केरल ! केरल !
जल ही जल है !!
जल की इस बहती आंधी की
कैसी तो लीला अविरल है।
टूटे भहरा पुल घर सड़कें ।
दिल सब जल के भय से धडकें ।।
बादल गरजें बिजली कडके।
स्वर भड़ भड़ के।
स्वर भड़ भड़ के ।।
पुष्ट भुजायें फैली बाहें ।
जल से जो हैं टूटी राहें ,
फिर वे संवरें ,
ऊंची लहरें, निष्फल हों सब,
उठती भंवरें ।।
केरल ! केरल !
देश साथ है ।
झुका न उसका अरे माथ है ।।
जल में ही वह बड़ा हुआ है,
जल में फिर उठ खड़ा हुआ है ।।
जैसे पार कराती नावें ,
वैसे पार लगाती नावें।।
दुःख विपदा अब पास न आवें,
सुख सुविधा हम सब पहुँचावें।।
'केरल ! केरल! '
फिर हम गावें।।