• About Us
  • Contact Us
  • Copyright, Terms and Conditions
  • Events
  • Grievance Redressal Mechanism
  • Home
  • Login
Indian Cultural Forum
The Guftugu Collection
  • Features
    • Bol
    • Books
    • Free Verse
    • Ground Reality
    • Hum Sab Sahmat
    • Roundup
    • Sangama
    • Speaking Up
    • Waqt ki awaz
    • Women Speak
  • Conversations
  • Comment
  • Campaign
  • Videos
  • Resources
  • Contact Us
    • Grievance Redressal Mechanism
  • About Us
No Result
View All Result
  • Features
    • Bol
    • Books
    • Free Verse
    • Ground Reality
    • Hum Sab Sahmat
    • Roundup
    • Sangama
    • Speaking Up
    • Waqt ki awaz
    • Women Speak
  • Conversations
  • Comment
  • Campaign
  • Videos
  • Resources
  • Contact Us
    • Grievance Redressal Mechanism
  • About Us
No Result
View All Result
Indian Cultural Forum
No Result
View All Result
in Features, Speaking Up

मुझे शक है, हर एक पर शक है

byKumar Ambuj
June 3, 2019
Share on FacebookShare on Twitter

कुमार अम्बुज नब्बे के उस दशक के बदलावों के सामाजिक-सांस्कृतिक आयामों की पहचान करने वाले सबसे पहले कवियों में से थे जो आज के सर्वग्रासी समय में परिणत हुआ है। उनकी कविताओं में इस देश की राजनीति, समाज, और उसके करोड़ों मजलूम नागरिकों के संकटग्रस्त अस्तित्व की अभिव्यक्ति है। २०१९ लोक सभा चुनाव की तमाम आशंकाओं के बीच कि कौन किसे वोट देगा, कौन चुनाव जीतेगा, और अब चुनाव के परिणाम के बाद उनकी कविता “मुझे शक है, हर एक पर शक है”, प्रतिबिंब है, एक समाज के रूप में हमारी स्थिति का। यह कविता इस समय की उस विडम्बना को कहने की हिम्मत जुटाती है जिसमें पढ़ा-लिखा सुसंस्कृत समाज हत्यारों के वकील और फिर हत्यारों में तब्दील होता जा रहा है।

हुसैन की पेंटिंग:अ टेल ऑफ़ थ्री सिटीज़| फोटो सौजन्य असुविधा

मुझे शक है, हर एक पर शक है
(पवित्र अश्‍लीलताओं से अश्‍लील पवित्रताओं तक)

मैं कुछ हैरान, कुछ परेशान घर से बाहर निकलता हूँ
सब तरफ तेज़ धूप है, तमाम लोग दिखते हैं अपनी आपाधापी में,
रोशनी की इस चकाचौंध में पहचानने की कोशिश करता हूँ
इनमें कौन हो सकते हैं जिन्‍होंने निसंकोच चुना है
एक एफआईआरशुदा मुजरिम को अपना नुमाइंदा
जबकि चारों तरफ सब जन इतने साधारण, इतने हँसमुख हैं
अपनी सहज दिनचर्या में मशगूल जैसे कुछ हुआ ही नहीं
ज्‍यादातर पढ़े-लिखे, बातचीत में सुशील, नमस्‍कार करते, हाथ मिलाते,
अपरिचित भी निगाह मिलने पर मुसकरा देते हैं,
शायद इनके बारे में ऐसा सोचना ठीक नहीं
लेकिन मुझे हर एक पर शक है यह मेरी बीमारी है
और एक अपराधी विजयी हुआ है यह समाज की बीमारी है

ग़लत चीज़े अकसर पवित्र किस्‍म की अश्‍लीलताओं से शुरू होती हैं

लोग तो हैं इस शहर में ही, पड़ोस में, मेरे आसपास,
मेरे घर में, बाजारों, गलियों, दफ्तरों में, मेरे दोस्तों में, जिन्‍होंने मिलकर
इंसाफ के सामने भी पेश कर दी है इतनी बड़ी शर्मिंदगी
कि कठघरे में खड़े आदमी से कहना पड़ रहा है- हे, मान्‍यवर
और दुंदुभियों के कोलाहल में कोई आवाज ऐसी नहीं उठती जो कहे
हमें दल-विशेष मुक्‍त नहीं, हमें चाहिए अपराधियों से मुक्‍त सरकार

सोचो, हम में से हर दूसरा आदमी अपराधियों का वोटर है

तो क्‍या यह संभव कर दिया है युद्धोन्‍मादियों ने,
तानाशाही की इच्‍छा ने, विश्‍वगुरू की कामना, निराशा की ऊँचाई ने,
किसके झूठ, किसकी गर्जना ने, किस प्रचार, किस बदले की भावना ने,
किस भयानक आशा ने, किसके डर, किसके लालच, किसके घमंड ने,
किसकी ज़िद, किसकी नफ़रत, किसकी मूर्खता, किसके पाखण्‍ड ने
किसके मिथक, किसके इतिहास, किसकी व्याख्या ने,
या अपने ही भीतर पल रही अपराधी होने की संचित आकांक्षा ने

मुझे शक है, हर अच्‍छे-बुरे आदमी पर शक़ है
मैं उन्‍हें भी नहीं बख्श पा रहा हूँ जो मेरे साथ खड़े दिखते हैं
कि जब चीजें पवित्र अश्‍लीलताओं से शुरू होती हैं
तो फिर वे चली जाती हैं अश्‍लील पवित्रताओं के सुदूर किनारों तक।


 

सौजन्य असुविधा । यह कविता कुमार अम्बुज की अनुमति से यहाँ पुनः प्रकाशित किया गया है।

Related Posts

“ढाई आखर प्रेम”: एक अनोखी पदयात्रा
Speaking Up

“ढाई आखर प्रेम”: एक अनोखी पदयात्रा

byNewsclick Report
Experience as a Muslim Student in a Different era
Speaking Up

Experience as a Muslim Student in a Different era

byS M A Kazmi
What’s Forced Dalit IITian To End His Life?
Speaking Up

What’s Forced Dalit IITian To End His Life?

byNikita Jain

About Us
© 2023 Indian Cultural Forum | Copyright, Terms & Conditions | Creative Commons LicenseThis work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License
No Result
View All Result
  • Features
  • Bol
  • Books
  • Free Verse
  • Ground Reality
  • Hum Sab Sahmat
  • Roundup
  • Sangama
  • Speaking Up
  • Waqt ki awaz
  • Women Speak
  • Conversations
  • Comment
  • Campaign
  • The Guftugu Collection
  • Videos
  • Resources
  • About Us
  • Contact Us
  • Grievance Redressal Mechanism

© 2023 Indian Cultural Forum | Creative Commons LicenseThis work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Create New Account!

Fill the forms bellow to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In