Dear writers, poets, music makers, artists and members of the cultural fraternity,
There is a rising darkness in India. Mobs violently are acting out visceral hatred everywhere targeting people because of their faith and caste.
These assaults are characterised by bystanders who actively support the killing, or do nothing to stop it. Pehlu Khan is killed on a busy national highway; in Una, attackers circulate videos of whippings, convinced of their valour and impunity. Akhlaq is lynched by his neighbours. Junaid is stabbed 30 times on a crowded train.
How culpable are we when our brothers and sisters are burned and lynched and we stand by?
We need to interrogate the reasons for our silences, for our failures to speak out, and to intervene, when murderous hate is unleashed on innocent lives. We need our conscience to ache. We need it to be burdened intolerably.
Darkness can never be fought with darkness, only light can dispel the enveloping shadows To speak in this way to our collective silences, We propose to embark with as many comrades who wish to join on a journey of shared suffering, of solidarity, of atonement and of love.
As a response to the rising darkness of hate violence and lynching in India today, we propose as a large collaborative civil society initiative to undertake a month-long journey visiting families of those who lost loved ones to hate lynching. It will be called Mohabbat Ka Safar. It will be a journey for sharing pain, for atonement and for love.
The journey will begin from Nellie in Assam tentatively on September 11 and end at Porbandar in Gujarat on October 2, with a halt in between in Delhi and Mhow. The first phase of the Safar will cover Assam, Jharkhand and Kashmir. We will visit two lynch victim families in each state, for atonement, and to try to assess how the family is coping and what they need for livelihoods and the pursuit of justice. The various tributaries will join from these states (and any other who wish to join the Safar) at Delhi on 21 September, and the second phase will begin at Tilak Vihar in Delhi. In this phase all participants will travel together by buses.
The reason to start with Nellie is to acknowledge an older history of communal massacres with their unmet justice and unhealed wounds. Nellie is the largest post-Partition massacre, and not one person has been punished for this crime. The same reason is for us to start the second phase from the 1984 widows’ colony at Tilak Vihar, Delhi, because they have suffered as well from a monumental denial of justice.
From Delhi, the Safar will move to Rajasthan and Western UP and on to Gujarat. On its journey, the Safar we will stop at Mhow, the birthplace of Dr Ambedkar, to be mindful of his caution to all of us that the core of democracy and our constitution is fraternity, and this today is most under attack in India today. The last point of the Safar on Oct 2 will be Gandhi’s birthplace, to recall his lifelong belief in Hindu-Muslim unity, and in his last months, his walk in Naokholi when the entire country was enveloped and ripped apart by hate.
In advance of our visit, an advance team will visit them in the earlier month and spend at least a week there. They will try to constitute an aman committee, with members of Muslim, Dalit and Hindu groups (and Adivasi and Christian where applicable). These aman committees will commit to support the family for justice and livelihoods, and promote amity, goodwill, and peace in the larger community.
After we meet with the family, we will with the help of the aman committee organise a public meeting – an aman sabha – on the themes of love and solidarity, preferably hosted in the settlements of the majority community. There will also be singing on these themes by singers who we hope will accompany the Safar.
There will be 4 teams – one to plan the logistics, one advance team which will meet the families and create aman groups there, a third would be the social media team, and the fourth would be for the actual journey. We would warmly welcome participants – young and older – for all of these.
People could join for stretches or the full Safar, including in the state tributaries.
This Safar seeks to offer a small message of love and solidarity. It will point for the lynchings and the climate of hate to the culpability of the governments, political parties, partisan administrations, marauding mobs, but most of all the culpability of all of us, of the silent bystanders.
Harsh Mander
To join the journey, contact Harsh Mander at manderharsh@gmail.com.
