क्या यज्ञ से बारिश होती है ?
छोटी कक्षाओं में अध्ययनरत छात्रा भी बरसात के वैज्ञानिक कारणों के बारे में मोटी-मोटी जानकारी रखते हैं, लेकिन पूजा-पाठ से बारिश की उम्मीद लगाए राज्यकर्ता इस मामले में अनभिज्ञ बने हुए रहते हैं।
तमिलनाडु की मिसाल सभी के सामने है। राज्य में पिछले दिनों से जबरदस्त सूखा है। सरकार ने राज्य के 32 जिले में से 24 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित किया है। किसान परेशान हैं, आम आदमी की दिक्कतें बढ़ी हैं। पीने का पानी भी दुर्लभ हो रहा है। पानी को लेकर आपसी झगड़े भी बढ़ रहे हैं। अगर वर्ष 2018 में राज्य के महज तीन जिलों में जमीन के पानी का स्तर खतरनाक स्तर तक नीचे पहुंच चुका था तो एक साल के अन्दर 19 जिले इसी हालत में पहुंचे हैं।
सरकार को चाहिए था कि वह पैसा लगा कर राज्य के निवासियों के लिए कम से कम पीने के पानी का इन्तज़ाम करती। 2015 में जब राज्य की राजधानी चेन्नई में बाढ़ आयी थी तब उसे जो सुझाव मिले थे, उस पर अमल करती। मगर नहीं। उसने न पड़ोसी राज्यों से पानी के टैंकर मंगवाने की कोशिश की, न ही पानी के संग्रहण की क्षमता को बढ़ाने के लिए जलाशयों/तालाबों से कीचड आदि निकालने का प्रबंध किया।
सूखे की समस्या से निपटने के लिए वह एक अलग योजना के साथ हाजिर हुई। उसने राज्य भर के मंदिरों के प्रतिष्ठानों को लिखा कि वह अपने यहां यज्ञों का आयोजन करे जिसे पर्जन्य देवता प्रसन्न हों और बारिश हो। कम से कम देश के चार हजार मंदिरों में इन यज्ञों का आयोजन प्रस्तावित है और उन्हें राज्य सरकार को इसकी सूचना भेजने के लिए कहा गया है कि उन्होंने कब यज्ञ का आयोजन किया।
तर्कशीलता के प्रति राज्य की आधिकारिक प्रतिबद्धता और व्यवहार में उससे विपरीत आचरण का तमिलनाडु का यह पहला मामला नहीं है। जिन दिनों सुश्री जयललिता जिन्दा थीं उन दिनों भी पेरियार रामस्वामी नायकर जैसे तर्कशील एवं नास्तिक नेताओं की कर्मभूमि रहे तमिलनाडु के 200 मंदिरों में वैदिक मंत्रों का जाप किया गया था। राज्य में पीने एवं सिंचाई के लिए पानी की जबरदस्त कमी को देखते हुए यह आयोजन किया गया था। अहम बात यह थी कि यह सब राज्य में सत्तासीन जयललिता सरकार के आदेश के तहत हिंदू रिलीजियस एंड चेरिटेबल एंडोमेंट डिपार्टमेंट के तत्वावधान में किया गया था।
दो साल पहले तत्कालीन लोकसभा स्पीकर सुश्री सुमित्रा महाजन की उन तस्वीरों से खलबली मचा दी थी जब वह अपने ग्रहनगर इंदौर में पांच स्थानों पर पर्जन्य यज्ञ में शामिल हुईं। खजराना गणेश मंदिर में यज्ञ में आहुति देने के साथ इस सिलसिले की शुरूआत हुई थी जो त्रिपुर सुंदरी देवी के मंदिर तक चलती रही। मीडिया के मुताबिक उन्होंने यह भी कहा कि हमारे वेदों की रस्में बारिश की संभावना को बल देती हैं… जो वैज्ञानिक हैं।’
अब चाहे तमिलनाडु सरकार हो या पूर्व स्पीकर रही हों यह प्रश्न अधिक विचारणीय हो उठा है कि क्या उनका आचरण संविधान के अनुकूल हैं। याद रहे भारत की संविधान की धारा 51 ए मानवीयता एवं वैज्ञानिक चिंतन को बढ़ावा देने में सरकार के प्रतिबद्ध रहने की बात करती है। वह अनुच्छेद राज्य पर वैज्ञानिक एवं तार्किक सोच को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी डालता है, ऐसा होने के बावजूद आखिर वैज्ञानिक चिन्तन को खारिज करने वाले ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन क्या कहलाता है? याद करें, एस आर बोम्मई मामले में उच्चतम न्यायालय का फैसला जिसके अनुसार धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य का कोई धर्म नहीं होगा, राज्य सभी धर्मों से दूरी बनाए रखेगा और राज्य किसी धर्म को बढ़ावा नहीं देगा और न ही राज्य की कोई धार्मिक पहचान होगी।
