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अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस: संघर्ष का दिन, संकल्प का दिन

byICF Team
April 30, 2019
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उर्दू कवि जौन एलिया की नज़्म, “ऐलान ए रंग”, उस ऐतिहासिक घटना पर लिखी है, जो 1 मई 1886 को शिकागो में हुई थी। मज़दूरों के उसी संघर्ष के बाद दुनिया भर में काम का निर्धारित समय 8 घंटे हुआ था, हालांकि दुनिया के एक बड़े हिस्से में इसको ले कर ये संघर्ष आज भी जारी है। यही वजह है कि मई दिवस पर ये नज़्म हमें आज भी उचित लगती है  लगती है।

जौन ने इस नज़्म में उस दिन को बयान किया है, जो मज़दूर संघर्ष की नींव की तरह साबित हुआ था, और जिस दिन को आज भी दुनिया के हर मज़दूर संगठन याद करते हैं।

एलान ए रंग- जॉन एलिया

सफ़ेद परचम सफ़ेद परचम
ये उनका परचम था जो Chicago के चौक में जम’अ हो रहे थे
जो नर्म लहजों में अपनी महरूमियों की शिद्दत समो रहे थे
के हम भी हक़दार ए ज़िन्दगी हैं
मगर दिल अफ़गार ए ज़िन्दगी हैं
हमारे दिल में भी कुछ उमंगें हैं
हम भी कुछ ख़्वाब देखते हैं
ख़ुशी ही आँखें नहीं सजाती है
ग़म भी कुछ ख़्वाब देखते हैं
यकुम मई की सहर ने जब अपना नफ़्स ए मज़मू रक़म किया था
बलानसीबो को ज़िन्दगी की उमंग ने हम क़दम किया था
और इक जरीदानिगार सुब्ह ए शुऊर ए मेहनत ने आज के दिन
ब नाम ए मेहनतकशां ये पैग़ाम ए हक़ सुपुर्द ए क़लम किया था
‘अलम नसीबो बहादुरी से!
सितम नसीबो बहादुरी से!’
सफ़ों को अपनी दुरुस्त कर लो
के जंग आग़ाज़ हो चुकी है
तुम्हारे कितने ही बा हुनर हाथ हैं जो बे रोज़गार हैं आज
तुम्हारे कितने निढाल ढाँचे घरों में बे इंतज़ार हैं आज
निज़ाम ए दौलत के पंजा हा ए दुरुष्त ओ ख़ूनी शुरू ही से
फ़रेब ए कानून ओ अम्न की आड़ में छुपे हैं छुपे रहे हैं
गिरोह ए मेहनत कशां हो तेरी ज़बान पर अब बस एक नारा
‘मफ़ाह्मत ख़त्म हो चुकी है!’
मफ़ाह्मत ख़त्म हो चुकी है!’
सितमगरों से सितमकशों की मुआमलत ख़त्म हो चुकी है
यकुम मई का हिसाब ए अज़मत तो आने वाले ही कर सकेंगे

(यहाँ मैंने उस अह्द आफ़रीन तहरीर के एक हिस्से का मफ़हूम नग्म किया है जो यकुम मई की सुब्ह को मज़दूरों के एक अख़बार में शाय हुई थी)

हुजूम गुंजान हो गया था अमल का ऐलान हो गया था
तमाम महरूमियाँ हम आवाज़ हो गई थीं के हम यहाँ हैं
हमारे सीनों में हैं ख़राशें हमारे जिस्मों पे धज्जियाँ हैं
हमें मशीनों का रिज़्क़ ठहरा के रिज़्क़ छीना गया हमारा
हमारी बख़्शिश पे पलने वालो हमारा हिस्सा तबाहियाँ हैं
मगर ये ख़्वाब था
वो एक ख़्वाब, जिसकी ताबीर ख़ूँचकां थी
रक़म जो कि थी क़लम ने सरमाए के वो तहरीर ख़ूँचकां थी
सफ़ेद परचम ने ख़ून ए मेहनत को अपने सीने पे मल लिया था
ये वक़्त की सरबुलंद तदबीर थी ये तदबीर खूँचकां थी
दयार ए तारीख़ की फ़िज़ाओं में सुर्ख़ परचम उभर रहा था
ये ज़िन्दगी की ज़लील तनवीर थी ये तनवीर ख़ूँचकां थी
यकुम मई ख़ूँ शुदा उमंगों की हक़ तलब बरहमी का दिन है
यकुम मई ज़िन्दगी के ज़ख़्मों की सुर्ख़रू शायरी का दिन है
यकुम मई अपने ख़ून ए नाहक़ की सुर्ख़ पैग़म्बरी का दिन है
यकुम मई ज़िन्दगी का ऐलान ए रंग है ज़िन्दगी का दिन है
ये ज़िन्दगी ख़ून का सफ़र है
और इब्तेला इसकी रहगुज़र है
जो ख़ून इस सैल ए खूँ की मौजों को तुन्द कर दे वो नामवर है
ये ख़ून है ख़ून ए सर ज़निंदा
ये ख़ून ए ज़िंदा है ख़ून ए ज़िंदा
वो ख़ून परचम फ़राज़ होगा जो ख़ून ए ज़िंदा का हमसफ़र है
ये ख़ूँ है सरनाम यानी सरनाम ए किताब ए उमम ये ख़ूँ है
अदब गहे इज्तिहाद ए तारीख़ में निसाब ए उमम ये ख़ूँ है
सलीब ए ऐलान ए हर्फ़ ए हक़ का ख़तीब भी ये ख़िताब भी ये
ये अपना नाशिर है और मनशूर ए इंक़लाब ए उमम ये ख़ूँ  है
ये ख़ून ही ख़ैर ए जिस्म ओ जां है
इस इम्तेहां गाहे ज़िन्दगी में
जहाँ कहीं ज़ुल्म तानाज़न हो वहाँ जवाब ए उमम ये ख़ूँ है
ये ख़ून ही ख़्वाब देखता है शिकस्त की शब भी सुब्ह ए नौ के
फिर अपनी ही गर्दिशों में ताबीर कोशे ख़्वाब ए उमम ये ख़ूँ है
ये खूँ उठाता है ग़ासिबों के ख़िलाफ़ तूफ़ां बग़ावतों के
हो आम जब ज़िन्दगी की ख़ुशियां तो आब ओ ताब ए उमम ये ख़ूँ है
जो ज़ुल्म से दू ब दू हैं उनकी सफों को क़ुव्वत पे लाओ, आओ!
इसी तरह ख़ून ए ज़िन्दा ए हर ज़मां जहाँ इक़्तेदार होगा
निफ़ाक़ और इफ़्तेराक ही में पनाह लेते रहे हैं ज़ालिम
जो ज़ालिमों को पनाह देगा वो ज़ालिमों में शुमार होगा


और पढ़ें:
#May Day: Were You?
Remembering Lenin on May Day
Celebrating May Day with Books & Performances at the Iconic May Day Bookstore in Delhi
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On #MayDay, Remembering the Powerful Kisan Long March

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