आसिफ़ा-2
मंदिर में जब दीप जलेंगे
ख़ून से बाले जायेंगे
परवचनों और आरतियों में
प्रेत बुलाये जाएँगे
घंटों के घनघोर तुमुल में
गले दबाये जाएँगे
माणूस गंध की घनी चिरायंध
बास करेगी आँगन में
नरबलियों के उत्सव में
पितरों को निवाले जाएँगे
पैजनियों को पिघलाकर
हार बनेगा नौलक्खा
जिसे पहनने नवयुग के
अवतार बुलाये जाएँगे
मूर्तियों की कोरी आँखें
सोग करेंगी मज़हब का
भक्तों के जलवे होंगे
भगवान उछाले जाएँगे
जब गुम्बद-गुम्बद ख़ामोशी
सन्नाटों में बदलेगी
दीन-धरम की पतंग जब
गोल मेज में बदलेगी
फ़रमान सुनाये जाएँगे,
इम्कान बताये जाएँगे
तिरशूलों की नोक तले
जब नीति निभेगी निर्वाचित
लोकतंत्र के चिथड़ों पर
मर्यादा होगी मर्यादित
जब जगह दिखाई जाएगी
औकात बतायी जाएगी
तब धर्मगुरु और धर्मसुधारक
धर्मराज और धर्मप्रपालक
धर्म ध्वजाएँ ले-लेकर
सत्ता के शिवाले जाएँगे
हत्यायें पहले होंगी,
प्रतिहिंसाएँ पहले होंगी,
बदले सब पहले ही होंगे
फिर सड़क-सड़क चौराहों पर
इलज़ाम धराए जाएँगे
उँगलियों का परसाद बँटेगा
औ पुण्य-ताप की पँजीरी
पकड़-पकड़ अंगुलिमालों के
बुद्ध भगाये जाएँगे
इक बच्ची की योनि से
जब एक सभ्यता गुज़रेगी
जब चीख़ों की इक नरम देह
पर एक संस्कृति उतरेगी
मंत्रोच्चारण के बीच कहीं
जब हिचकी हिचकी टूटेगी
तब नव भारत के नए जियाले
मंदिर वहीँ बनाएँगे
मंदिर वहीँ बनाएँगे