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सोशल मीडिया प्लेटफार्म कैसे प्रोपेगंडा फ़ैलाने के हथियार बन गए हैं

byCyril Sam,Paranjoy Guha ThakurtaandPrabir Purkayastha
May 3, 2019
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दुनियाभर में फेसबुक के करीब 2 अरब यूजर्स हैं, जिनमें से करीब 24 करोड़ यूजर्स भारतीय हैं। पिछले कुछ महीनों से डेटा लीक की खबरों सामने आई हैं | विश्व की सबसे विशाल और चर्चित सोशल मीडिया वेबसाइट, फेसबुक की नीतियों पर अब कई देश सवाल उठा रहे हैं | ऐसे में, सिरिल सैम और परंजय गुहा ठाकुरता की किताब, फेसबुक का असली चेहरा (2019) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है | प्रबीर पुरकायस्थ के साथ सिरिल सैम और परंजय गुहा ठाकुरता की बातचीत|

निम्नलिखित फेसबुक का असली चेहरा (2019), किताब के “सोशल मीडिया प्लेटफार्म कैसे प्रोपेगंडा फ़ैलाने के हथियार बन गए हैं? ” अध्याय का एक अंश है जो की न्यूज़क्लिक संपादक और फ्री सॉफ्टवेयर मूवमेंट के अध्यक्ष, प्रबीर पुरकायस्था, के द्वारा लिखा गया है |

“हमें दो सवालों पर ध्यान देने की ज़रुरत है| हम यहाँ फेसबुक शब्द का इस्तेमाल उसके और अन्य दुसरे डिजिटल प्लेटफार्म के लिए भी कर रहे हैं| पहला सवाल यही है की क्यों फेसबुक का झुकाव दक्षिणपंथी दलों की तरफ है? यह अमेरिका, भारत और ब्राज़ील जैसे देशों में दिख रहा है| दूसरा सवाल यह है की इस तरह के एकाधिकार से लोकतंत्र और लोकतान्त्रिक संस्थाओं को किन खतरों का सामना करना पड़ रहा है? नयी प्रौद्योगिकी की नयी समस्याएं हैं| लेकिन हम उस पुराणी समस्या का सामना कर रहे हैं जिसमें बुरी ख़बरों को बाहर कर दे रही हैं| एहि स्थिति विचारों के मामले में भी है| बुरी ख़बरों में भी फ़र्ज़ी ख़बरों और कानूनों को अवहेलना करते हुए नफरत फ़ैलाने वाली बातों को भी आगे बढ़ाया जा रहा है|

क्या ये डिजिटल प्लेटफार्म दक्षिणपंथी राजनीति की और झुके हुए हैं? सिलिकॉन वैली के कारोबारी दिग्गज खुद को आधुनिक मसीहा मानते हैं| वे यह दवा करते हैं की वे अपनी तकनीकों के साथ मिलकर आधुनिक और अधिक समावेशी समाज का निर्माण करेंगे | फिर उनकी तकनीकें क्यों फ़र्ज़ी ख़बरों के प्रसार में इस्तेमाल  होती हैं?”

[…]

“डिजिटल प्लेटफार्म न सिर्फ संदेशों को कई गुना कर देते हैं बल्कि ये लिक्षित विज्ञापन भी करते हैं| वे यह जानते हैं कि समाज का किस वर्ग के हिसाब से कैसा विज्ञापन करता है| वे समाज में छोटे से छोटे स्टार पर जाकर लोगों को विज्ञापनों के लिए लक्षित कर पाते हैं|

यह वस्तुओं और सेवाओं को बेचने का आज़माया हुआ विज्ञापन मॉडल है | इंटरनेट ट्रैफिक में गूगल और फेसबुक कि हिस्सेदारी 70 फीसदी है | इन्होने लोगों को लक्षित करके बड़ा बाज़ार हासिल कर लिया है | अख़बारों और टेलीविज़न चैनलों को जनसँख्या कि सरंचना के बारे में मोटा-मोटा अनुमान होता है | लेकिन डिजिटल प्लेटफार्म यह जानते हैं कि आप कहाँ रहते हैं, आप क्या पढ़ते हैं, आपकी दिलचस्पी किन चीज़ों में है, आपकी उम्र क्या है, आपका लिंग क्या है, आपका झुकाव किस और है आदि | वे जाति, धर्म और अन्य बातों को भी जानते हैं | इन सूचनाओं के ज़रिये वे लोगों को विभिन्न आधारों पर बांटकर लक्षित कर पाते हैं | किताब बेचने के लिए अलग वर्ग को लक्षित किया जाता है और राजनीतिक सन्देश देने के लिए अलग वर्ग को| अलग-अलग कामों के लिए अलग-अलग शैली अपनायी जाती है | हमारी जानकारियां गूगल और फेसबुक के डाटा बेस में रहती हैं | इसलिए वे उत्पादों के बाजार के हिसाब से उनके लिए यह आसान है कि वे ज़रूरी जानकारियां अपने डाटा बेस से निकाल लें |”


किताब के बारे में और जानकारी प्राप्त करने के लिए पढ़े : www.theaslifacebook.com


और पढ़ें:
हमने भी जां गंवाई है इस मुल्क की ख़ातिर…
क्या भारतीय समाज में वैज्ञानिक नज़रिया ख़त्म हो रहा है?

प्रस्तुत अंश, सिरिल सैम और परंजय गुहा ठाकुरता की किताब फेसबुक का असली चेहरा से हैं | यह पुस्तक, परंजय गुहा ठाकुरता द्वारा प्रकाशित की गई है | पुनःप्रकाशन, प्रकाशक की अनुमति लेकर किया गया है |
सिरिल सैम नई दिल्ली में स्वतंतत्र पत्रकार और शोधार्थी के तौर पर काम करते हैं| उनके पास इंटरनेशनल सेंटर फॉर जौर्नालिस्ट, स्क्रॉल डॉट इन, कैच न्यूज़, तेहेलका और फर्स्ट पोस्ट में काम करने का अनुभव है| परंजय गुहा ठाकुरता चार दशक से अधिक समय से पत्रकार और लेखक के तौर पर काम कर रहे हैं| उनके पास प्रिंट, रेडियो और टेलीविज़न में काम करने का अनुभव है| अप्रैल, 2016 से जुलाई, 2017 तक वे इकोनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली के संपादक रहे हैं| वे अभी न्यूज़क्लिक के साथ कंसलटेंट के तौर पर काम कर रहे हैं|

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