मोहब्बत का सफ़र (या कारवाँ)
भारत में यह बढ़ती नाउम्मीदी और अंधकार का दौर है। हिंसक भीड़ का चारों ओर आतंक है। लोगों को उनकी आस्था तथा जाति के आधार पर हिंसा का शिकार बनाया जा रहा है।
इस प्रकार के हमले की विशेषता यह है कि रास्ते से गुज़रने वाले लोग इस प्रकार की हिंसा में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, या इसे रोकने की कोशिश भी नहीं करते। पहलू खाँ को एक व्यस्त राष्ट्रीय राजमार्ग पर मार डाला गया; ऊना में हमलावरों ने कोड़े मारने की घटना के वीडियो को प्रसारित किया, उनको इस बात का भरोसा था कि उनको किसी प्रकार की सज़ा नहीं मिलेगी। अख़लाक़ को उसके पड़ोसियों ने मार डाला। एक भरी ट्रेन में जुनैद के ऊपर 30 बार छुरे से हमला किया गया।
जब हमारे भाईयों और बहनों को जलाया जा रहा था मारा जा रहा था उस वक्त हम चुपचाप तमाशा देख रहे थे, उसके लिए हम कितने दोषी हैं?
हमें उन कारणों की पड़ताल करनी होगी कि जब बेक़सूर लोगों को मारा जा रहा था उस समय हमने आवाज़ क्यों नहीं उठाई, हमने कुछ किया क्यों नहीं, हम चुप क्यों रहे। हमें अपनी अंतरात्मा को झकझोरना होगा। हमें इस असहनीय बोझ को उठाना होगा।
अंधेरे को कभी भी अंधेरे से नहीं हराया जा सकता है, सिर्फ़ उजाले से ही घटाटोप अंधेरे को दूर किया जा सकता है। इस सामूहिक चुप्पी को तोड़ने के लिए हम यह प्रस्ताव करना चाहते हैं कि जितने भी साथी जो सामूहिक पीड़ा के, साझेदारी के, प्रायश्चित के और प्यार के सफ़र में जुड़ना चाहते हैं जुड़ सकते हैं। आज के समय में भारत में घृणा से भरी हिंसा और हत्या की बढ़ती हुई घटना के जवाब में हमने नागरिक समाज की ओर से व्यापक और साझे तौर पर एक महीने की यात्रा का प्रस्ताव किया है, जिस दौरान हम उन परिवारों से मिलेंगे जिन्होंने अपने परिवारजनों को इस नफ़रत से भरी हिंसा में खोया है। इस यात्रा को मोहब्बत का सफ़र नाम दिया गया है। यह सफ़र दर्द बांटने के लिए, प्रायश्चित के लिए, और प्यार के लिए होगा।
इस सफ़र की शुरुआत असम में नेल्ली से होगी जिसकी संभावित तिथि 11 सितंबर है, तथा इसका समापन 2 अक्टूबर को गुजरात के पोरबंदर में होगा। इस यात्रा को दौरान दिल्ली और महू में दो पड़ाव रहेगा। सफ़र के पहले चरण में असम, झारखंड तथा कश्मीर को शामिल किया जाएगा। प्रत्येक राज्य में हम दो ऐसे परिवारों से मिलेंगे जो इस प्रकार की हिंसा के शिकार हुए हैं। उनके पास जाकर हम प्रायश्तित करेंगे और यह जानने की कोशिश करेंगे कि उनके रोज़गार की क्या ज़रूरतें हैं, उन्हें किस प्रकार की कानूनी सहायता चाहिए। इन सभी राज्यों से अनेक छोटे समूह (और जो भी इस सफ़र में शामिल होना चाहते हैं) 21 सितंबर को दिल्ली में इकट्ठा होंगे, और दूसरे चरण के सफ़र की शुरुआत दिल्ली में तिलक विहार से होगी। इस चरण में सभी प्रतिभागी एक साथ एक बस में सफ़र करेंगे।
नेल्ली से सफ़र की शुरुआत करने की वजह यह है कि साम्प्रदायिक नरसंहार के उस पुराने इतिहास को फिर से याद किया जाए, जिसका कभी इंसाफ़ नहीं मिला और ज़ख़्म कभी नहीं भरे। नेल्ली विभाजन के बाद का सबसे बड़ा नरसंहार है, और इस अपराध के लिए एक भी व्यक्ति को सज़ा नहीं मिली। दिल्ली के तिलक विहार के 1984 की विधवा कालोनी से दूसरे चरण की शुरुआत करने की वजह भी यही है, उनको भी कभी इंसाफ़ नहीं मिला।
