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in Speaking Up

ज़हरीली हवा : भोपाल गैस कांड की एक गवाही

byICF Team
December 3, 2018
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Image Courtesy: Newsclick

उन लोगों को समर्पित जिन्होंने मर कर भी हमें
वह समझ प्रदान की जिससे की हम दुनिआ में
कहीं भी भोपाल जैसी त्रासदी घटित न होने दें
– ज़हरीली हवा

भोपाल  के रचनाकार, राहुल कहते हैं," इस नाटक के विचार का उदय ३ दिसंबर १९८४ की उस रात को हुआ जब भोपाल मनुष्यता के इतिहास के सबसे विराट गैस चैम्बर में तब्दील हो गया था । सुबह होने तक ५०० लोग मर चुके थे, शाम ढलते-ढलते यह संख्या २५०० तक पहुँच गयी थी और बाद के दिनों में हालत उस जगह पहुँच चुकी थी जहाँ संख्या के कोई मायने नहीं रह गए थे ।" राहुल वर्मा का अंग्रेजी नाटक, भोपाल  कनाडा में दिखाया जा चूका है. २००४ में प्रकाशित किये गए इस नाटक का हिंदी अनुवाद, प्रसिद्ध नाटककार, हबीब तनवीर ने किया था, जिन्होंने इसका शीर्षक ज़हरीली हवा ज़्यादा मुनासिब समझा।

भोपाल गैसकांड की ३४वीं बरसी पर यह प्रश्न आज भी हमारे ज़हन में बना हुआ है :
" ऐसा क्यों है कि जिन अनाम, अमूर्त नागरिकोंको को तथाकथित विकास का कोई लाभ नहीं मिलता, उन्हें इस विकास की कीमत अपने जीवन से चुकानी पड़ती है?”

भारत के मध्य प्रदेश राज्य के भोपाल शहर में 3 दिसम्बर सन् 1984 को एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड, या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ जिससे लगभग 15000 से अधिक लोगो की जान गई तथा बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए। भोपाल की लगाभग ५ लाख २० हज़ार लोगो की जनता इस विशैलि गैस से सीधि रूप से प्रभावित हुइ जिसमे २,००,००० लोग १५ वर्ष की आयु से कम थे और ३,००० गर्भवती महिलाएं थी, उन्हे शुरुआती दौर में तो खासी, उल्टी, आन्खो में उलझन और घुटन का अनुभव हुआ। २,२५९ लोगो की इस गैस की चपेट में आ कर आकस्मिक ही म्रित्यु हो गयी। १९९१ में सरकार द्वारा इस सन्ख्या की पुष्टि ३,९२८ पे की गयी। दस्तावेज़ो के अनुसार अगले २ सप्ताह के भीतर ८००० लोगो कि म्रित्यु हुइ। मध्या प्रदेश सरकार द्वारा गैस रिसाव से होने वालि म्रित्यु की सन्ख्या ३,७८७ बतलायी गयी है। भोपाल गैस त्रासदी को लगातार मानवीय समुदाय और उसके पर्यावास को सबसे ज़्यादा प्रभावित करने वाली औद्योगिक दुर्घटनाओं में गिना जाता है।

भूमण्डीलकरण और बहुराष्ट्रीयता पर निशाना साधते हुए, ज़हरीली हवा के इंट्रोडक्शन में, हबीब तनवीर लिखते हैं, "बहुराष्ट्रीय व्यापारियों का उद्देश्य केवल ज़्यादा से ज़्यादा पैसे कामना है, चुनांच: वे तीसरी दुनिया के मुल्कों में विकास के नाम पर अपना घटिया माल पटक देते हैं और नतीजे में दुनिया के विकास तो दूर रहा, इन मुल्कों की जनता की दीनता कुछ और बढ़ जाती है।"

झोपड़ी में रहने वाली औरत इज़्ज़त पर केंद्रित यह नाटक गैस और गैस के प्रति लापरवाही के विषयों पे रौशनी डालता है।  एक तरफ यह नाटक भूमंडलीकरण और व्यावसायीकरण के मुद्दे और दिक्कतें उठता है और दूसरी और हिंदुस्तान की साम्राज्यवादी विदेशी नीतियों की बात करता है।  साथ ही साथ महिलाओं की समाज में स्थिति का विषय साफ़ दर्शाता है।   

ऐसा नहीं है की भोपाल गैस त्रासदी की गलतिओं से हमने कुछ सीख पाए हैं। हम यह गलतियां आज भी दोहरा रहे हैं।आज भी आम आदमी के मन में यही सवाल है – क्या यह विकास वाक़ई सबके साथ है?


 

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