आने वाले चुनावों में हमारा देश एक दोराहे पर खड़ा है। हमारा संविधान यह सुनिश्चित करता है कि देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार, अपनी मर्ज़ी से खाने, पूजा-अर्चना करने और जीने की आज़ादी मिले, अभिव्यक्ति की आज़ादी और असहमति जताने का अधिकार मिले। लेकिन पिछले कुछ सालों से हम देख रहे हैं कि कई नागरिक भीड़ की हिंसा में मारे गये, घायल हुए या उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा और यह सब सिर्फ़ इसलिए क्योंकि वे किसी विशेष समुदाय, जाति, लिंग या क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं। नफ़रत की राजनीति का इस्तेमाल कर देश को बाँटा जा रहा है; डर फैलाया जा रहा है; और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को पूर्ण नागरिक के तौर पर जीने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। लेखकों, कलाकारों, फ़िल्म निर्माताओं, संगीतकारों और अन्य संस्कृतिकर्मियों को धमकाया, डराया और सेंसर किया जा रहा हैI जो भी सत्ता पर सवाल उठा रहा है वो उत्पीड़न या झूठे व बेहूदा आरोपों पर गिरफ़्तारी के ख़तरे को झेल रहा है।
हम चाहते हैं कि यह स्थिति बदले। हम नहीं चाहते कि तर्कवादियों, लेखकों और कलाकारों को सताया जाए या मार दिया जाए। हम चाहते हैं कि महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ मौखिक या शारीरिक हिंसा करने वालों पर सख़्त कार्रवाई की जाएI हम चाहते हैं कि सबके लिए आगे बढ़ने के समान अवसर दिए जाएँ और रोज़गार, शिक्षा, शोध तथा स्वास्थ्य के क्षेत्रों की बेहतरी के लिए संसाधन व क़दम उठाये जाएँI और इन सबसे ज़्यादा हम अपनी विविधता को बचाना और लोकतंत्र को फलते-फूलते देखना चाहते हैं।
यह सब हम कैसे कर सकते हैं? हम कैसे वे बदलाव ला सकते हैं जिनकी हमें सख़्त ज़रूरत है? ऐसे बहुत से क़दम हैं जो हम उठा सकते हैं और हमें उठाने चाहिएI लेकिन एक महत्वपूर्ण क़दम है जो हमें सबसे पहले उठाना है।
यह पहला क़दम है कि हम नफ़रत की राजनीति के ख़िलाफ़ वोट करें और ऐसा करने का मौक़ा हमें बहुत जल्द ही मिल रहा है। हमारे लोगों को बाँटने के ख़िलाफ़ वोट करें; असमानता के ख़िलाफ़ वोट करें; हिंसा, डर और सेंसरशिप के ख़िलाफ़ वोट करें। सिर्फ़ यही एक रास्ता है जिससे हम एक ऐसा भारत बना सकते हैं जो संविधान में किये वादों के लिए प्रतिबद्ध हो। इसलिए हम सभी नागरिकों से अपील करते हैं कि वे एक विविधतापूर्ण और समान भारत के लिए वोट करें।
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More than 200 Writers Appeal to Citizens