17 जून को, 24 वर्षीय तबरेज़ अंसारी, जब झारखंड के सुदूर सरायकेला-खरसावां जिले में अपने घर लौट रहे थे, तो उन्हे कुछ लोगों ने घेर लिया और मोटरसाइकिल चोरी करने का आरोप लगाया। भीड़ ने आनन फानन में उनकी पिटाई शुरू कर दी और उन्हें ‘जय श्री राम’ और ‘जय हनुमान’ का जाप करने के लिए मजबूर किया।
सात घंटे तक लाठी-डंडों से पिटाई कराने के बाद, पुलिस ने चोरी करने के इल्ज़ाम में ‘कबूलनामा’ दर्ज कर उसे बंद कर दिया, लेकिन इस कबूलनामे में उस पर हुए हमले का जिक्र नहीं किया। 21 जून को, उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया और बाद में उनका स्वास्थ्य बिगड़ने पर जमशेदपुर ले जाया गया, जहां अगले दिन गंभीर चोटों के कारण उनकी मृत्यु हो गई। सोशल मीडिया पर इस यातना का दिल दहला देने वाला का एक वीडियो सामने आया और इस तरह यह भयानक हिंसक घटना दुनिया के सामने आई।
पिछले चार वर्षों में झारखंड में नफ़रत से भरे अपराध का यह 14 वां मामला था, यह आंकडे Factchecker.in की मीडिया रिपोर्टों के आधार पर जारी किए गए हैं जो एक ऐसी वेबसाइट है जो भारत में धार्मिक घृणा पर आधारित अपराधों के भयावह रूप पर नज़र रख रही है।
तबरेज़ अंसारी की मौत के साथ, इस साल इस तरह के 11 मामले दर्ज किए गए हैं, जबकि मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के 2014 में पहली बार सत्ता में आने के बाद से ऐसी घटनाओं की कुल संख्या बढ़कर 266 हो गई है। डेटा स्पष्ट रुप से बताता हैं कि भीड़ द्वारा हिंसा (लिंचिंग) सीधे भाजपा के केंद्र में सत्ता में आने से जुडी है।
2009 और 2013 के बीच, 2014 में मोदी की जीत से पहले की पांच साल की अवधि में, कुल 22 ऐसे मामले सामने आए थे। इसका मतलब है कि भाजपा के सत्ता में आने के बाद से ही लिंचिंग में दस गुना वृद्धि हुई है।
मुसलमानों के खिलाफ नफ़रत भरा अभियान
कई विशेषज्ञों और टीवी पर बहस करने वाले लोगों ने भीड़ द्वारा लिंचिंग क़े मामले पर घंटों चर्चा कि आखिर ऐसी वृद्धि के पीछे कौन से कारण हैं। बीजेपी समर्थित लोगों को छोड़ कर, जो इस तरह के मामले के बारे में विशिष्ट कारणों को जिम्मेदार ठहराते हैं और यह कहते हुए बात खत्म कर देते हैं कि यह हिंदुओं को अपमानित करने के प्रयास के अलावा कुछ नहीं है, लेकिन अन्य लोगों ने एक बात को उठाया है: उनका मानना है कि यह इसलिए हो रहा है क्योंकि संघ परिवार और उसके सहयोगियों ने जनता के भीतर मुसलमानों के खिलाफ व्यापक घृणा का अभियान चलाया है जिसमें उनके खिलाफ बयान देना, अपराधियों/अभियुक्तों को सहायता प्रदान करना, इसे रोकने के लिए कानून को तेज़ी से लागू न करना या नहीं करने देना, पुलिस के हस्तक्षेप का अभाव और यहां तक कि भाजपा शासित राज्यों में पुलिस के साथ मिलीभगत आदि का होना, ऐसी कुछ बातें हैं जिनकी वजह से इन अपराधों में बढ़ोतरी हुई है, क्या यह सच है? आखिर तथ्य क्या हैं?
