से ज़्यादा मेहनत करती आई है।
अभिनेत्री : मैं पूरब के अंधेरे खंडहरों से आई हूं
जहाँ मैंने न जाने कबसे
नंगे पाव
सुबह से शाम तक
अपनी मरियल गाय के साथ, खलियानों में
दर्द का बोझ उठाया है।
मैं एक औरत हूं।
अभिनेता-3 : उन बंजारों में से
जो तमाम दुनिया में भटकते फिरते हैं
एक औरत जो पहाड़ों की गोद में बच्चे जनती है
जिसकी बकरी मैदानों में कहीं मर जाती है
और वह बैन करती रह जाती है।
अभिनेत्री : मैं एक मज़दूर औरत हूं।
अभिनेता-4 : जो अपने हाथों से फ़ैक्ट्री में
देवकाय मशीनों के छक्के घुमाती है
वह मशीनें जो उसकी ताक़त को
एन उसकी आंखों के सामने
हर दिन नोंचा करती हैं
एक औरत जिसके ख़ूने जिगर से
ख़ूंख़ार ककालों की प्यास बुझती है,
एक औरत जिसका ख़ून बहने से
सरमाएदार का मुनाफ़ा बढ़ता है।
अभिनेत्री : एक औरत जिसके लिए तुम्हारी बेहूदा शब्दावली में
अभिनेता-5 : एक शब्द भी ऐसा नहीं
जो उसके महत्त्व को बयान कर सके
तुम्हारी शब्दावली केवल उसी औरत की बात करती है
जिसके हाथ साफ़ हैं
जिसका शरीर नर्म है
जिसकी त्वचा मुलायम है
और जिसके बाल ख़ुशबूदार हैं।
अभिनेत्री : मैं तो वह औरत हूं
अभिनेता-6 : जिसके हाथों को दर्द की पैनी छुरियों ने
घायल कर दिया है
एक औरत जिसका बदन तुम्हारे अंतहीन,
शर्मनाक और कमरतोड़ काम से टूट चूका है
एक औरत जिसकी खाल में
रेगिस्तानों की झलक दिखाई देती है
जिसके बालों से फ़ैक्ट्री के धुएं की बदबू आती है।
अभिनेत्री : मैं एक आज़ाद औरत हूं
अभिनेता-1 : जो अपने कामरेडों भाइयों के साथ
कांधे से कांधा मिलाकर
मैदान पार करती है
अभिनेता-2 : एक औरत जिसने मज़दूर के
मज़बूत हाथों की रचना की है
और किसान की बलवान भुजाओं की।
अभिनेत्री : मैं खुद भी एक मज़दूर हूं
मैं खुद भी एक किसान हूं
मेरा पूरा जिस्म दर्द की तस्वीर है
मेरी रग-रग में नफ़रत की आग भरी है
और तुम कितनी बेशर्मी से कहते हो
कि मेरी भूक एक भ्रम है
और मेरा नंगापन एक ख़्वाब।
एक औरत जिसके लिए तुम्हारी बेहूदा शब्दावली में
एक शब्द भी ऐसा नहीं
जो उसके महत्त्व को बयान कर सके।
अभिनेता-5 : एक औरत जिसके सीने में
ग़ुस्से से फफकते नासूरों से भरा
एक दिल छिपा है
अभिनेता-4 : एक औरत जिसकी आंखों में
आज़ादी कि आग के लाल साए
लहरा रहे हैं।
पूरा नाटक यहाँ पढ़ें।