मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिंदी है हम वतन है हिंदोस्तां हमारा
Remembering 6 December 1992
No More Hatred | No More Violence – Not In My Name
6 December 2017 will mark twenty-five years of the demolition of Babri Masjid. On that day we will gather at several locations across the city of Delhi to remember the assault on India and on Indians. We will remember the thousands of Indians who lost their lives because some in this country launched a violent and hate-filled campaign to divide citizens and to gain political power. We call upon you to join us as we hold hands and say – No More Hatred!
The demolition of Babri Mosque was an attack on the secular polity of our country and the rule of law. It was an attack upon India's history of diversity and co-existence, its celebration of difference and its recognition that religious minorities have an equal stake in their homeland as their Hindu brothers and sisters.
The mosque does not exist anymore and yet it is probably the most significant moment of violence in the history of independent India along with the anti-Sikh violence of 1984 and the Gujarat pogrom in 2002. The build-up to the demolition began from the Meerut violence of 1987. Eventually, almost the entire country was scorched by the communal politics and violence that followed the demolition. The thousands who died in different parts of the country, the families that were permanently ruined, children who were suddenly orphaned, and businesses and livelihoods that were destroyed, are all part of our living memory of the hate that drives communal politics.
6 December 1992 changed India in significant ways. We know well that the seeds for the current politics of hatred lie in the successful campaign to demolish the Babri Masjid. The absence of the mosque marks the triumph of mob rule over law; the establishment of Hindutva as a possible option to a secular republic, and the setting up of countrywide interlinked production and manufacture of hate.
The Ayodhya dispute is scheduled to come up for hearing again in the Supreme Court of India. And even before the Court arrives at a decision we have begun to hear political statements and mobilisations that sound eerily similar to the ones that left a bloody trail across India in the 1990s. We cannot allow any individual, group or organization to mobilise political constituencies based on hatred. As citizens, we must declare in one voice – No more hatred!
This is a citizens protest. All are welcome but without organisational banners and logos.
Schedule of the program on 6th December 2017 in Delhi:
12.30 pm: Delhi University, Kranti Chowk, Corner of Ramjas College and Delhi School of Economics. Nearest Metro: Vishwavidyalaya
1.30 pm: Vishwavidyalaya Metro Station, Outside Gate No. 1,
3.30 pm: Chandni Chowk, Opposite State Bank of India, Corner of Esplanade Road and Chandni Chowk Marg. Nearest Metro: Lal Qila, Gate No. 1
4.15 pm: Opposite Shop No.1, Kabootar Market, Meena Bazaar, Netaji Subhash Marg. Nearest Metro: Jama Masjid Gate No. 4
5.30 pm: Amphitheatre, Central Park, Connaught Place. Nearest Metro: Rajiv Chowk, Gate No. 1
Follow the campaign on facebook: https://www.facebook.com/events/307558069743285/
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिंदी है हम वतन है हिंदोस्तां हमारा
6 दिसंबर 1992 की स्मृति में
नफरत और नहीं ! हिंसा और नहीं ! – मेरे नाम पर नहीं
6 दिसंबर 2017 को बाबरी-मस्जिद के विध्वंस के 25 वर्ष पूरे हो जायेंगे. उस दिन हम भारत और भारतियों पर हमले की स्मृति में दिल्ली के कई इलाकों में इकठ्ठा होंगे. हम उन हज़ारों भारतीयों को याद करेंगे, जो कुछ लोगों द्वारा राजनीतिक ताकत हासिल करने और आम नागरिकों में फूट डालने के लिए चलाये गये नफरत और हिंसा के अभियान के चलते मारे गये. हम आप सब से अपील करते हैं कि आप भी हमारे साथ इस अभियान में शामिल हों और हम सब
मिल कर कहें – नफ़रत और नहीं !
6 दिसंबर 1992 ने भारत को कई तरह से बदल दिया. बाबरी मस्जिद को गिराया जाना दरअसल हमारे देश की धर्म-निरपेक्ष शासन-विधि और संविधान पर हमला था. यह हमला न केवल भारत की विविधता और सहअस्तित्व पर था अपितु यह हमला उस साझी-संस्कृति पर भी था, जो सुनिश्चित करती है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों को भी अपनी मातृभूमि पर उतना ही हक़ है जितना उनके हिन्दू भाई-बहनों का.
मस्जिद अब नहीं रही. बाबरी मस्जिद विध्वंस स्वतंत्र भारत के इतिहास की, 1984 के सिक्ख-विरोधी हिंसा और 2002 के गुजरात नरसंहार के जैसी, महत्वपूर्ण घटना है.
1987 की मेरठ हिंसा से ही विध्वंस की तैयारी शुरू हो चुकी थी. परिणामस्वरुप, बाबरी मस्जिद गिराने के बाद पूरे देश को साम्प्रदायिक राजनीति और हिंसा में झोंक दिया गया. हजारों लोग इस हिंसा का शिकार हुए, अनेकों परिवार हमेशा के लिए उजड़ गये, मासूम बच्चे अचानक अनाथ हो गये, लोगों का रोज़गार और आजीविका छिन गये; नफरत और हिंसा की राजनीति से उत्पन्न ये तस्वीरें हमारी स्मृति में जिंदा है.
हम भली भांति जानते हैं कि नफरत की मौजूदा राजनीति के बीज बाबरी-विध्वंस के साथ बो दिए गये थे. मस्जिद की गैर-मौजूदगी क़ानून के राज पर भीड़ की जीत, धर्मनिरपेक्ष गणराज्य के रूप में हिंदुत्व को एक विकल्प के रूप में स्थापित करने और देशभर में नफरत के उगाव और फैलाव का ऐलान करती है.
शीघ्र ही सर्वोच्च न्यायालय में अयोध्या मामले की सुनवाई की जानी है. और इससे पहले की न्यायालय इस पर कुछ निर्णय करे ठीक वैसे ही राजनीतिक बयान आने लगे हैं और लामबंदिया शुरू हो गईं जैसी कि नब्बे के दशक में; और जिसके बाद भारतभर में जगह-जगह खूनी मंजर देखने पड़े. नफरत से सराबोर किसी व्यक्ति, समूह, संगठन या राजनीतिक गुट को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. नागरिक के तौर पर हमें ही ऐलान करना होगा.. अब और नफरत नहीं.
यह आम नागरिकों का प्रतिरोध अभियान है. आप सभी का स्वागत है. आप इस अभियान में शामिल हों, बिना किसी बैनर अथवा चिन्ह के, ऐसी हमारी आपसे अपील है.