झारखंड राज्य को ही लें। Factchecker.in ने 2009 के बाद से राज्य में घृणा के अपराधों के 16 मामलों में से नौ की जांच की (जिनमें से 14, 2014 के बाद हुए, दो पहले हुए थे)। इसमें पाया गया कि दो मामले, उनकी परिभाषा के अनुसार स्पष्ट रूप से ‘घृणा अपराध’ के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकते है।
शेष मामलों में, उन्होंने पाया कि हिंदू त्योहारों (विशेष रूप से राम नवमी) के दौरान निकाले गए सशस्त्र जुलूसों में से कम से कम दो मामलों में वे प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार थे और छह अन्य मामलों में वे अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार थे।
जिसमें उत्तेजक गीत और नारे, तलवारों, त्रिशूलों और अन्य हथियारों को सार्वजनिक रुप से लहराना, जानबूझकर मुस्लिम आवासीय क्षेत्रों और मस्जिदों को निशाना बनाना, इस तरह के जुलूसों की एक खास विशेषता रही है।
देवताओं के नाम पर हिंसा के खुले उकसावे वाले कई गाने बेतहाशा लोकप्रिय रहे हैं और यहां तक कि इन्हे रिंगटोन के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है, फैक्टचेकर ने राज्यों की रिपोर्ट में इनकी तस्दीक की है। पुलिस आसानी से जुलूस के खतरे को भांप लेती हैं और कुछ मामलों में तो उसने वक्त पर कार्रवाई कर स्थिति को संभाला भी है। लेकिन बड़े पैमाने पर, उकसावे और घृणा भड़काने वाले अभियान बेलगाम ही रहे।
यह तो ऊंट के मुंह में जीरे की तरह है। एक विशाल और मूक अभियान लगातार सोशल मीडिया के माध्यम से संचालित किया जाता है, जहां और भी अधिक घृणा फैलाने वाला अभियान जारी है। गोहत्या, गोमांस खाना, लव जेहाद (हिंदू महिलाओं का अपहरण करने या उन्हें लुभाने के लिए), पाकिस्तान को समर्थन और विभिन्न आपराधिक गतिविधियों के बारे में हजारों बार इस तरह का अभियान निरंतर चलाया जाता है।
इस सब ने झारखंड में मुस्लिम लोगों के बड़े हिस्से के प्रति घृणा का महौल पैदा कर दिया है। यहां हिंसक भीड़ द्वारा कत्ल करना कोई बड़ी बात नहीं है, विशेष रूप से ऐसे राज्य जो चुड़ैल के नाम कत्ल करने के मामलों में सबसे आगे है। 2001 और 2016 के बीच, महिलाओं को “डायन” या चुड़ैल घोषित करने के 623 मामले सामने आए और उन सभी को भीड़ ने मार दिया।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार इन वर्षों में देश भर में 2,557 ऐसे मामलों में यह लगभग एक चौथाई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने 2016 के बाद से इस मामले में कोई रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की है।
सर्वोच्च न्यायालय की अवहेलना करना
राज्य सरकारों और केंद्र सरकार ने बड़े पैमाने पर सुप्रीम कोर्ट के 2018 निर्देशों की अनदेखी की है जिसमें फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना करना शामिल है, सोशल मीडिया पर नफरत भरे संदेशों को रोकना शामिल है, पीड़ितों को मुआवजा देना और भीड़ द्वारा हिंसा को रोकने के लिए एक कानून बनाना शामिल है।
देश में गौ रक्षकों की बढ़ती संख्या और हिंसक भीड़ द्वारा हत्या के मामलों की बढ़ती संख्या से परेशान, सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2018 में केंद्र और राज्य सरकारों को “निवारक, उपचारात्मक और दंडात्मक कानून” को लागू करने के लिए विस्तृत निर्देश जारी किए थे, जिसे अदालत ने “भीड़तंत्र का घिनौना कृत्य” कहा था”। इनमें निम्न शामिल हैं:
- विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर गैर-जिम्मेदार और विस्फोटक संदेशों, वीडियो और अन्य सामग्री का प्रसार रोकें जो भीड़ की हिंसा और हिंसा को उकसावा दे सकते हैं
- पुलिस को IPC की धारा 153A (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा, आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने पर रोक लगाने के लिए) एफआईआर दर्ज करनी चाहिए, जो ऐसे संदेश और वीडियो प्रसारित करते हैं
- फैसले की तारीख से एक महीने के भीतर हिंसा का शिकार होने वाले और लूटने वाले लोगों को मुआवजा देना;
- प्रत्येक जिले में फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करना ताकि हर दिन सुनवाई की जा सके;
- यदि कोई पुलिस अधिकारी या जिला प्रशासन का कोई भी अधिकारी इन निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है, तो इसे जानबूझकर की गई लापरवाही और / या कदाचार माना जाएगा, जिसके लिए उसके खिलाफ उचित कार्रवाई की जानी चाहिए;
- यह सुनिश्चित करना राज्य का कर्तव्य है कि कानून और व्यवस्था को शांति बनाए रखने के लिए कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से लागु किया जाए ताकि कानून के शासन द्वारा शासित लोकतांत्रिक व्यवस्था में हमारे सर्वोत्कृष्ट धर्मनिरपेक्ष नैतिकता और बहुलवादी सामाजिक ताने-बाने का संरक्षण हो सके।
- संसद को सिफारिश करें कि लिंचिंग को एक अलग अपराध घोषित किया जाए और उस के लिए पर्याप्त और सजा का प्रावधान किया जाए।
पूरे फैसले को यहां पढ़ा जा सकता है।
चूंकि क्रूर लिंचिंग और भीड़ की हिंसा के शिकार लोगों की संख्या चौंकाने वाली गति से बढ़ रही है, जो घृणा से भरे रक्तपात की बढ़ोतरी का संकेत है, शायद मानवता के खिलाफ चल रहे इन अपराधों के खिलाफ मुहिम चलाना ही आने वाले दिनों में एकमात्र तरीका होगा जिससे आम लोगों को जुटाया सके, अन्यथा, कट्टरता से प्रेरित लिंचिंग और हिंसक भीड़ के हमले सामान्य घटना बन कर रह जाएंगे, जो एक ऐसे खूनी ज्वार को बढ़ा देगी जिससे कोई भी नहीं बच पाएगा।