अभी ज्यादा दिन नहीं हुआ जब विगत सरकार में गुजरात के शिक्षा मंत्री – जनाब भूपेन्द्र सिंह चूडासमा और राज्य के सामाजिक न्याय मंत्राी – श्री आत्माराम परमार – एक ऐसे कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति के चलते सुर्खियों में आए जिसमें झाड़-फूंक करनेवालों को सम्मानित किया जा रहा था। जब उनकी उपस्थिति को लेकर – जिसमें वह करीब सौ ओझाओं से हाथ मिलाते भी दिखे – विवाद खड़ा हुआ तो उन्होंने उसे उचित बताते हुए भी बखूबी तर्क दिए जनाब चुडासमा ने कहा कि ‘वह दैवी शक्ति के उपासकों का मेला था न कि ऐसे लोगों का जो अंधश्रद्धा फैलाते हैं’’ श्री परमार ने यह कहते हुए अपना बचाव किया कि ‘‘जो लोग उनकी सहभागिता का विरोध कर रहे हैं, वह हिन्दू संस्कृति के बारे में जानते नहीं हैं। वह दैवी शक्ति वाले पवित्र लोग थे।’
यहां इस बात को रेखांकित करना मुनासिब होगा कि मंत्रीद्वय की इस उपस्थिति को लेकर हंगामा तभी खड़ा हो सका जब दलितों और अन्य उत्पीड़ित तबकों ने यह कहते हुए विरोध प्रदर्शन किए कि मंत्राीद्वय ने घातक अंधश्रद्धा को बढ़ावा देने का काम किया। लोगों को यह बात भी विचलित करनेवाली लगी कि ग्रामीण गुजरात ऐसे हजारों तांत्रिकों/ओझाओं के चंगुल में होने के बावजूद – जो अंधश्रद्धा से युक्त तमाम कारनामों को अंजाम देते हैं – इन मंत्रियों को इस समारोह से कुछ गुरेज नहीं था।
यह विडम्बना ही कही जा सकती है कि जहां जनप्रतिनिधि अपनी मौजूदगी से जनता के बीच व्याप्त अवैज्ञानिक चिन्तन को हवा देते दिखते हैं, वहीं यह भी देखने में आया है कि सत्ता के पदों पर बैठ कर वह इसकी मजबूती की दिशा में ठोस कदम उठाने ने हिचकते नहीं हैं। उदाहरण के तौर पर योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के वर्ष /2017/ जुलाई माह में जब कांवड यात्रा की चर्चा सुर्खियों में थी, तब यूपी के मुख्यमंत्री ने बाकायदा आदेश दिया कि कांवड यात्रा के रास्ते में जो गुलेर के पेड़ दिखते हैं – जिसे अंजीर नाम से भी जाना जाता है – उनकी छंटाई होगी क्योंकि कांवडियों की निगाह में वह ‘अपवित्र’ होते हैं।
कोई यह कह सकता है कि आखिर अंधश्रद्धा फैलाने के लिए क्या महज भाजपा शासित राज्यों को ही जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, उसे बढ़ावा देने में शासक वर्गों की अन्य पार्टियां भी सक्रिय रहती हैं। इसमें निश्चित ही कोई दोराय नहीं है। ऐसे अन्य उदाहरण देखे जा सकते हैं जब गैरभाजपा पार्टियों की हुकूमतों ने भी सूखे की स्थिति के मद्देनज़र विभिन्न प्रार्थना स्थलों में विशेष पूजा का आयोजन किया या ऐसे उदाहरण भी मौजूद हैं या नए चुने मुख्यमंत्रियों ने वास्तु दोष दूर करने के नाम पर करोड़ों रुपया अपने मकानों के नवीनीकरण पर खर्च कर दिया।
लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता अंधश्रद्धा को बढ़ावा देने के मामले ने हाल के वर्षों में तेज गति ग्रहण की है, जबसे केन्द्र में हिन्दु दक्षिणपंथ की सरकार आयी है, जिसका सीधा ताल्लुक संघ के असमावेशी फलसफे से है। इसे महज संयोग नहीं कहा जा सकता कि हिन्दुत्व दक्षिणपंथ के उभार ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस की बहसों को भी प्रभावित किया है – जहां यह देखने में आया है कि छद्म विज्ञान को विज्ञान के आवरण में पेश किया जा रहा है या वैज्ञानिक संस्थानों द्वारा मिलनेवाली राशि में कटौती जारी है तथा एक विशिष्ट एजेण्डा को आगे बढ़ाने में उनका इस्तेमाल हो रहा है।
विज्ञान की नयी शाखा के तौर पर काऊ-पैथी का आगमन या गो-विज्ञान का इस क्लब में नया प्रवेश हुआ है। डिपार्टमेण्ट आफ साइन्स एण्ड टेक्नोलोजी द्वारा ‘पंचगव्य’ की वैज्ञानिक पुष्टि और इस सिलसिले में अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय संचालन समिति का गठन किया गया है।
वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके नेतृत्व में अक्सर नए भारत के निर्माण की बात करते रहते हैं। अगर हम हमारे इर्द-गिर्द घटित होते परिदृश्य को देखें तो स्पष्ट होता है कि वाकई एक ‘नया भारत’ सामने आया है। एक ऐसा भारत जिसने बीते पूर्वाग्रहों, अलगावों एवं भेदभावों को नए सिरे से खोजा है और वह अतार्किकता के रास्ते पर धड़ल्ले से आगे बढ़ रहा है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि चीजें किस तरह आगे बढ़ती हैं? अब जबकि नयी सरकार के गठन के लिए वोट पड़ रहे हैं तब क्या प्रबुद्ध लोग इस मसले पर भी गौर करते हुए फैसला लेंगे?