सिनेमा के क्षेत्र में हमेशा से ही एक बड़ा तबका ऐसा रहा है जो हर तरह के दमन के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करता है. ‘ प्रतिरोध का सिनेमा’ इसी आवाज़ का एक साकार रूप है. इस आवाज़ को दबाने की कोशिश भी लगातार होती ही रहती है, और इसी दमन के प्रयास का एक नमूना है ‘ प्रतिरोध का सिनेमा’ के उदयपुर फिल्म फेस्टिवल कार्यक्रम का अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा विरोध. केंद्र की मौजूदा सरकार का पूरा जोर इस बात पर है कि किसी भी असहमति के स्वर को समाज में जगह न मिल पाए. लेकिन इसके साथ ही साथ प्रतिरोध भी और तेज़ी से उभर रहा है. इसी विषय पर न्यूज़क्लिक और इंडियन राइटर फोरम ने ‘ प्रतिरोध के सिनेमा’ के संचालक संजय जोशी से बात की.