दिनांक 21 दिसंबर 2018 को अजमेर में साहित्योत्सव के उद्घाटन के अवसर पर आये अभिनेता नसीरुद्दीन शाह की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भाजपा-आर एस एस के गुंडों द्वारा किये गये हमले की जनवादी लेखक संघ कड़े शब्दों में निंदा करता है । उनके मंच पर आने से पूर्व ही करीब चालीस-पचास हिंदुत्ववादी उपद्रवियों ने पंडाल में आकर तोड़फोड़ शुरू कर दी। होर्डिंग फाड़ दिये और नसीरुद्दीन शाह के ख़िलाफ़ नारे लगाने लगे।
उस समय वहां पर केवल दो पुलिस वाले थे। इस असुरक्षित माहौल में नसीरुद्दीन शाह को मंच पर नहीं लाया गया और वे बिना अपने विचार अभिव्यक्त किये ही वापस चले गये। असहिष्णुशीलता की इससे बड़ी मिसाल क्या होगी। नसीरुद्दीन शाह ने हाल ही में दिये अपने इंटरव्यू में देश के इसी माहौल पर अपने मन की बात कही थी जो हिंदुत्ववादियों को नागवार गुज़री जबकि उन्होंने न तो किसी व्यक्ति का और न ही किसी संगठन का नाम लिया था। इन संगठनों के कारनामे हर रोज़ असहिष्णुशीलता का सबूत दे रहे हैं। लेखकों-कलाकारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी पर ये हमले दिनोंदिन बढ़ रहे हैं।
इस घटना में स्थानीय प्रशासन मूकदर्शक बना रहा। नसीरुद्दीन शाह जैसे कलाकार को पूरी सुरक्षा प्रदान करने और उन्हें अपने विचार रखने का अवसर प्रदान करवाना कांग्रेस सरकार की जिम्मेदारी बनती थी, जो नयी सरकार के प्रशासन ने नहीं निभायी।
लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इस तरह के अराजक और हिंसक हमलों की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। जनवादी लेखक संघ राज्य सरकार से यह मांग भी करता है कि वह इन उपद्रवियों को गिरफ्तार करके कानूनी कार्यवाही करे। जिस तरह पुलिस प्रशासन की इस पूरे प्रकरण के दौरान उपेक्षापूर्ण भूमिका रही है उसकी जांच की जाये।
हमारा यह मानना है कि हर सच्चे कलाकार की तरह नसीरुद्दीन शाह ने अपने हालिया बयान में हमारे देश और समाज का कड़वा यथार्थ सामने रखा है और हम उनकी चिंता को हर उस सच्चे भारतीय की चिंता समझते हैं जिसे अपने देश और समाज से प्यार है और जो इस देश की बहुलतावादी संस्कृति और सभ्यता के विकास के लिए प्रतिश्रुत हैं। हम देश के अवाम से अपील करते हैं कि वे ऐसे फासीवादी सांप्रदायिक तत्वों की असलियत पहचान कर उन्हें अलग थलग करें जो हमारे संविधान और साझा संस्कृति पर आये दिन हमला करके देश के कलाकारों, लेखकों, और दानिशवरों को और देश के अल्पसंख्यकों को डरा धमका रहे हैं। ये तत्व अपने राजनीतिक ओछे स्वार्थ के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की चाल चल रहे हैं जिससे बेरोज़ेगारी, ग़रीबी और अवाम की बदहाली जैसे वास्तविक सवालों को लोग भूले रहें।
चंचल चौहान, कार्यकारी अध्यक्ष
मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, महासचिव