दिल्ली से यह सफ़र राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश होते हुए गुजरात जाएगी। इस यात्रा के दौरान, सफ़र महू में रुकेगी, जो कि डॉ अंबेडकर का जन्म स्थान है। उनकी चेतावनी को याद रखने की ज़रूरत है कि लोकतंत्र और हमारे संविधान की बुनियाद है बंधुता, आज के भारत में जिस पर सबसे ज़्यादा हमला हो रहा है। सफ़र का समापन 2 अक्टूबर को गाँधी के जन्म स्थल पर होगा, इस बात को याद करते हुए कि मरते दम तक उनको हिन्दू-मुस्लिम एकता में विश्वास था, खासकर उनके जीवन का आख़री महीना जब पूरा देश नफ़रत से भरा हुआ था वे नोआखली की सड़कों पर घूम रहे थे।
हमारी यात्रा से पहले एक अग्रिम टोली महीने के शुरू में उन जगहों की यात्रा करेगी और वहाँ कम से कम एक हफ़ते बिताएगी। वे अमन समितियों का गठन करने का प्रयास करेंगी जिसमें मुसलमान, दलित तथा हिन्दू समाज के सदस्य हों (तथा आदिवासी और ईसाई भी जहाँ ऐसी संभावना हो)। ये अमन समितियाँ परिवार को न्याय तथा रोज़गार दिलाने की ज़िम्मेदारी लेंगी तथा व्यापक समुदाय के बीच सद्भाव, भाईचारा तथा शांति को बढ़ावा देने के लिए पहल करेंगी।
परिवार से मिलने के बाद अमन समिति की सहायता से सार्वजनिक सभा-अमन सभा-आयोजित की जाएगी जिसका विषय प्यार और भाईचारा होगा, कोशिश की जाएगी कि इस प्रकार की सभा बहुसंख्यक समुदाय की आबादी वाले किसी स्थान पर किया जाए। इन्हीं विषयों पर गायकों द्वारा गाने भी गाए जाएँगे, आशा है कि इस सफ़र में हमारे साथ कुछ गायक भी होंगे।
इस सफ़र के लिए 4 टीम होंगी-एक टीम योजना बनाने और सहायता इकट्ठा करने का काम करेगी, एक अग्रिम टीम जो परिवारों से मिलेगी और अमन समिति गठित करने का प्रयास करेगी, एक तीसरी टीम होगी जो सोशल मीडिया टीम होगी, चौथी टीम वह होगी जो वास्तविक यात्रा करेगी। इन सभी टीमों के लिए हम सहभागियों-नौजवान और बुज़ुर्ग-का स्वागत करना चाहेंगे।
यात्रा के दौरान हम आशा करेंगे की हमारे पास लेखक, कवि, फोटोग्राफर, विडियोग्राफर की ऐसी टीम हो जो सफ़र के दौरान के अपने अनुभव को लगातार दर्ज करते रहें ताकि उसके माध्यम से वे लेग भी हमारे सफ़र में शामिल हो सकें जो हमारे साथ यात्रा नहीं कर रहे हैं। हम चाहेंगे कि हमारे पास कुछ वक्ता, गायक, संगीतकार, यहाँ तक कि स्टैंड-अप कामीडियन भी हों, जो उन जहगों पर प्यार तथा भाईचारा का संदेश पहुँचा सकें जहाँ सिर्फ़ नफ़रत फैल रहा है।
लोग इस यात्रा में थोड़े समय के लिए भी शामिल हो सकते हैं या पूरी यात्रा के भागीदार बन सकते हैं। अलग अलग राज्यों से आने वाली टोली का हिस्सा भी हो सकते हैं।
इस सफ़र का उद्देश्य प्यार तथा भाईचारे का संदेश पहुँचाना है। यह भीड़ द्वारा की जाने वाली हत्या तथा नफ़रत के वातावरण के लिए एक संदर्भ बिंदु होगा। यह सफ़र जितना सरकारों, राजनैतिक दलों, पक्षपातपूर्ण प्रशासन, हत्यारी भीड़ को दोषी बताने के लिए है उससे कहीं ज़्यादा हमारे दोष को स्वीकार करने के लिए है, हम जो चुपचाप तमाशा देख रहे हैं।